जब भी वफ़ादारी की बात आती है तब सबसे पहला दिमाग में कुत्तों का आता है. शायद ही कुत्तों से ज़्यादा वफ़ादार कोई हो. इंसान और डॉग्स की दोस्ती के भी कई उदाहरण हमने देखे हैं. ऐसे बहुत से लोग हैं जो हज़ारों लाखों ख़र्च कर कुत्तों की नई-नई विदेशी नस्लें मंगवाते हैं और उन्हें बच्चों की तरह पालते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारतीय कुत्ते भी किसी तरह से कम नहीं. सूझबूझ से लेकर शारीरिक क्षमता में इनका कोई जवाब नहीं.
11 भारतीय कुत्ते की नस्ल
आपने अपने आस पास बहुत से स्वदेशी कुत्तों को देखा होगा लेकिन बहुत कम लोग इनके नाम और क्षमता के बारे में जानते हैं. तो चलिए आज आपको बताते हैं अपने देश के कुत्तों की नस्लों के बारे में:
1. परिआह (Pariah)
परिआह प्रजाति के कुत्ते दुनिया के सबसे पुरानी नस्लों में से एक हैं. मोहनजोदड़ो में भी इनके अवशेष मिले हैं. माना जाता है कि ये नस्ल 4500 साल पुरानी है. इन्हें साउथ एशियन डॉग्स भी कहा जाता है. ये वही कुत्ते हैं जिन्हें आप आम तौर पर गांव देहात से लेकर शहरों की तंग गलियों तक में दौड़ता देखते हैं. इस नस्ल के कुत्तों को पालना काफ़ी आसान है.
पहली बात ये कुत्ते यहां की जलवायु में इस तरह से ढल चुके हैं कि इनके बीमार पड़ने की गुंजाईश बहुत ही कम होती है. दूसरा ये जल्दी थकते नहीं हैं. इनके खाने पर आपको ज़्यादा खर्चा नहीं करना पड़ता बिस्कुट से लेकर दूध रोटी ब्रेड कुछ भी खा लेते हैं. रखरखाव में ज़्यादा खर्चा नहीं करना पड़ेगा आपको. एक तरफ जहां आप विदेशी नस्ल के कुत्तों पर 10 हज़ार तक खर्च करते हैं वहीं ये कुत्ते आपको बिल्कुल मुफ्त में मिल जाएंगे.
2. चिप्पीपराई (Chippiparai)
कुत्तों की ये वही नस्ल है जिसके बारे में अभी हाल ही में देश के प्रधानमंत्री ने मन की बात प्रोग्राम में चर्चा की थी. तमिलनाडु के मदुरै का एक शहर है चिप्पीपराई. कुत्तों की इस नसल का नाम इसी शहर के नाम पर रखा गया है. ज़्यादातर ये नस्ल तमिलनाडु में पाई जाती है. इसके साथ ही केरल के पेरियार झील के पास भी इस नस्ल के कुत्ते मिलेंगे आपको.
ये पक्के शिकारी कुत्ते हैं जिन्हें लोग विशेष रूप से शिकार करने के लिए ही पालते हैं. तेज़ भागना और 10 फुट से ज़्यादा लंबी छलांग लगाना इनकी सबसे बड़ी खूबी है. हलके पीले, काले, लाल भूरे, काले रंग के कोट और सिल्वर-ग्रे रंग में पाए जाने वाले ये कुत्ते अन्य कुत्तों के मुकाबले ज़्यादा समझदार होते हैं.
3. मुधोल हाउंड (Mudhol Hound)
कर्नाटक के बगलकोट इलाके के मुधोल में पाई जाने वाली कुत्तों की ये प्रजाति शिकार और रफ्तार के मामले में जर्मन शेफर्ड से दोगुनी तेज मानी जाती है. अमेरिका में इसे कैरावान हाउंड कहा जाता है. वहीं कर्नाटक के कई इलाकों में ये करवानी नाम से प्रचलित है. इसे खासतौर पर इसकी स्वामी भक्ति के लिये जाना जाता है. कर्नाटक चुनाव के समय पीएम मोदी ने वफादारी की मिसाल देते हुए इस नस्ल का नाम लिया था. अंग्रेजों के शासन काल में मुधौल हाउंड की प्रसिद्धि चरम पर थी. मुधोल हाउंड कुत्तों की वफ़ादारी, शिकारी गुण और चुस्ती के कारण ही 2017 में पहली बार देसी नस्ल के कुत्तों के रूप में इन्हें भारतीय सेना में शामिल किया गया था.
