कैसी है राजकुमार हिरानी और शाहरुख खान की जोड़ी की पहली फिल्‍म, टिकट खरीदने से पहले पढ़ लें ‘डंकी’ का ये ड‍िटेल मूवी रिव्‍यू

‘डंकी का मतलब होता है, किसी देश में अवैध रूप से घुसपैठ करने के लिए अपनाया जाने वाला रास्ता। अर्थपूर्ण और संवेदनशील सिनेमा में अपनी साख रखने वाले निर्देशक राजकुमार हिरानी की ‘डंकी’ अधूरी आकांक्षाओं, साधनों और सीमाओं से परे ख्वाबों को उड़ान देने वाली कहानी है। ‘पठान’ और ‘जवान’ की अभूतपूर्व कामयाबी के बाद दर्शकों को शाहरुख-हिरानी की इस जोड़ी वाली फिल्म का बेसब्री से इंतजार था। साल 2023 की विदाई के रूप में फिल्म सिनेमाहॉल में है। जैसा कि अपेक्षित था सुबह-सवेरे के पहले शो में दर्शक खचाखच भरे थे। किंग खान की एंट्री पर खूब सीटियां और तालियां भी बजी और जब लोग सिनेमा हॉल से बाहर निकले, तो सभी के चेहरों पर मुस्कान थी।

‘डंकी’ की कहानी

ब्रेन ट्यूमर की शिकार मनु (तापसी पन्नू) अस्पताल से भागकर अपने वकील के पास इसलिए आती है, क्योंकि उसे अपने देश भारत लौटना है। अपनी बीमारी के कारण उसके पास जिंदगी के गिने-चुने दिन बाकी हैं। 25 साल पहले उसने अपने दोस्तों बुग्गु (विकर्म कोचर) और बल्ली (अनिल ग्रोवर) के साथ अपना देश छोड़ दिया था। ये लोग इलिगल इमिग्रेंट्स बनकर लंदन में पैसे कमाकर अपने घर-परिवार के बिगड़े हालातों को संवारने की जिद लेकर आए थे। मगर अब उसे लगता है देश वापसी का ये काम उसके लिए सिर्फ और सिर्फ हार्डी (शाहरुख खान) कर सकता है। इसके बाद कहानी फ्लैशनबैक में चली जाती है।

मनु, बुग्गु, बल्ली और सुखी (विकी कौशल) की बस एक ही धुन है कि वे किसी तरह लंदन पहुंच जाएं। मनु को अपना गिरवी रखा घर छुड़वाने के लिए पैसे चाहिए, तो बुग्गु और बल्ली भी घर के खस्ता हालात के कारण लंदन जाना चाहते हैं। सुखी लंदन में अपने पति की घरेलू हिंसा का शिकार अपनी प्रेमिका को वापस लाना चाहता है। लंदन जाने के फर्जी वीजा में इनके काफी पैसे जाया हो जाते हैं, मगर इन्हें रास्ता नहीं मिलता। तभी इनके कस्बे लाल्टू में एक जांबाज फौजी हार्डी पहुंचता है। वह हाथ पर गुदवाए एक ऐसे टैटू वाले शख्स की तलाश में है, जिसने कई साल पहले उसकी जान बचाई थी। हार्डी की मुलाकत जब मनु से होती है, तो पता चलता है कि वह शख्स मनु का भाई था, जो हादसे में गुजर चुका है। यहां हार्डी इन युवाओं की आर्थिक दिक्कतों और सपनों से वाकिफ होता है और विदेश जाने में उनका साथ देने को तैयार हो जाता है।

अब हार्डी को मनु से प्यार भी हो गया है। इसी बीच सुखी अपनी प्रेमिका की आत्महत्या की खबर सुनकर खुद भी खुदकशी कर लेता है। यूके जाने को प्रतिबद्ध ये तीनों वीजा घोटाला, नकली शादी, नकली स्टूडेंट आईडी और एग्जाम्स के तमाम हथकंडे अपनाते हैं, मगर जब नाकामी हाथ लगती है, तो ये डंकी मारने (पाकिस्तान-अफगानिस्तान के रास्ते अवैध रूप से यूके में प्रवेश करने का रूट) का फैसला करते हैं। वो इस बात से अनजान हैं कि ये गैरकानूनी रास्ता कितना खतरनाक और जानलेवा साबित हो सकता है। अंततः ये सभी वहां पहुंचते हैं, मगर फिर हार्डी को अपने देश वापिस भेज दिया जाता है। अब 25 साल बाद मनु ने हार्डी के सामने गुहार लगाई है कि वह उन लोगों को अपने देश वापिस ले जाए। क्या हार्डी इन लोगों की घर वापसी करवा पाएगा? क्या वह मनु की आखिरी ख्वाहिश पूरी कर पाएगा? क्या इनका 25 साल का अधूरा प्रेम पूर्णता तक पहुंच पाएगा? इन सारे सवालों के जवाब के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी।

