हिमाचल प्रदेश के नाहन विधानसभा क्षेत्र में एक पंचायत है ‘विक्रमबाग’। इस पंचायत में तकरीबन अढ़ाई सौ की आबादी वाली अनुसूचित जाति गांव ‘मंडेरवा’ में वास करती है। क्या आप विश्वास करेंगे, मारंकडा नदी (Markanda River) का जलस्तर बढ़ने पर ये गांव एक ‘टापू’ (Island) का रूप ले लेता है। मतलब, न कोई गांव में दाखिल हो सकता है और न ही कोई बाहर आ सकता है।
तकरीबन तीन साल पहले दलित ((SC) बस्ती को विकास की मुख्य धारा में जोड़ने के मकसद से 4 करोड़ रुपए की लागत से पुल के निर्माण का निर्णय हुआ। ये अलग बात है कि 6 महीने से निर्माण कार्य ठप पड़ा हुआ है।
शनिवार सुबह निर्माणाधीन पुल का डंगा (वायर क्रेट) ढह गया। गांववासी बखूबी जानते थे कि बरसात में ये गिरेगा ही। लिहाजा, सुबह से जारी मूसलाधार बारिश में गांववासी विभाग की पोल खोलने के मकसद से तैयार बैठे थे, ताकि गिरते डंगे को कैमरे में कैद किया जा सके। इसमें सफलता भी हासिल हुई है। सवाल गुणवत्ता के साथ-साथ सिविल इंजीनियरिंग (Civil Engineering) पर भी उठा है।
ग्रामीणों की मानें तो पुल की ऊंचाई अधिक होने के कारण गांव की तरफ नीचे आने के लिए अपरोच सड़क के लिए ये डंगा लगाया गया था। इसको लेकर पहले भी आपत्ति जताई गई थी कि ये कार्य ठीक नहीं है। मूसलाधार बारिश जारी होने स्थिति में गांववासियों को अब ये भी आशंका है कि पुल की सामग्री भी पानी की भेंट चढ़ सकती है।
सवाल इस बात पर भी है कि जब बात लोक निर्माण विभाग के युवा मंत्री विक्रमादित्य सिंह के अपने इलाके से जुड़ी हुई थी तो 6 दिन के भीतर ही ठियोग के नजदीक वैली ब्रिज (Valley Bridge) तैयार कर दिया गया। वहीं, अनुसूचित जाति का ये तबका दशकों से आदिवासियों की तरह जीवन जीने को विवश है तो उनकी सुनवाई करने वाला कोई नहीं है।
विक्रमबाग पंचायत प्रधान नरेंद्र कुमार की मानें तो लोक निर्माण विभाग के मंत्री की हेल्पलाइन पर भी पुल के निर्माण में विलंब को लेकर शिकायत दर्ज करवाई गई थी, लेकिन इसका कोई ठोस परिणाम नहीं निकला। गांववासी इस बात को बखूबी जानते हैं कि अब विभाग बरसात का बहाना बना सकता है। लिहाजा, मौजूदा मानसून भी आफत में ही बीतेगा।
गांववासियों की हालत देखकर आप सिहर हुए बिना भी नहीं सकते।
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सोचिए कि शहरी व विकसित इलाकों में यदि एंबुलेंस 10 मिनट में भी न पहुंचे तो क्या होता है। वहीं, ये लोग तो आधुनिक सुविधाओं की सोच भी नहीं सकते, क्योंकि आपातकाल में सामने मारकंडा नदी के रौद्र रूप की चुनौती होती है।
उधर, लोक निर्माण विभाग के अधिशाषी अभियंता वीके अग्रवाल ने कहा कि वायर क्रेट के ध्वस्त होने की सूचना मिली है। उनका कहना था कि विभाग द्वारा ठेकेदार को कोई भी राशि जारी नहीं की गई है। अधिशाषी अभियंता का ये भी कहना था कि समय रहते ही स्थिति स्पष्ट हो गई है। गुणवत्ता व सिविल इंजीनियरिंग (Civil Engineering) की खामी को लेकर पूछे गए सवाल पर अधिशाषी अभियंता वीके अग्रवाल ने कहा कि फिलहाल जांच के बगैर इस बारे टिप्पणी करना जल्दबाजी होगी।