4. राजपलायम (Rajapalayam)
दूध के रंग जैसी सफ़ेद पतली खाल वाली कुत्तों की इस प्रजाति का नाम तमिलनाडु के विरुधुनगर जिले के राजापलयम शहर के नाम पर रखा गया है. लंबे और दुबले दिखने वाले ये कुत्ते जंगली सूअरों के शिकार और रखवाली के लिए जाने जाते हैं. आम कुत्तों का जीवन जहां 10 से 15 साल होता है वहीं राजापलयम नस्ल के कुत्ते 20 साल से ज़्यादा की ज़िंदगी जीते हैं. 9 जनवरी 2005 को भारतीय डाक सेवा द्वारा 4 स्वदेशी नस्ल के कुत्तों के सम्मान में पोस्टेज स्टांप इशू किया गया. जहां अन्य कुत्तों के स्टांप की कीमत 5 रुपये रखी गई वहीं राजपलायम नस्ल के स्टांप की कीमत 15 रुपये थी. राजापलायम नस्ल अपनी बहादुरी, बुद्धिमानी और चुस्ती के लिए जानी जाती है.
5. कन्नी (Kanni)
तमिल में कन्नी का मतलब होता है शुद्ध. इस नस्ल को इसकी वफ़ादारी और इसके सच्चे मन के लिए कन्नी नाम दिया गया है. इस नस्ल के कुत्ते किसी भी हाल में अपने मालिक और उनके घर की रक्षा करते हैं. इसके साथ ही जंगली जानवरों के शिकार के लिए भी लोग इन्हें पालते हैं. कन्नी और चिप्पीपराई नस्ल के कुत्ते लगभग एक जैसे ही दिखते हैं लेकिन दोनों की नस्लें अलग अलग हैं. पहले के समय में कन्नी नस्ल को ज़्यादातर जमींदार लोग पाला करते थे. ये कुत्ते उनकी फसलों और घर की रखवाली के काम आते थे. कन्नी नस्ल के कुत्तों की उम्र 14 से 16 तक होती है. ये 3000 से 8000 तक की कीमत में मिल जाते हैं.
6. गद्दी कुत्ता (Tibetan Mastiff)
आम तौर पर एक बात हमेशा कही जाती है कि कुत्तों का शेरों से क्या मुकाबला लेकिन अगर आप गद्दी कुत्ता उर्फ भोटिया नस्ल के कुत्तों की बात कर रहे हैं तो आपको अपनी बात गलत लग सकती है. हिमालयन प्रदेशों में मिलने वाले इस नस्ल के कुत्ते एक तरह से शेर की तरह ही दिखते हैं और ये सिर्फ दिखते ही नहीं बल्कि समय आने पर हिम तेंदुओं, चीते या गुलदार से भिड़ भी जाते हैं. ये हिमाचल, उत्तराखंड, कश्मीर जैसे हिमालयन प्रदेशों में पाए जाते हैं.
ये दुनिया की सबसे महंगी नस्लों में से एक तिब्बतियन मस्टिफ जैसे लगते हैं, ये भी माना जाता है कि गद्दी कुत्ता नस्ल तिब्बतियन मस्टिफ की ही क्रॉस ब्रीड है. हालांकि दोनों के दाम में ज़मीन आसमान का फर्क होता है. भोटिया कुत्तों को स्वामिभक्त माना जाता है. इन्हें यहां के चरवाहों द्वारा पाला जाता रहा है. इस नस्ल के दो कुत्ते 500 से ज़्यादा भेड़ों को संभाल लेते हैं और किसी खतरनाक जंगली जानवर के हमला करने पर अपने मालिक और भेड़ों को बचाने के लिए उन से भिड़ भी जाते हैं. ये जितना खाते हैं इनके अंदर ताकत भी उतनी ही होती है.
