हम सालों से सुनते आ रहे हैं कि लोग अच्छे रोजगार की तलाश में गांव छोड़कर शहर की तरफ जाते हैं, लेकिन गांव की सोच और एकता अगर हिमाचल के इस गांव जैसी हो तो व्यापार करने के लिए शहर वालों को ऐसे गांवों की तरफ आना पड़ता है. हम बात कर रहे हैं हिमाचल के उस गांव की जो अपनी मेहनत के दम पर एशिया का सबसे अमीर गांव बन गया.
एशिया का सबसे अमीर गांव है मड़ावग
हिमाचल में सेबों की इतनी पैदावार है कि इसे दुनियाभर में एपल स्टेट के नाम से जाना जाता है. सेब की इसी खेती ने शिमला जिले के चौपाल के मड़ावग गांव को एशिया का सबसे अमीर गांव बना दिया. यहां सेबों के माध्यम से होने वाली कमाई का ये आलम है कि कि अब मड़ावग में सेब की खेती करने वाला हर परिवार करोड़पति हो गया है.
35 लाख से 80 कमा रहे किसान
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार यदि मड़ावग में सालाना ये की बात की जाए तो यहां हर परिवार औसतन सालाना 35 लाख से 80 लाख के बीच में कमाई कर रहा है. आय का कम व ज्यादा होना सेब की फसल और रेट पर निर्भर रहता है. मड़ावग में 225 से ज्यादा परिवार हैं, जो हर साल औसत 150 करोड़ से 175 करोड़ रुपए का सेब बेच रहे हैं.
सेब की खेती के लिए केवल मड़ावग ही इकलौता गांव नहीं है जो अच्छा कर रहा है. इससे पहले एशिया के सबसे अमीर गांव का खिताब शिमला जिले के ही क्यारी गांव के नाम था. इन गांवों की तरक्की को देख आसपास के गांव भी अच्छा कर रहे हैं. मड़ावग के पास का गांव दशोली गांव भी सेब के लिए प्रदेश में पहचान बना रहा है.
अन्य गांव भी कर रहे अच्छा
दशोही गांव के 12 से 13 परिवार देश में सबसे बेहतर क्वालिटी का सेब पैदा कर रहे हैं. दशोली में छोटे स्तर पर सेब की खेती करने वाला बागवान 700 से 1000 पेटी सेब तैयार कर रहा. वहीं अगर बड़े बगवानों की बात करें तो वे 12 हजार से 15 हजार पेटी सेब तैयार कर रहे हैं. दशोली में बागवानों के बगीचे जिस ऊंचाई पर हैं उसे सेब की खेती के लिए सबसे बेहतर माना जाता है. यहां 8000 से 8500 फीट तक की ऊंचाई है.
बता दें कि शिमला जिले के चौपाल तहसील के अंतर्गत आने वाला मड़ावग गांव शिमला से लगभग 90 किलोमीटर दूरी पर स्थित है. 2200 से ज्यादा आबादी वाले इस गांव में सभी लोगों के पास आलीशान घर हैं. इसके साथ ही यहां के लोग सेब की खेती के लिए लैटेस्ट टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर रहे हैं.
क्षेत्र में सेब की खेती का इतिहास
मड़ावग गांव में सेब की खेती का इतिहास बहुत पुराना है. इसे साल 1953-54 में पहली बार चइयां राम मेहता ने शुरू किया था. उन दिनों क्षेत्र में लोग मुख्य रूप से आलू की खेती कर अपनी आजीविका चला रहे थे लेकिन जेलदार बुद्धि सिंह और काना सिंह डोगरा ने स्थानीय लोगों को सेब की खेती अपनाने के लिए प्रेरित किया.
हालांकि शुरुआत ने बहुत कम लोगों ने सेब की खेती को अपनाया. समय के साथ सेब की खेती से होने वाले मुनाफे ने अन्य लोगों को भी इसकी तरफ आकर्षित किया. 1980 तक अधिकतर लोग सेब के बगीचे लगा चुके थे. साल 2000 के बाद मड़ावग क्षेत्र सेब उत्पादन की वजह पूरे देश भर में जाना जाने लगा. अब यहां के बागवान सेब की आधुनिक तकनीक HDP (हाई डेन्सिटी प्लांटेशन) की ओर आकर्षित हो रहे हैं.