सिर्फ़ साहस ही नहीं बल्कि अपने खाने के लिए भी फेमस हैं गोरखा, क्या आपने खाई है गोरखा थाली?

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“अगर कोई कहता है कि मुझे मौत से डर नहीं लगता, तो या तो वह झूठ बोल रहा है या फिर गोरखा है.” 

ये बात इंडियन आर्मी के पूर्व चीफ ऑफ स्टाफ जनरल सैम मानेकशॉ ने गोरखा सैनिकों के बारे में कही थी. 8वीं शताब्दी में संत श्री गोरखनाथ के नाम से प्रभावित होकर नेपाल के गोरखाली समुदाय ने अपना नाम गोरखा रखा लिया था. गुरु गोरखनाथ के शिष्य थे बप्पा रावल और उनकी दो संतानें थी राजकुमार कलभोज और शैलाधिश जिनका घर मेवाड़, राजस्थान में था. लेकिन बप्पा रावल नेपाल की तरफ बढ़े और उन्होंने नेपाल में गोरखा राज्य स्थापित किया. आज गोरखा जिला नेपाल के 75 जिलों में से एक है.

गोरखों के साहस जितना ही फेमस है गोरखाली खाना

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वैसे तो गोरखा लोग अपने निडर और साहस के लिए दुनियाभर में लोकप्रिय हैं, लेकिन इन लोगों का भोजन उतना ही भव्यता, विशिष्ट और समृद्ध संस्कृति का प्रतिनिधित्व करने वाला है. Indian Gorkha Foods में आपको जापानी, चीनी, कोरियाई और अन्य एशियाई देशों का व्यापक प्रभाव देने को मिल सकता है. उदाहरण के लिए जापान से Sake (Rakshi) और Nato (Kinema), चीन से Xiáncài (like Gundruk ka Achar), तिब्बत और मध्या एशिया से Momo, Gyoza (Dumpling),Thukpa (Pho/Noodles) और Tsampa (Barley Flour), नेपाल से सभी तरह की दाल, नट्स, अनाज, मसाले और Sikkim Churpi (Hard Cheese) जैसे व्यंजनों का स्पष्ट प्रभाव Indian Gorkha Cuisine में दिखाई देता है. वहीं पॉपुलर Tongba (Locally Brewed Drink) अब  Indian Gorkha Cuisine का हिस्सा बन चुका है.

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इतना ही नहीं ब्रिटिश शासन ने भी लोकल फूड पर गहरा प्रभाव छोड़ा है. बैल की भुनी हुई जीभ और पूंछ के सूप से लेकर सुअर के खून की खीर (Rakti) से लेकर ताजी टमाटर की चटनी में भिगोई हुई सूखी मछली के साथ तले हुए चावल और टोस्टेड ब्रेड के साथ Sausage-Ham-Salamicheese, ये सभी डिशेज़ अब Indian Gorkha Food का एक अनिवार्य एलिमेंट है. आज गोरखा समुदाय के अंदर कामी, दमाई, सरकी, गुरुंग, राय, लिम्बु, बहुन, नेवार, तमांग, मगर, छेत्री, थामी, शेरपा और योलमो सहित विभिन्न जातियां आती हैं.

इन सभी जातियों की अपनी समृद्ध उप-संस्कृतियां हैं जो वेशभूषा, समारोह, भोजन और संगीत से संबंधित हैं. जिसे आज हम Gorkha Cuisine कहते हैं उनमें इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है. ब्रिटिश शासन के दौरान अंग्रेजों के घर में इंडियन गोरखा ही रसोइया और बटलर हुआ करते थे. इसलिए गोरखा परिवारों को बड़ी संख्या में उनके पूर्वजों से खाना बनाने की कला और रुचि विरासत में मिली हुई है. आज दुनियाभर में आपको बड़े रेस्तंरा में गोरखा थाली आराम से उपलब्ध हो जाती है. हालांकि यह थाली सिक्किम के पॉपुलर डिशेज़ में से एक हैं लेकिन यह ट्रेडिशनल नेपाली फूड से प्रभावित है.

क्या है गोरखा थाली? 

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गोरखा थाली में चावल, दाल, गुंड्रुक, किनेमा (Fermented Beans), चुरपी,  Ningro और पापड़ शामिल हैं. इन सभी डिशेज़ को एक गोल थाली में परोसा जाता है और यह एक पौष्टिक और स्वादिष्ट व्यंजन है. आमतौर पर इस थाली को गोरखा समुदाय के लोग दुर्गा पूजा, दशहरा और दिवाली के दौरान तैयार करते हैं. इसके अलावा गोरखा लोग अपने पारंपरिक पेय तोंगबा को भी त्याहोरी थाली में शामिल करते हैं. अगर आप गोरखा थाली का स्वाद चखना चाहते हैं तो आप असम, गंगटोक और उसके आसपास के सभी रेस्टोरेंट में इस थाली का लुत्फ उठा सकते हैं. तो आइए विस्तार से गोरखा थाली में परोसे जाने वाले व्यंजनों को जान लेते हैं.

1. Gundruk

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यह डिश नेपाल, तिब्बत, सिक्कम, भूटान और दार्जिलिंग में काफी फेमस है. इस डिश को बनाने के लिए मूली और फूलगोभी जैसी सब्ज़ियों का इस्तेमाल किया जाता है. गुंड्रुक को एक साइड डिश के तौर पर खाया जाता है. आमतौर पर अक्टूबर और नवंबर के महीने में पहली सरसों की कटाई के दौरान मूली, फूलगोभी के पत्तों को तोड़कर पहले धूप सुखाया जाता है. फिर इसे अच्छे से चॉप किया जाता है और आपस में Compressed किया जाता है. इसके बाद इन सब्जियों को एक एयरटाइट कंटेनर में रखा जाता है. कंटेनर्स को धूप में रखा जाता है और जब सब्जियां Fermented हो जाती हैं तो उन्हें साइड डिश की तरह परोसा जाता है.

