मुल्ला दो प्याजा: अकबर के 9 रत्नों में शामिल एक तिकड़मबाज जिसका नाम पड़ा उसी की डिश ‘मुर्गी दो प्याजा’ पर

Indiatimes

मुगल बादशाह अकबर के दरबार में शामिल 9 रत्नों में बीरबल, फैजी और तानसेन का नाम बहुत ही मशहूर है. इसके अलावा ‘मुल्ला दो प्याज़ा’ (Mulla Do Piyaza) नाम का एक शख्स भी इन्हीं नवरत्नों में शामिल था. इन्हें आप जुगाड़ू किस्म का व्यक्ति भी कह सकते हैं, क्योंकि ये किसी भी तरह से अन्य नवरत्नों की तुलना में कोई मशहूर शख्स नहीं थे, लेकिन अपनी तिकड़मबाजी से बादशाह अकबर को प्रभावित करने में कामयाब रहे थे.

मुल्ला ने पहले शाही मुर्गीखाने में अपनी पकड़ बनाई और यहीं से जुगाड़ लगाकर अकबर की नजरों में आ गए. फिर अपनी बुद्धिमत्ता और चालाकी से अकबर के नौ रत्नों में शामिल हो गए, लेकिन कौन था मुल्ला दो प्याज़ा और कहां से आया था ? इस नाम के पीछे की वजह भी काफी दिलचस्प है.

इनकी शरारतों की वजह से पिता ने छोड़ा घर

अपने मां-बाप के दुलारे मुल्ला दो प्याज़ा बचपन में बहुत ही शरारती थे. इनका वास्तविक नाम अबुल हसन था.

Father of Mulla DO PyazaRepresentative Image

इनके पिता मोहसिन एक शिक्षक थे, जो अपने बेटे को भी अच्छी तालीम देना चाहते थे, लेकिन अबुल को तो कुछ और ही पसंद था. वह शरारती जरुर थे, लेकिन उनके जहन में कुछ न कुछ हमेशा चलता रहता था. वह घंटों किताबों के साथ वक्त बिताते और फिर मां की डांट खाने के बाद कुछ कुरान के पारों को हिफ्ज़ भी कर लिया था.

अबुल हसन तक़रीबन 9 साल के रहे होंगे, जब इनकी मां की मौत हो गई. छोटी सी उम्र में अबुल हसन के ऊपर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा. पिता ने दूसरी शादी कर ली. सौतेली मां की इनसे जरा भी नहीं पटती थी.

बहरहाल, इनके शरारत का इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि इन्होंने मजे लेने और सबक सिखाने के लिए एक महिला को अपने घर में बंद कर दिया. जिसकी वजह से इनके बाप और सौतेली मां के बीच जमकर लड़ाई हुई. जिससे निराश होकर इनके पिता घर छोड़कर चले गए.

एक ईरानी कबीले के साथ पहुंचे ईरान

Mulla Do PayazaRepresentative Image/Pinterest

हालांकि, बाद में अबुल हसन को अपनी इस हरकत पर बहुत पछतावा हुआ. जिसके बाद इनको लोगों के ताने भी सुनने पड़े. फिर ये अपने पिता को ढूंढने निकल पड़े. इन्होंने आस-पास के कस्बों में बहुत ढूंढा, मगर इनके पिता का कुछ पता नहीं चल सका. इनकी सौतेली मां भी कुछ दिन अपने पति का इंतजार करने के बाद अपने मायके चली गई.

इधर, अबुल हसन भी अपने पिता की तलाश में मक्का शहर आ गए, यहां पर भी अपने पिता को बहुत तलाश किया, लेकिन उनका कुछ पता नहीं चला. मक्का में इन्हें एक ईरानी कबीला मिला जिसके सरदार का नाम अकबर अली था. उसने इनकी परेशान हालत देखकर पूरा माजरा पूछा.

जब अबुल हसन ने अपनी आपबीती बताई, तो सरदार को इन के ऊपर रहम आ गया और वो इन्हें अपने साथ ईरान के तेहरान शहर ले आए.

फिर हुमायूं के साथ आए भारत

Mulla Do PiyazaSW

जब ये ईरान पहुंचे, ठीक उसी समय हुमायूं भी शेर शाह सूरी से शिकस्त खाने के बाद तेहरान में मदद के लिए पहुंचा था. उस वक़्त हुमायूं का सबसे खास साथी सिपहसालार मिर्ज़ा बख्श हुआ करता था. सरदार अकबर अली की वजह से इनकी भी मिर्ज़ा बख्श से गहरी दोस्ती हो गई.

जब हुमायूं ईरान से मदद लेकर वापस भारत को विजय करने की इच्छा के साथ लौट रहा था, तो उसने अपने साथ मिर्ज़ा बख्श को साथ ले लिया. हुमायूं की फौज ने काबुल और अफगानिस्तान पर अपना विजयी पताका लहराया.

इस समय तक भारत में इनका कट्टर प्रतिद्वंद्वी शेरशाह सूरी की मौत हो चुकी थी. जिसके बाद हुमायूं के लिए अब भारत का रास्ता एकदम साफ था. तब अबुल हसन भी इनकी सेना के साथ भारत आ गए. हालांकि, काबुल के युद्ध में इनके अज़ीज़ दोस्त मिर्ज़ा बख्श की मौत हो गई.

