Ayodhya Ram Mandir : अयोध्या राम मंदिर में 22 जनवरी को भगवान राम की मूर्ति की स्थापना की जाएगी। जिसे लेकर भव्य तैयारियों की गई हैं। राम लल्ला की मूर्ति स्थापना के लिए जो शुभ मुहूर्त चुना गया है उसमें 4 सैकेंड बेहद खास हैं। आइए जानते हैं राम भगवान की स्थापना के लिए क्यों खास है 4 सैकेंड का मुहूर्त।
रामलला मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा जरूरी क्यों है
सवाल उठता है कि जो जगत को नियंता हैं ईश्वर हैं उनकी मूर्ति में आखिर प्राण प्रतिष्ठा की जरूरत क्या है। और हम मनुष्यों में ऐसी क्षमता और सामर्थ्य कहां है जो ईश्वर की प्रतिमा में प्राण प्रतिष्ठा दे पाएं। लेकिन ईश्वरीय प्रेरणा से शास्त्रों में प्राण प्रतिष्ठा का विधान बना हुआ है। इस विधान के अनुसार हम अपने ईश्वर की प्रतिमा को अपने जैसा प्राणवान बनाना चाहते हैं, उनसे अभिन्न संबंध स्थापित करना चाहते हैं, उनके अति निकट होना चाहते हैं, उनको अपने साथ अपने ही लोक में रखना चाहते हैं, उनके स्पंदन से स्वयं स्पंदित होना चाहते हैं। इसलिए ही मूर्ति की स्थापना के आरंभ में स्वयं द्वारा निर्मित मूर्ति में प्राण की प्रतिष्ठा दी जाती है।
रामलला मू्र्ति की प्राण प्रतिष्ठा मुहूर्त
पंचांग एवं अन्य घटकों को ध्यान में रखते हुए रामलला की मूर्ति को प्राण प्रतिष्ठा देने के लिए 22 जनवरी’ 2024 पौस माह के द्वादशी तिथि को अभिजीत मुहूर्त, इंद्र योग, मृगशिरा नक्षत्र, मेष लग्न एवं वृश्चिक नवांश को चुना गया है जो दिन के 12 बजकर 29 मिनट और 08 सेकंड से 12 बजकर 30 मिनट और 32 सेकंड तक अर्थात 84 सेकंड का होगा। इसी समय में प्रभु श्रीराम की मूर्ति को प्राण प्रतिष्ठा दी जाएगी।
इस मुहूर्त पर विचार करने पर सबसे पहले पौष मास का ध्यान आता है। शास्त्रों के अनुसार पौष माह में कोई भी मांगलिक कार्य, देव प्राण प्रतिष्ठा वर्जित है। पंचांग के अनुसार हमारे यहां सारी चीजें चंद्र माह के अनुसार तय की जाती है न कि सौर माह से। और चंद्र माह के अनुसार 22 जनवरी को पौष माह रहेगा। मुहूर्त चिंतामणि और नारद पुराण में यह कहा गया है कि- ‘सूर्य के उत्तरायण रहते माघ, फाल्गुन, वैशाख, आषाढ़, ज्येष्ठ माह में देव प्रतिष्ठा की जानी चाहिए।’ पौष माह की बात यहां नहीं की गयी है।
दूसरा सवाल यह उठता है कि प्राण प्रतिष्ठा के लिए भद्रा तिथि की को लिया गया है। मुहूर्तकार कहते हैं कि, भद्रा तिथि यदि सोमवार के साथ मिल जाए तो ‘मृत योग’ का निर्माण होता है। इसलिए यह किसी भी मांगलिक कार्य के लिए त्याज्य है। तीसरा सवाल यह उठता है कि, मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के लिए जो समय निर्धारित किया गया है वह लग्न मेष है जो एक चर लग्न है। मुहूर्त चिंतामणि के अनुसार- ‘स्थिर राशि या द्विस्वभाव राशि लग्न में हों तो देवताओं की प्रतिष्ठा शुभ होती है।
ऐसे में मूर्ति स्थापना के लिए चर लग्न भी कमजोर पक्ष है। चर लग्न, षष्ठेश, अष्टमेश एवं द्वादशेश की नवम भाव में उपस्थिति। नवम भाव एवं द्वादश भाव में पाप ग्रह मंगल, राहु की उपस्थिति। षष्ठेश और अष्टमेश का संबंध ईश्वरीय प्रकोप का संकेत दे रहे हैं। चाहे वह संक्रामक रोगों के प्रसरण के रूप में हो या प्राकृतिक अस्थिरता के रूप में हो। मार्च के अंतिम सप्ताह में एवं अप्रैल माह में 10 तारीख तथा 14 से 20 तारीख में ग्रहों का संचार प्रकृति के अस्थिर होने को बल प्रदान कर रहे हैं।