2. Kinema

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किनेमा नेपाल, भूटान और सिक्किम में काफी लोकप्रिय है. यह डिश Fermented Soyabean से तैयार की जाती है और इसे चावल के साथ खाया जाता है. आप इसे ब्रेड के साथ भी खा सकते हैं. आमतौर पर लोग इसे मांसकरी के विकल्प के रूप में खाना पसंद करते हैं. यह एक हेल्थी डिश है क्योंकि यह आसानी से पच जाती है.

3. Ningro

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निंग्रो एक अल्पाइन फ़िडलहेड फ़र्न है जिसे सब्जी के रूप में उपयोग किया जाता है. फिडेलहेड्स फैटी एसिड के स्रोत हैं, और आयरन और फाइबर में हाई हैं. निंग्रो में विभिन्न विटामिन और खनिज भी होते हैं. हालांकि इसमें सोडियम कम होता है और पोटेशियम ज्यादा होता है. इन्हें छाछ से तैयार चुरपी के साथ मिलाया जाता है. इन दो फूड आइटम्स का कॉम्बिनेशन डिश को एक Authentic Flavour देता है.

4. Sel Roti

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गोरखा थाली सेल रोटी के बिना हमेशा अधूरी मानी जाती है. यह स्वीट रिंग शेप्ड ब्रेड होती है जो आमतौर पर नेपाल, सिक्किम में दशहरा औऱ दिवाली के दौरान घरों में तैयार की जाती है. इस डिश को चावल, आटे, पानी, मक्खन, इलायची और लौंग के साथ तैयार किया जाता है. इसका मिक्स्चर सेमी लिक्विड होता है, जिसे तेल या घी में डीप फ्राई किया जाता है.

5. Tongba

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तोंगबा गोरखा लोगों का एक पारंपरिक पेय है. सिक्किम के लोग मेहमानों के आवभगत के लिए तोंगबा परोसते हैं. इस पेय का लुत्फ त्योहारों के दौरान लिया जाता है.

6. Gorkha Chutney

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गोरखा चटनी नेपाल, भूटान या सिक्किम में ही नहीं बल्कि पूरे भारत वर्ष में पॉपुलर है. इस चटनी को रोटी या चावल के साथ परोसा जाता है. इस रेसिपी के लिए सबसे पहले सफेद तिल को भूनकर उसे दरदरा पीस लिया जाता है. फिर कढ़ाई में तेल डालकर उसमें थोड़ा मेथी दान ऐड करके आलू और प्याज को काटकर भूना जाता है. जब सब्जी हल्की भुन जाती है तो इसमें पिसा हुआ तिल, नमक, हल्दी, धनिया पाउडर, हरी मिर्च डाल दी जाती है और अच्छे से सबको मिला दिया जाता है. बाद में नींबू का रस ऐड करके और धनिया पत्ता डालकर इसे सर्व किया जाता है.

गोरखा सैनिकों का अपना इतिहास 

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अब जब बात गोरखा लोगों की चली है तो गोरखा सैनिकों का ज़िक्र किए बिना यह लेख कैसे पूरा हो सकता है. इसलिए हम आपको गोरखा सैनिकों के बारे में भी थोड़ा से बता देते हैं. दरअसल गोरखा लोगों को नेपाली आर्मी, भारतीय आर्मी यहां तक कि ब्रिटिश आर्मी तक में शामिल किया जाता है. वहीं ब्रिटिश शासनकाल के दौरान गोरखा लोगों को मार्शल रेस की उपाधि से नवाजा गया और ये लोग उस वक्त भी युद्ध में काफी आक्रामक, साहसी और वफादार हुआ करते थे. आपको जानकर हैरानी होगी कि अंग्रेजों के खिलाफ सबसे पहले युद्ध गोरखाओं ने साल 1814-15 में छेड़ा था. हालांकि बाद में अंग्रेजों ने फूट डालो और शासन करो की नीति से गोरखाओं को अपनी सेना में शामिल कर लिया था. इतना ही नहीं 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों की तरफ से गोरखा सैनिकों ने लड़ाई लड़ी थी. उस वक्त वे ईस्ट इंडिया कंपनी के आधीन काम किया करते थे.

रिपोर्ट के अनुसार, प्रथम विश्वयुद्ध में करीब 2 लाख गोरखा सैनिकों ने भाग लिया था और करीब 20 हजार सैनिक शहीद हो गए थे. वहीं द्वितीय विश्वयुद्ध में करीब 2.5 लाख गोरखा सैनिकों ने भाग लिया था और करीब 32 हजार सैनिक शहीद हो गए थे. इतना ही नहीं भारत-पाक युद्ध के दौरान भी गोरखा रेजिमेंट ने अपने बहादुरी का लोहा मनवाया था और उन्हें महावीर चक्र और परमवीर चक्र से नवाजा गया था. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, हर साल भारतीय सेना में 1200 से लेकर 1300 गोरखा सैनिक शामिल किए जाते हैं. वहीं करीब 70 फीसदी गोरखा सैनिक गोरखा राइफल्स में सेवाएं दे रहे हैं और बाकी के 30 फीसदी गोरखा देहरादून, दार्जिलिंग और धर्मशाला में बसे हुए हैं.