आपके हिसाब से किसी व्यक्ति की औसत आयु क्या हो सकती है ? वैसे तो आज के दौर में लोगों की औसत उम्र 60 वर्ष ही मानी जाती है. लेकिन, आज के दौर में भी ऐसे लोग हैं जो 150 साल जीते हैं और वो भी बिना किसी बीमारी और बुढ़ापे को खुद पर हावी होने दिए बिना. अगर ये मुमकिन न लगे तो ये लेख पढ़ लीजिए.
जब लंदन एयरपोर्ट पर उतरा 152 साल का आदमी
1984 में लंदन के हिथ्रो एयरपोर्ट पर अब्दुल मोबट नामक एक व्यक्ति पहुंचा. वैसे तो यहां हर रोज सैकड़ों यात्री आते-जाते थे लेकिन अब्दुल सबसे अलग निकले. एयरपोर्ट पर सुरक्षा जांच के दौरान सभी ऑफिसर तब हैरान रह गए जब उन्होंने अब्दुल के पासपोर्ट पर उनके बर्थ ईयर की जगह पर सन 1832 लिखा हुआ देखा. उन्हें लगा शायद ये किसी तरह की ग़लती है. इस वजह से अब्दुल की उम्र कई बार क्रॉसचेक की गई. किसी को ये विश्वास ही नहीं हो रहा था कि सामने खड़े इस इंसान की उम्र 152 साल है और इस उम्र में यह एकदम सही सलामत उनके सामने खड़ा है. इस घटना का ज़िक्र 1984 में हांगकांग में छपे एक रोचक लेख में किया गया था. दरअसल 152 साल का ये शख़्स एक ‘हुंजा’ था.
हुंजा समुदाय: इन्हें कैंसर छू भी नहीं सकता
बहुत से लोग आज भी इस समुदाय के बारे में नहीं जानते, लेकिन इनके बारे में जानने योग्य बहुत कुछ है. हम यहां बात कर रहे हैं उत्तरी पाकिस्तान के काराकोरम माउंटेन्स की हुंजा वैली में रहने वाले हुन्जकूटस या हुंजा लोगों के बारे में, जिन्हें बुरुशो समुदाय भी कहा जाता है. हुंजा लोगों की जनसंख्या ज्यादा नहीं है लेकिन बड़ी बात ये है कि इन्हें दुनिया के सबसे लम्बी उम्र वाले, खुश रहने वाले और स्वस्थ लोगों में गिना जाता है. हुंजा लोगों के स्वास्थ्य का अनुमान आप इस बात से लगा सकते हैं कि आज तक इस समुदाय का एक भी इंसान कैंसर का शिकार नहीं हुआ है. इन लोगों को दुनिया की कैंसर फ्री पापुलेशन में गिना जाता है. हुंजा समुदाय की महिलाएं 65 की उम्र में भी बच्चे पैदा कर सकती हैं.
एक लेख के बाद आए दुनिया के सामने
इन पर 1955 में जे आई रोडाल ने ‘द हेल्दी हुंजाज़’ के नाम से एक किताब लिखी थी. उनके बाद भी कुछ अन्य लेखकों ने इन पर किताबें लिखीं लेकिन फिर भी ये लोग दुनिया की नज़र से बहुत दूर थे. 1984 में हांगकांग में छपे जिस लेख का हमने ऊपर ज़िक्र किया, उसके बाद ही दुनिया ने इन अद्भुत लोगों को पहचाना. इस समुदाय के लोगों को ‘बुरुशो’ भी कहते हैं. इनकी भाषा बुरुशास्की है. कहा जाता है कि ये समुदाय अलेक्जेंटडर द ग्रेट की सेना के वंशज हैं, जो चौथी सदी में यहां आया था. ये समुदाय पूरी तरह मुस्लिम है. इस समुदाय के लोग पाकिस्तान के अन्य समुदायों से कहीं ज्यादा पढ़े-लिखे होते हैं. हुंजा घाटी में इनकी जनसंख्या करीब 87 हजार है.
लंबी और स्वस्थ आयु का ये है कारण
हुंजा लोगों का इस तरह से स्वस्थ होना कोई वरदान या चमत्कार नहीं है. ये सब हो पाया केवल इनके खान-पान और रहन-सहन के तौर तरीके के कारण. इनके डाइट चार्ट में सिर्फ पौष्टिक आहार शामिल होता है. रिसर्चर्स ने अपनी रिपोर्ट में ये कहा है कि हुंजा लोग खाने में ज्यादा से ज्यादा धूप में सुखाए अखरोट व एक विशेष प्रकार के मेवे का इस्तेमाल करते हैं. इसे एप्रीकोट (खुबानी) कहा जाता है. एप्रीकोट में B-17 कंपाउंड पाया जाता है, जो एक तरह का लोगों के एंटी-कैंसर एजेंट है तथा कैंसर जैसे रोग को खत्म करता है. चूंकि, हुंजा काफी ज्यादा एप्रीकोट का सेवन करते हैं, इसलिए उन्हें कैंसर नहीं होता. इसके अलावा ये लोग कच्ची सब्जियां, फल , अनाज, मेवे के अलावा दूध, अंडा और चीज भी अपने रोज़ के खाने में शामिल करते हैं.
हुंजा लोग साल के 2 से 3 महीने खाना नहीं खाते. इस दौरान वो सिर्फ़ जूस लेते हैं. थोड़ा सा खाने के बाद ये लोग वॉक पर निकल जाते हैं. इनके खानपान और रहन-सहन का ही असर है कि इनकी औसत उम्र 120 साल होती है और ये 70 साल तक जवान दिखते हैं.