मुहूर्तकार के अनुसार लग्न में गुरु की उपस्थिति सवा लाख दोषों का निवारण करने वाला होता है। यह तो हुई सामने से कही जाने वाली बात। इस कथन में निहित एक और बात है जो अनकही है और वह है कि सवा लाख दोष होंगे तभी तो निवारण की बात आएगी।
नारद पुराण के अनुसार- ‘नवम भाव में पाप ग्रह धर्म को नष्ट करने वाले होते है। जबकि द्वादश भाव में पाप ग्रह व्यय को बढ़ने वाले होते हैं।’ यहां वर्तमान लिए गए मुहूर्त में नवम भाव एवं द्वादश भाव में मंगल एवं राहु की उपस्थिति है। निर्धारित मुहूर्त के अनुसार बनने वाली कुंडली में चंद्रमा हालांकि उच्च का है परन्तु द्वितीय भाव में है। मुहूर्त चिंतामणि के अनुसार लग्न से 3, 6, 11वें भाव में चंद्रमा देव प्रतिष्ठा के लिए शुभकारी होता है।
रामलला मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा में नवांश कुंडली का विचार
निर्धारित मुहूर्त के अनुसार बनने वाली नवांश कुंडली में लग्न में वृश्चिक राशि है जो कि स्थिर राशि है। परन्तु लग्न कुंडली का अष्टम भाव नवांश लग्न का निर्माण कर रहा है| अष्टम भाव का नवांश कुंडली का लग्न बनना भविष्य में आक्रामक षड्यंत्र का संकेत दे रहे हैं। मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के लिए 84 सेकंड का समय इस समय खूब चर्चा में हैं लेकिन ज्योतिषशास्त्र की बात करें तो काल गणना के अनुसार 4 सेकंड का एक प्राण होता है। देखना दिलचस्प होगा कि 84 सेकंड में ऐसा कौन सा 4 सेकंड होगा जब प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी। प्राण प्रतिष्ठा के लिए आवश्यक विधि विधान की शुरुआत तो पहले से हो जाएगी पर यह चार सेकंड ऐसे होंगे जब शिव संकल्प सहित अभिमंत्रित अक्षत डाला जाएगा।
कुंडली में जब अति सूक्ष्म गणना करनी होती है तो ज्योतिष हमें वर्ग कुंडली में षष्ठांश कुंडली को देखने की सलाह देता है। ऊपर वर्णित प्राण प्रतिष्ठा के शुभ मुहूर्त के अनुसार यदि षष्टियांश कुंडली को देखा जाए तो 12 बजकर 29 मिनट 08 सेकंड से लेकर 12 बजकर 30 मिनट 20 सेकंड बजे तक षष्टियांश लग्न होगा कर्क जो चर लग्न होगा जिसे स्थायित्व के लिए उपयुक्त नहीं माना जाता है।
12 बजकर 30 मिनट 21 सेकंड बजे षष्टियांश लग्न सिंह हो जाएगा। जो स्थिर लग्न हो होगा| जन्म कुंडली का पंचम भाव इस कुंडली का लग्न बन जाएगा, नवम भाव में उच्च के लग्नेश की उपस्थिति गुरु के साथ होगी और सभी धर्म त्रिकोण गुरु से दृष्ट होंगे। कहने का तात्पर्य यह कि 12 बजकर 30 मिनट 21 सेकंड बजे से 12 बजकर 30 मिनट 25 सेकंड बजे का समय तथा 12 बजकर 30 मिनट 25 सेकंड बजे से 12 बजकर 30 मिनट 29 सेकंड बजे तक का समय प्राण प्रतिष्ठा के लिए सर्वाधिक उपयुक्त होगा।
तमाम ज्योतिषीय विश्लेषण ज्योतिषी की अपनी गणना और समझ पर आधारित है। यह आलेख किसी किसी की भावना और गणना पर सवाल नहीं उठाता है। बल्कि ज्योतिषी द्वारा अपना पक्ष भर रखा गया है, जो उनकी शोध का एक विषय है।