हिंदू पक्ष ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर ज्ञानवापी मस्जिद के सीलबंद क्षेत्र के भीतर शिवलिंग की प्रकृति का निर्धारण करने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के महानिदेशक को निर्देश देने की मांग की है.
वकील विष्णु शंकर जैन के माध्यम से शीर्ष अदालत का रुख करने वाले याचिकाकर्ताओं ने एएसआई को खुदाई और अन्य वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग करके पूरे सील क्षेत्र का सर्वेक्षण करने और शीर्ष अदालत द्वारा प्रदान किए गए समय के भीतर एक रिपोर्ट सौंपने का निर्देश देने की भी मांग की.
याचिका में कहा गया है कि शिवलिंग के क्षेत्र को कृत्रिम दीवारें खड़ी करके घेर दिया गया है जो कि मूल इमारत से असंबद्ध आधुनिक निर्माण है, और इस क्षेत्र का मुसलमानों के लिए कोई धार्मिक महत्व नहीं है क्योंकि उनके अनुसार वहां एक कथित फव्वारा है.
याचिका में कहा गया है कि ‘यह उल्लेख करना प्रासंगिक है कि उक्त आधुनिक निर्माण जानबूझकर शिवलिंग से जुड़ी मूल विशेषताओं जैसे पीठ, पीठिका (Peeth, Pithika) आदि को छिपाने के लिए किया गया है.’ हिंदू पक्ष ने कहा कि एएसआई इस मामले में सच्चाई स्थापित करने के लिए शिवलिंग सहित पूरे सील किए गए क्षेत्र का वैज्ञानिक सर्वेक्षण कर सकता है.
याचिका में कहा गया है कि 16 मई, 2022 को मिला शिवलिंग हिंदुओं और भगवान शिव के भक्तों के लिए पूजा की वस्तु है और सामान्य तौर पर हिंदुओं को 16 मई 2022 को मिले शिवलिंग के दर्शन और पूजा करने का पूरा अधिकार है. शीर्ष अदालत ने मई, 2022 में उस क्षेत्र को सील करने का निर्देश दिया था जहां शिवलिंग पाया गया था.
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि एएसआई द्वारा सील किए गए क्षेत्र को छोड़कर मस्जिद के पूरे परिसर का सर्वेक्षण किया गया है और अब यह आवश्यक है कि सील किए गए क्षेत्र का भी सर्वेक्षण किया जाए, अन्यथा सर्वेक्षण का उद्देश्य विफल हो जाएगा क्योंकि एरिया को सील करने के संबंध में ए.एस.आई. की कोई रिपोर्ट नहीं होगी.
वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद की एएसआई सर्वेक्षण रिपोर्ट को 25 जनवरी को सार्वजनिक किया गया था. इसने विवाद की एक नई लहर पैदा कर दी है. रिपोर्ट में मस्जिद परिसर के भीतर हिंदू देवताओं की मूर्तियों और अन्य प्रतिमाओं के टुकड़ों की तस्वीरें छापी गई हैं. एएसआई रिपोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि यह कहा जा सकता है कि मौजूदा संरचना, यानी मस्जिद के निर्माण से पहले वहां एक हिंदू मंदिर मौजूद था.