‘डंकी’ का ट्रेलर

‘डंकी’ मूवी रिव्‍यू

चार राष्ट्रीय पुरस्कार और ग्यारह फिल्मफेयर पुरस्कार पा चुके राजू हिरानी ‘लगे रहो मुन्नाभाई’, ‘मुन्नाभाई एमबीबीएस’, ‘थ्री इडियट्स’, ‘पीके’ और ‘संजू’ जैसी फिल्में दे चुके हैं। उन्‍होंने सिनेमा की धारा को मोड़ने का काम किया है। जाहिर है ऐसे फिल्मकार के साथ जब SRK जैसा चमकता सितारा हो, तो अपेक्षाएं बढ़ जाती हैं। मगर कहना पड़ेगा कि राजकुमार हिरानी की इस फिल्‍म का फर्स्ट हाफ स्लो है। वे चरित्रों के निर्माण और उनको स्थापित करने में काफी वक्त लगा देते हैं। विदेश जाने के सुनहरे सपनों के पीछे भागने वाले की वहां वास्तव में क्या हालत होती है, ये मुद्दा इंटरवल पर आता है।

फिल्म में डेप्थ की कमी खलती है। हालांकि सेकंड हाफ में उन्होंने कहानी को मजबूती से संभाल लिया है। विदेश की धरती पर अवैध रूप से प्रवेश करने की मार्मिक प्रक्रिया को उन्होंने वास्तविक ढंग से दर्शाया है। फिल्म के अंत में उन्होंने हर साल सुनहरे भविष्य की कामना करने वाले लाखों लोगों की त्रासदी को आंकड़ों और फोटोज के माधयम से भी दर्शाया है। राजू हिरानी अपने स्टाइल में आज से 25 साल पहले की दोस्ती, रोमांस और सपनों को चेज करने की कहानी को पंजाब और लंदन के माध्यम से दर्शाते हैं। सीके मुरलीधरन, मानुष नंदन, अमित राय, कुमार पंकज जैसे सिनेमैटोग्राफर की टीम ने दमदार काम किया है।

‘डंकी’ के फर्स्ट हाफ को थोड़ा क्रिस्प किया जा सकता था। प्रीतम के संगीत में, ‘लुट्ट पुट्ट गया’, ‘ओ माही’, ‘मैं तेरा रस्ता देखूंगा’ जैसे गाने सूदिंग बन पड़े हैं। पिछ्ले कुछ समय से ‘पठान’, ‘जवान’ और ‘एनिमल’ जैसी एक्शन फिल्मों के आदी हो चुके दर्शकों के लिए ये फिल्म थोड़ी सिंपल भी साबित हो सकती है। माना कि ये राजू हिरानी का सर्वोत्कृष्ट काम नहीं है, मगर अपनी जड़ों की ओर लौटने की चाहत रखने वाले किरदारों से सजी ये फिल्म आपको फीलगुड जरूर करवाती है।

फिल्म की पूरी स्टारकास्ट की परफॉर्मेंस फिल्म का प्लस पॉइंट है। शाहरुख एक बार फिर अपने अंदाज में एक्शन, इमोशन, रोमांस और हीरोइज्म में चार्मर साबित होते हैं। अपनी पिछली दो फिल्मों में मार-धाड़ से परे इस बार SRK की परफॉर्मेंस में मासूमियत साफ दिखती है। मनु के रूप में तापसी ने खूब अच्छा काम किया है। वे पंजाबी कुड़ी को जी गई हैं। कहानी में 25 साल के टाइम ट्रेवल को भी ये दोनों कलाकार खूबसूरती से निभाते हैं। सुखी की छोटी-सी भूमिका में विकी कौशल बहुत बड़ा इंपैक्ट छोड़ते हैं। उन्होंने एक हताश और बेचैन प्रेमी को खूबी से निभाया है। अनिल ग्रोवर और विक्रम कोचर ने अपनी भूमिकाओं में इन नामी और संवरे स्टार्स का खासा साथ दिया है।

क्यों देखें- शाहरुख खान और राजू हिरानी के चाहने वाले और फीलगुड फिल्मों के शौकीन यह फिल्म देख सकते हैं।