7. कोम्बाई (Kombai)
तमिलनाडु में पाई जाने वाली कुत्ते की नस्लें शिकार और घर की सुरक्षा के लिए जानी जाती हैं. कोम्बाई नस्ल भी इनसे अलग नहीं है. तमिलनाडु की अन्य डॉग ब्रीड की तरह कोम्बाई का नाम भी यहां के शहर कोम्बाई पर ही रखा गया है. अगर आप चाहते हैं कि आपके घर के बाहर कोई ऐसा बैठा हो जो चुप चाप नज़र रखे रहे और चुपके से घर में घुसने वाले की अच्छे से खबर ले तो कोम्बाई इसके लिए सबसे अच्छा विकल्प है. इसी साल सीआरपीएफ ने कोम्बाई नस्ल के कुत्तों को भर्ती किया है. ये चालक होते हैं, स्वामी भक्त होते हैं इसके साथ साथ ये ताकतवर भी हैं.
8. रामपुर ग्रेहाउंड (Rampur Greyhound)
20वीं शताब्दी के शुरुआत में रामपुर के नवाब अहमद अली खान ने अफगान हाउंड और इंग्लिश ग्रेहाउंड की क्रासब्रीड से तैयार की स्वदेशी नस्ल. जिसका नाम पड़ा रामपुर ग्रेहाउंड. इसे शिकार करने के मकसद से तैयार किया गया था तथा यह अपने इस काम में माहिर निकले. रामपुर ग्रेहाउंड किसी एक मास्टर की बात मानने वाले कुत्ते होते हैं. ये आपको एक जगह सुस्त पड़े दिखाई देंगे लेकिन समय पड़ने पर इनमें ज़बरदस्त फुर्ती दिखती है.
9. जोनंगी (Jonangi)
जोनंगी नस्ल के कुत्ते खासतौर पर आँध्रप्रदेश में पाए जाते हैं. इसके अलावा ये कर्नाटक, पश्चिमी बंगाल तथा तमिलनाडु के कुछ हिस्सों में भी पाए जाते हैं. इनके बेहद छोटे और मुलायम बाल इन्हें अन्य कुत्तों से अलग बनाते हैं.जोनंगी खेतों तथा घरों की रखवाली के लिए जाने जाते हैं. ये किसी एक व्यक्ति या एक परिवार के ही वफ़ादार होते हैं तथा उनकी ही बात मानते हैं.
इन्हें खास तौर पर शिकार तथा चरवाही के लिए पाला जाता है. इनकी एक सबसे बड़ी खूब ये है कि ये गड्ढा खोदने में माहिर होते हैं.
10. कुमाऊं मस्टिफ (Kumaon Mastiff)
कहते आज से 300 ईसा पूर्व सिकंदर अपने साथ एक कुत्ता लाया था. उसी कुत्ते की नस्ल अब यहां कुमाऊं मस्टिफ के नाम से जानी जाती है. एक तरह से ये पहाड़ों के रखवाले हैं. अपने मालिक के घर से लेकर उसके खेत तथा उनकी गाय, बकरी भेड़ों जैसे पशुओं की रक्षा करते हैं ये कुत्ते. अब इनकी संख्या बहुत कम रह गई है. बताया जाता है कि भारत में कुमाऊं मस्टिफ नस्ल के मात्र 150 से 200 कुत्ते ही बचे हैं.
11. बखरवाल (Bakharwal)
बखरवाल नस्ल के कुत्ते उत्तरी पाकिस्तान तथा भारत के जम्मू कश्मीर और हिमाचल के हिस्सों के अलावा अफगानिस्तान में भी पाए जाते हैं. ये खास तौर पर बकरवाल तथा गुर्जर जनजातियों द्वारा पाले जाते हैं.
बताया जाता है कि बखरवाल नस्ल के कुत्ते तिब्बतियन मस्टिफ तथा परिआह नस्ल की क्रॉसब्रीडिंग से तैयार किए गये हैं. कुत्तों की ये नस्ल दक्षिणी एशिया की सबसे पुरानी नस्ल है जो गुर्जर प्रजाति के साथ सालों से रह रही है. बखरवाल नस्ल की भी दो किस्में हैं. एक समान्य बखरवाल तथा दूसरी लद्दाखी बखरवाल. लद्दाखी बखरवाल एक सांस में काफ़ी देर तक भौंकने की क्षमता रखते हैं.
तो ये थे हमारी स्वदेशी नस्ल के कुछ कुत्ते. अगर आप इनके बारे में और अधिक जानेंगे तो पाएंगे कि इनमें से कई नस्लें ऐसी हैं जो विदेशी कुत्तों के मुकाबले ज़्यादा बेहतर हैं.