कानपुर की छोटी सी फैक्ट्री में शुरू हुई ‘पहले इस्तेमाल करें…’ वाली घड़ी’ कैसे बनी आम भारतीय की पसंद

भारत में कई ऐसे प्रोडक्ट्स हैं जो भारत की ही धरती पर बने और पंसद किए गए. इसमें ‘पहले विश्वास करें फिर इस्तेमाल करें’ वाशिंग पाउडर ‘घड़ी’ का नाम भी शामिल. ये कानपुर के एक छोटी सी फैक्ट्री से शुरू होकर देश का सबसे बड़ा ब्रांड बन गया.

भारत में वाशिंग पाउडर के शुरुआत की कहानी

भारत में वाशिंग पाउडर बनाने की शुरुआत 1957 में मुंबई के वडाला में स्वास्तिक ऑयल्स मिल्स ने की. लेकिन इस कारखाने में इसका कच्चा माल विदेशों से मंगाया जाता था. यानी स्वदेशी वाशिंग पाउडर बनाने का भारतीय स्वप्न इससे पूरा नहीं होता. 1960 के दशक में बहुराष्ट्रीय कंपनी हिंदुस्तान लीवर लिमिटेड का वाशिंग पाउडर बाजार में सबसे अधिक बिकने वाला सर्फ था.

स्वेदशी प्रोडक्ट्स के तौर पर सबसे पहले देश में गुजरात के श्री करसन भाई पटेल ने 1969 में वाशिंग पाउडर ‘निरमा’ बनाकर भारतीय बाजार में उतारा. जो 1985 तक देश का सबसे अधिक बिकने वाला वाशिंग पाउडर बन गया.

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फिर कानपुर में दो भाइयों ने एक छोटी सी फैक्ट्री खोली

निरमा देश के हर घर तक अपनी पहचान बना ली थी. स्वदेशी होने व अपनी उच्च गुणवत्ता के कारण उसकी बहुत डिमांड थी. वह एक ब्रांड बन चुका था. व्हील भी मार्केट में आ चुका था. तब उत्तर प्रदेश के कानपुर शहर में दो भाइयों मुरली बाबू और बिमल ज्ञानचंदानी ने साल 1987 में नया स्वदेशी डिटर्जेंट बनाया.

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कानपुर के शास्त्रीनगर में रहने वाले दोनों भाइयों ने फजलगंज फायर स्टेशन के पास एक छोटी सी फैक्ट्री से इसकी शुरुआत की. इसका नाम रखा श्री महादेव सोप इंडस्ट्री प्राइवेट लिमिटेड. उनके सामने दो बड़े ब्रांड थे निरमा और व्हील. एक ब्रांड के रूप में सफल होना इतना आसान नहीं था.

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उस समय ज्यादातर डिटर्जेंट नीले या पीले रंग के होते थे पर घड़ी ने सफेद रंग का वाशिंग पाउडर बनाया. साथ ही क्वालिटी पर भी काफी फोकस किया.

घर-घर साइकिल से जाकर पहुंचाया

शुरुआत में दोनों भाई घड़ी साबुन को पैदल या साइकिल से घरों तक पहुंचाते थे. वो दुकानदारों को भी जाकर अपना प्रोडक्ट्स बेचते रहे. एक लंबा अरसा गुजर गया. लेकिन अभी तक वो कामयाबी नहीं मिल पाई थी जिसकी उनको अपेक्षा या जरूरत थी.  लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी, धैर्यपूर्वक पहले कानपुर तक ही खुद को सीमित रखा. आगे उन्होंने विक्रेताओं को कमीशन देना शुरू कर दिया.

साल 2005 में कंपनी का नाम बदलकर Rohit Surfactants Private Limited (RSPL) कर दिया. धीरे-धीरे कानपुर के लगभग हर घर में उनका डिटर्जेंट का इस्तेमाल होने लगा.

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हिट पंचलाइन, मिला फायदा

कंपनी ने निर्धारित किया कि अच्छी गुणवत्ता वाले प्रोडक्ट्स को बनाकर ही लोगों की जिंदगी का हिस्सा बना जा सकता है. उनका विश्वास जीतना बहुत ही आवश्यक है जिसके लिए कई निरंतर सुधार किये गए. अब कंपनी ने कानपुर के बाद यूपी के दूसरे शहरों तक अपने प्रोडक्ट्स बेचना शुरू कर दिया.

इसके लिए मुरली बाबू ने प्रचार प्रसार के मद्देनजर एक पंचलाइन तैयार की, जो लोगों के दिलों में घर कर गई. ‘पहले इस्तेमाल करें, फिर विश्वास करें’. इस टैगलाइन की अपील को लोगों ने खूब पसंद किया. उन्होंने घड़ी पर विश्वास जताया. फिर पूरे उत्तर प्रदेश में घड़ी डिटर्जेंट ने लोगों का विश्वास जीत लिया.

देश में बढ़ गई डिमांड

टैग लाइन के सुपरहिट होने से घड़ी डिटर्जेंट की मांग बढ़ गई. उत्तर प्रदेश का किला फ़तेह करने के बाद देश के बाकी राज्यों में घड़ी का शोर होने लगा. उत्तर प्रदेश के साथ अब मध्य प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, बिहार और छत्तीसगढ़ में भी इसकी डिमांड बढ़ने लगी. देखते ही देखते पूरे देश में इसकी मांग बहुत ज्यादा बढ़ गई.

फिर बना नंबर वन ब्रांड

घड़ी डिटर्जेंट देशवासियों के लिए लोकप्रिय बन गया था. इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि साल 2012 में डिटर्जेंट कंपनियों की बाजार हिस्सेदारी के आकड़ों पर नजर डालें तो. 17.4 प्रतिशत के साथ घड़ी डिटर्जेंट देश का नंबर वन ब्रांड बन चुका था.

एक छोटी सी कंपनी की शुरुआत करने वाले मुरलीधर ज्ञानचंदानी और बिमल ज्ञानचंदानी को साल 2013 में सबसे अमीर बिजनेसमैन की टॉप 100 की सूची में 75वां स्थान दिया गया. उस समय इनकी कुल संपत्ति तक़रीबन 13 हजार करोड़ रुपए थी.

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आज RSPL कंपनी घड़ी डिटर्जेंट के साथ ही साबुन, हैंडवाश, रूम फ्रेशनर, टॉयलेट क्लीनर, वीनस (नहाने वाला साबुन), नमस्ते इंडिया (दूध, घी, दही, मक्खन, पनीर), प्रो इज केयर (सेनेटरी नैपकिन), रेड चीफ (चमड़े के जूते, चप्पल आदि) और रियल स्टेट में भी अपना बिजनेस फैलाए हुए हैं. आज देश की दिग्गज कंपनियों में इसका नाम शुमार है. ये दोनों भाइयों की मेहनत और संघर्ष की वजह से मुमकिन हो पाया है.