Sawan Kanwar Yatra 2023: सावन मास के पहले दिन से कांवड़ यात्रा की शुरुआत हो जाती है, इस बार 4 जुलाई दिन मंगवार से यह यात्रा शुरू होने जा रही है। सावन मास के पहले दिन मंगलागौरी का व्रत भी किया जाएगा। वहीं सावन मास में अधिक मास भी होने की वजह से इसका महत्व और भी बढ़ गया है। आइए जानते हैं सावन मास का महत्व और क्या है मलमास…
4 जुलाई से शुरू हो जाएगी कांवड़ यात्रा
सावन दो महीने का होने से बहुत से श्रद्धालु इस असमंजस में है कि कांवड़ यात्रा कब तक चलेगी। इस बारे में धर्म गुरु कहते हैं कि कांवड़ यात्रा तो सावन शिवरात्रि तक ही चलेगी। कांवड़ यात्रा सावन मास के प्रारंभ होने पर ही शुरू होती है और सावन शिवरात्रि पर विश्राम लेती है। इस बार सावन मास 4 जुलाई से शुरू हो रहा है और उसी दिन से कांवड़ यात्रा भी शुरू हो जाएगी। सावन शिवरात्रि का जल 16 जुलाई तक चढ़ेगा और उसी दिन तक कांवड़ यात्रा चलेगी। इसके बाद सावन मास में व्यक्तिगत रूप से कांवड़ लाना चाहे तो ला सकता है, मगर कांवड़ यात्रा 16 जुलाई तक ही चलेगी।
कांवड़ यात्रा भी दो महीने तक
इस बार अधिकमास या मलमास की वजह से सावन का महीना दो महीने तक चलेगा, जिसके कारण शिवभक्तों को यानी कांवड़ियों को अपनी कांवड़ लाने के लिए और भगवान शिव की पूजा करने के लिए ज्यादा समय मिल सकेगा। शिव पूजन के लिए कुछ विशेष तिथियों का उल्लेख कर रहे हैं, जिसमे भगवान महादेव की विशेष पूजा की जा सकती है। ये पांच तिथियां निम्न हैं :
- 15 जुलाई, 2023, शनिवार, शिवरात्रि, प्रदोष व्रत
- 30 जुलाई, 2023 रविवार, प्रदोष व्रत
- 13 अगस्त, 2023 रविवार, प्रदोष व्रत
- 14 अगस्त, 2023 सोमवार, शिवरात्रि
- 28 अगस्त, 2023, सोमवार, प्रदोष व्रत
सावन मास का महत्व
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, सावन का महीना देवों के देव महादेव को समर्पित है। ऐसा माना जाता है कि इस पूरे महीने में जो भी उपासक भगवान महादेव का पूजन, अर्चन, अभिवंदन और स्तवन पूरे मनोयोग और विधिविधान के साथ करता है, आशुतोष उस पर प्रसन्न होते हैं और उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी कर देते हैं। यह अक्सर कहा जाता है कि भगवान शिव अपने उपासकों से बहुत जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। इस पूरे महीने की पवित्रता इसी से सिद्ध हो जाती है कि इस पूरे महीने में मांसाहार वर्जित कहा जाता है। इस तरह के निषेध के पीछे बहुत से कारण हैं। इसी सावन के महीने में भगवान महादेव के भक्त कांवडियों के रूप में हरिद्धार से गंगाजल भरकर कांवड़ में धरकर सैंकड़ों किमी का सफर तय करते हुए शिवलायों में गंगाजल चढ़ाते हैं। सावन के महीने में हर तरफ हर हर महादेव का जयकारा गुंजायमान होता रहता है।
18 जुलाई से शुरू मलमास
मलमास या अधिकमास की शुरुआत 18 जुलाई 2023 से शुरू होकर 16 अगस्त 2023 तक चलेगा। वहीं सावन मास 4 जुलाई से आरंभ होकर 31 अगस्त तक यानी लगभग दो महीने तक चलेगा। यह संयोग लगभग 19 वर्षों बाद घटित हो रहा है, जिसे ज्योतिविंदो के अनुसार, भगवान के पूजन की दृष्टिकोण से यह बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।
हर 3 साल में आता है अधिकमास
अधिकमास को मलमास, पुरुषोत्तम मास के नाम से भी जाना जाता है। पुरुषोत्तम का अर्थ सर्वश्रेष्ठ होता है और भगवान विष्णु जो सृष्टि के सभी पुरुषों में सर्वश्रेष्ठ हैं, उनको समर्पित होने से ही इस मास को पुरुषोत्तम मास कहा जाता है। ज्योतिषाचार्य बताते हैं कि हिरण्यकश्यप का वध करने के लिए भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लिया था और एक अतिरिक्त मास का निर्माण किया था। इसके अलावा सौर वर्ष व चंद्र वर्ष में में हर वर्ष होने वाले 11 दिन के अंतर को संतुलित करने के लिए हर 3 वर्ष में चांग में एक अतिरिक्त महीना जोड़ा जाता है। यही महीना अधिमास, मलमास व पुरुषोत्तम मास कहलाता है। इस बार यह 18 जुलाई से 16 अगस्त तक रहेगा।
क्या है मलमास?
प्राचीन भारतीय चिंतन परंपरा के अनुसार, हिंदू धर्म में जितने भी व्रत या त्योहार आते हैं, उनकी गणना पंचांग के अनुसार होती है। तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करणों से युक्त पंतांग ही हिंदुओं के सभी पर्वों का निर्धारण करता है। इसी पंचांग की गणना के मुताबिक ही प्राय: हर तीन वर्ष बाद तेरहवें देसी महीने का आगमन होता है, जिस ज्योतिषाचार्य की भाषा में मलमास या पुरुषोत्तम माल कहा जाता है। जनसामान्य इसे अधिक मास के नाम से भी जानते हैं। भारतीय हिंदू कैलेंडर सौम मास और चंद्र मास की गणना के हिसाब से चलता है। सूर्य का एक वर्ष 365 दिन का होता है और चंद्रमा का एक वर्ष 354 दिनों का माना जाता है। इस तरह सूर्य व चंद्र वर्षों के बीच लगभगव 11 दिनों का अंतर आता है, जो हर तीन साल में तैंतीस दिन या लगभग एक महीने के हो जाता है। इसी अंतर के समायोजन के लिए हर तीन साल में एक अतिरिक्त चंद्र मास हमारे सामने अधिक मास के रूप आ जाता है।
इसे क्यों कहते हैं पुरुषोत्तम मास
पुरुषोत्तम मास कहे जाने का एक विशेष कारण है। कहा जाता है कि प्राचीन काल में भगवान विष्णु से मलमान ने कहा कि हे भगवान, मेरा स्वामी कौन सा देवता होगा क्योंकि सभी देवताओं ने मलमास का स्वामी होने से इनकार दिया था। ऐसे स्थिति को देखकर भगवान विष्णु ने स्वयं मलमास को कहा कि मैं तुम्हारा स्वामी होउंगा। बस तभी से इस महीने में भगवान विष्णु का ही विशेष पूजन और अर्चन किया जाने लगा।