दिल्ली का श्री चंद अखाड़ा 90 सालों से निभा रहा अपनी जिम्मेवारी, निशुल्क नए पहलवानों को कर रहा तैयार

दिल्ली में कुश्ती की प्राचीन परंपरा को जीवंत रखने के लिए दिल्ली का सबसे प्राचीन अखाड़ा आज भी पहलवानों को तैयार करने में अपनी अहम भूमिका निभा रहा है. कश्मीरी गेट इलाके में यमुना किनारे कुदसिया घाट के पास श्री चंद अखाड़े ने देश के बड़े नामी-ग्रामी पहलवान दिए हैं. जिन्होंने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन किया है. अब इस अखाड़े में मिट्टी में कुश्ती की बारीकियां सीखकर कर देश के लिए नए पहलवान तैयार किए जा रहे है.

ईटीवी भारत से बात करते हुए इस अखाड़े में रहकर तैयार हुए नेशनल स्विमर विक्रम वशिष्ठ ने बताया कि यह दिल्ली का सबसे प्राचीन अखाड़ा है. साल 1936 में इस अखाड़े को जुगल किशोर बिरला ने पहलवान श्री चंद पहलवान को समर्पित किया था. उसके बाद से यहां पर मास्टर चंदगी राम, सतपाल जैसे कई बड़े पहलवान तैयार हुए जिन्होंने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर देश का नाम रोशन किया. यह अखाड़ा आज भी देश के लिए मिट्टी में कुश्ती कर नई पौध को तैयार कर रहा है, जो यहां से ट्रेंड होकर मेट पर कुश्ती करते हैं.

नेशनल स्विमर विक्रम वशिष्ठ बताते हैं कि उन्होंने खुद भी इसी अखाड़े में कुश्ती की बारीकियां को बड़ी नजदीक से सीखा है. हालांकि वह खुद नेशनल स्विमर है, जिन्होंने यमुना में तैराकी कर खुद को ट्रेंड किया और राष्ट्रीय स्तर पर कई मेडल भी जीत चुके हैं. इस अखाड़े में निशुल्क पहलवानों को कुश्ती के लिए तैयार किया जाता है और हर माह के पहले रविवार को यहां पर कुश्ती का दंगल भी कराया जाता है. जिसे देखने के लिए कुश्ती में रुचि रखने वाले लोग भी आते हैं .

करीब 90 सालों से यह अखाड़ा युवा पीढ़ी को मिट्टी में कुश्ती के गुर सीखते हैं. अब जहां दिल्ली के अंदर जगह की कमी है और बड़े अखाड़े भी है. पहलवानों को मिट्टी में कुश्ती करने के लिए जगह नहीं मिलती तो वह यहां पर आकर दंगल करते हैं . इस जैसे कुछ और अखाड़े देश की राजधानी दिल्ली में है जो कुश्ती की प्राचीन, पारंपरिक और सांस्कृतिक शैली को संजोए रखा है.