कुछ हादसे इंसान को इंसान का दुशमन बना देते हैं लेकिन वहीं कुछ लोग ऐसे होते हैं जिनके अंदर जीवन में बड़ा दुख झेलने के बाद परोपकार की भावना और बढ़ जाती है. ऐसे परोपकारी लोग यही सोचते हैं कि जैसे उनके साथ हुआ वैसा किसी और के साथ ना हो. हमारे आसपास भी ऐसे कुछ उदाहरण हैं जिन्होंने अपनों को खोने के बाद ये फैसला लिया कि वो किसी और को ऐसी स्थिति में नहीं पड़ने देंगे.
ये लोग आज सड़कों पर उतर कर लोगों की जान बचाने का नेक काम कर रहे हैं:
1. मनोज वाधवा
टेलीकॉम इंजीनियर मनोज वाधवा ने 10 फरवरी 2014 को दिल्ली-आगरा हाईवे पर हुई एक सड़क दुर्घटना में अपना 9 साल का बेटा खो दिया. उनका कहना था कि अगर सड़क पर कोई पाट्होल नहीं होता तो उनका लड़का पवित्र आज भी ज़िंदा होता. इस दर्द से गुजरने के बाद उन्होंने फैसला लिया कि वो अब अन्य किसी और को इस तरह की दुर्घटना का शिकार नहीं होने देंगे. इस तरह उन्हें अपनी ज़िंदगी का लक्ष्य मिला और तब से वह दिल्ली-आगरा हाई-वे पर सड़क के गड्ढे भर रहे हैं.
2. हैदराबाद के बुजुर्ग दंपति
सड़क के गड्ढों की वजह से होने वाली दुर्घटनाओं से दुखी होकर तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद में एक बुजुर्ग दंपति ने ये फैसला लिया कि वो ऐसी दुर्घटनाएं होने से रोकेंगे. इसके बाद से वह अपने काम में जुट गए. अपने काम से मिसाल कायम की है. ये बुजुर्ग जोड़ा 13 साल से सड़कों के गड्ढों को भरने का काम कर रहा है.
गंगाधर तिलक कटनम ने बताया था कि कहते हैं, ‘मैं भारतीय रेलवे से रिटायर होने के बाद यहां ट्रांसफर हुआ हूं. गड्ढों की वजह से आए दिन हादसे होते रहते हैं. मैंने मामले को संबंधित प्राधिकार से भी लिया, लेकिन समाधान नहीं हुआ. ऐसे में मैंने खुद से इन्हें ठीक करने का फैसला किया. मैं इस काम के लिए अपनी पेंशन के पैसे खर्च कर रहा हूं.’
3. खुशी पांडेय
25 दिसंबर 2020 को 23 वर्षीय खुशी ने अपने नाना श्रीनाथ तिवारी को हमेशा के लिए खो दिया. खुशी के नाना जब कोहरे वाली रात में साइकिल से आ रहे थे तब एक कार ने उन्हें टक्कर मार दी थी. उनकी साइकिल पर रेड लाइट नहीं लगी हुई थी, जिस वजह से कर चालक कोहरे में उन्हें देख नहीं पाया. इस हादसे में खुशी के नाना हमेशा के लिए दुनिया को अलविदा कह गए.
इस हादसे के बाद खुशी के जीवन में मातम पसर गया. एक दुख के बाद जहां बहुत से लोगों के मन में नफरत भर जाती है, वहीं खुशी के मन में उन लोगों के प्रति चिंता भर गई, जो उनके नाना की तरह ही बिना लाइट के रात में साइकिल से सफर करते हैं. बस फिर क्या था, इसके बाद उन्होंने लखनऊ की सड़कों पर साइकिल से चलनेवाले लोगों की जान बचाने के लिए रेड लाइट लगाना शुरू कर दिया.
खुशी ये परोपकार का काम पिछले 6 सालों से कर रही हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार खुशी अभी तक लखनऊ की सड़कों पर चलने वाले करीब 1500 से ज्यादा लोगों की साइकिल पर रेड लाइट लगा चुकी हैं. वह लखनऊ के अलग-अलग क्षेत्रों में जाकर ये नेक काम कर रही हैं.
4. गुरुबक्श सिंह
पंजाब के बठिंडा में ट्रैफ़िक पुलिस में कार्यरत गुरुबक्श सिंह ने सड़कों पर पड़े गड्ढों को यूं ही न छोड़ने का निर्णय लिया. दी ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार, गुरुबक्श सिंह सिर्फ़ इसलिए गड्ढे भरते हैं ताकि कोई दुपहिया वाहन चालक दुर्घटना का शिकार न हो. वह ऐसे कई लोगों की जान बचा चुके हैं. इसमें उनकी मदद मोहम्मद सिंह भी करते हैं. दोनों मिलकर अब तक कई गड्ढे भर चुके हैं.
5. हैलमेट मैन
बिहार के कैमूर में पड़ने वाले बगाढ़ी गांव का एक युवा आज पूरे देश में ‘हेलमेट मैन’ के नाम से मशहूर है. इस युवा का नाम है राघवेंद्र कुमार. राघवेंद्र ने इंडिया टाइम्स से बात करते हुए बताया था कि कृष्ण नामक उनका एक दोस्त अपने परिवार का एकलौता लड़का था और पढ़ा-लिखा भी था. बावजूद इसके उसने एक यात्रा के दौरान हेलमेट नहीं पहना, जोकि उसे भारी पड़ा. ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेस-वे पर बिना हेलमेट के बाइक चलाने की वजह से कृष्ण के सिर में चोट लगने से मौत हो गई थी. 2014 में घटी इस घटना ने राघवेंद्र को हिलाकर रख दिया.
कृष्ण राघवेंद्र का जिगरी दोस्त था. ऐसे में कृष्ण को खोने के बाद उन्होंने उसके परिवार को टूटते हुए देखा. राघवेंद्र के मुताबिक इस घटना ने उन्हें उन लोगों के दर्द का अहसास कराया, जिन्होंने कृष्ण की तरह बाइक हादसे में अपनो को खो दिया है. राघवेंद्र ने इस घटना के बाद तय किया के वो अपने दोस्त की तरह किसी को मरने नहीं देंगे और एक खास तरह का सड़क सुरक्षा अभियान शुरू करेंगे. तब से राघवेंद्र पुरानी किताबों के बदले लोगों को हैलमेट बांटने का काम कर रहे हैं.