शाही दावत का वो ‘मुर्गा दो प्याज़ा’ या ‘चिकन दो प्याजा’

Representative Image Representative Image

अबुल हसन मुगल सेना के साथ ईरान से भारत आ गए. हुमायूं के दिल्ली पर कब्ज़ा करने के बाद वह एक मस्जिद में इमामत करने लगे. इमाम बनने के बाद वे अपनी खूबसूरत आवाज़ के लिए मशहूर हो गए. इमाम होने की वजह से लोग इनसे सलाह मशविरा करने के लिए भी इनके पास आने लगे. समय के साथ इनकी लोकप्रियता बढ़ने लगी. इस बीच शाही दरबारियों से भी इनकी मुलाक़ात हुई. इनमें एक नाम अकबर के नौरत्नों में से एक फैज़ अहमद फैजी का भी शामिल है. फिर क्या था अबुल हसन के साथ इनकी गहरी दोस्ती हो गई. एक बार फैजी ने इनको अपने घर पर दावत के लिए आमंत्रित किया.

अबुल हसन इनके घर आए और शाही दावत का लुत्फ़ उठाया. यहां इन्हें एक स्वादिष्ट पकवान बड़ा पसंद आया. खाना खाने के बाद अबुल हसन ने फैजी से इस लज़ीज़ डिश के बारे में पूछा, तो उन्होंने इसका नाम ‘मुर्गा दो प्याज़ा’ यानी ‘चिकन दो प्याजा’ बताया.

Chicken Do PyazaChicken Do Pyaza

ये डिश इन्हें इतनी पसंद आई कि इसके बाद इनको कहीं भी दावत मिलती, तो मुर्गा दो प्याज़ा की ये डिमांड तक कर बैठते थे.

अकबर ने दिया ‘दो प्याज़ा’ का लकब

जब ये दिल्ली में मशहूर हुए तो ऐसे में इनका नाम बादशाह अकबर के साथ जुड़ना स्वाभाविक था. शाही लोगों खासकर फैजी से दोस्ती होते ही ये भी उनके साथ अकबर के दरबार में जाने लगे.

आगे, इन्हें मुगल दरबार में बावर्ची खाने की ज़िम्मेदारी दी गई, मुख्य रूप से इन्हें मुर्गी खाने का खानसामा बना दिया गया. कहते हैं कि जब अकबर को इनके पसंदीदा खाना ‘मुर्गा दो प्याज़ा’ के बारे में पता चला तो बादशाह ने इनको ‘दो प्याज़ा’ का लकब दे दिया, जिसके बाद ये ‘मुल्ला दो प्याज़ा’ के नाम से मशहूर हो गए.

Mulla Do PyazaHZ

हालांकि, इनकी दिली इच्छा तो अकबर के दरबारियों में शामिल होने की थी. इसके लिए इन्हें सबसे पहले अकबर को अपने काम से खुश करना था. लिहाजा, ये इसकी जुगत में लग गए.

एक बार, जब अकबर के पास मुर्गी खाने का लेखा-जोखा पहुंचा, तो वे हैरान हो गए. असल में इसके खर्च में काफी गिरावट आई थी. ऐसे में अकबर ने मुल्ला दो प्याजा को बुलवाया और उनसे पूछा कि ऐसा कैसे हो गया? मुल्ला ने बताया की शाही रसोई से बचे खुचे खाने को ये मुर्गियों को खिलाते हैं, जिससे काफी बचत हुई है. तब अकबर ने खुश होकर इनको शाही पुस्तकालय का ज़िम्मा सौंप दिया.

यहां भी लगाई तिकड़म और फिर बने गृह मंत्री

मुल्ला को अकबर के नवरत्नों में शामिल होना था, इसलिए वह धैर्य के साथ अपने काम में जुटे रहे. वह शाही पुस्तकालय तक महदूद नहीं होना चाहते थे.

बहरहाल, एक बार जब अकबर शाही पुस्तकालय गए तो इन्होंने किताबों को ज़री और मखमल से कवर देखा, तो बहुत खुश हुए और उन्होंने फिर से मुल्ला दो प्याज़ा को तलब किया. मुल्ला दो प्याज़ा ने बताया कि वह जनता के द्वारा लाए गए फरियाद कपड़ों का इस्तेमाल करके शाही दर्जी से किताबों का खोल बनवा लेते थे. मुल्ला की बुद्धिमानी से प्रभावित हो कर अकबर ने उन्हें शाही दरबार में जगह दे दी.

Mulla Do PyazaRepresentative Image

इसके बाद ये अकबर को शेर-शायरी के साथ ही लतीफे भी सुनाया करते थे. फिर ये अपनी तिकड़म से अकबर के नौ रत्नों में शामिल हो गए. वैसे, इन्हें अकबर के दरबार का गृह मंत्री भी कहा जाता है. माना जाता है कि अकबर के राज्य की सुरक्षा की जिम्मदारी इन्हीं के कंधों पर थी. लेकिन, इस बारे में इतिहासकारों में मतभेद भी है.

बहरहाल, जब मुल्ला दो प्याज़ा बादशाह अकबर के साथ दक्कन की ओर गए थे, तब अहमदाबाद में इनकी तबियत ख़राब हो गई. हैदराबाद के पास पहुंचे तो अधिक बीमार हो गए. जिसकी वजह से अबुल हसन उर्फ मुल्ला दो प्याजा ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया और वहीं इन्हें सुपुर्द-ए-खाक कर दिया गया.

बहरहाल, ये थी एक आम शख्स अबुल हसन की मुल्ला दो प्याज़ा बनने और अकबर के नवरत्नों में शामिल होने की कहानी. अगर आपके पास भी मुल्ला दो प्याजा के बारे में कोई रोचक जानकारी है, तो कृपया नीचे कमेंट बॉक्स में अवश्य शेयर करें.