अयोध्या   उस बहादुर के क्या कहने। उसके तो गीत गाऊं। मुझे इस बात का दुख है कि उसकी प्रतिभा-वीरता और उसके पराक्रम को भुला दिया गया। भला हो सुप्रीम कोर्ट का जिसने मेरे श्रीराम से न्याय करते हुए इस नायक का स्मरण कराया और उसकी प्रमाणिकता पर मुहर लगाई। भूल गए होंगे। बता रही हूं। यह निहंग फकीर सिंह हैं।

उन्होंने राम द्रोहियों को पाठ पढ़ाते हुए रामजन्मभूमि पर ध्वज फहराया और ढांचा की दीवारों पर राम-राम लिखा। रामजन्मभूमि मुक्ति संघर्ष के इतिहास में पहला उपलब्ध प्रमाण अवध के थानेदार शीतल दुबे की 28 दिसंबर, 1858 की वह रिपोर्ट है। इसमें मस्जिद जन्मस्थान के बीचोबीच पंजाब के सिख फकीर खालसा की पूजा का जिक्र है।

ब्रिटिश अधिकारियों को शिकायती अर्जी दी

रिपोर्ट के अनुसार निहंग ने यहां गुरु गोविंद सिंह के लिए हवन और पूजन का आयोजन किया था और मस्जिद परिसर के भीतर भगवान का एक चिह्न भी स्थापित किया था। फकीर सिंह के साथ 25 अन्य निहंग भी थे। दो दिन बाद ही बाबरी मस्जिद के खातिब मुहम्मद असगर ने इस मामले पर ब्रिटिश अधिकारियों को शिकायती अर्जी दी। उनकी यह शिकायत इस विवाद का सबसे पुराना व्यक्तिगत और निजी दस्तावेज है, जो उस वक्त की स्थितियों पर रोशनी डालता है।

पूरी मस्जिद में कोयले से राम-राम लिख दिया गया

इस शिकायत के मुताबिक पंजाब के रहने वाले एक निहंग सिख और एक सरकारी कर्मचारी ने मेहराब और इमाम के चबूतरे के पास एक मिट्टी का चबूतरा बनाया था और उस पर एक धार्मिक तस्वीर भी रख दी। वहां रोशनी और पूजा के लिए अग्नि प्रज्वलित की गई और हवन जारी रहा। पूरी मस्जिद में कोयले से राम-राम लिख दिया गया।

मुहम्मद असगर ने यह भी कहा कि बाबरी मस्जिद की बाहरी जगह (मस्जिद की चारदीवारी के भीतर के आंगन) में जन्मस्थान वीरान पड़ा है, जहां हिंदू सैकड़ों साल से पूजा करते आ रहे थे। उसने जोर देकर कहा कि थानेदार शिवगुलाम की साजिश के चलते वैरागियों ने वहां एक बालिश्त की ऊंचाई का चबूतरा बना दिया। मुहम्मद असगर ने शहर कोतवाल से उस स्थल का मुआयना कर नए निर्माण को ध्वस्त करने को कहा।

पूरा परिसर मुस्लिमों के स्वामित्व में होता

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में फकीर सिंह के पुरुषार्थ को अकाट्य प्रमाण के तौर पर स्वीकार किया। कोर्ट ने कहा, हिंदू मस्जिद में, भीतरी अहाते में और साथ ही बाहरी अहाते के राम चबूतरे और सीता रसोई में पूजन-अर्चन करते थे। यह असंभव होता, अगर पूरा परिसर मुस्लिमों के स्वामित्व में होता। मैं फकीर सिंह का शौर्य सिद्ध करने में अधिक नहीं उलझना चाहती। वह तो मेरे मानस पुत्र जैसा प्रिय है। उसे मैं सदैव अपनी गोद में बैठा कर रखना चाहूंगी और चाहूंगी कि उसके शौर्य-साहस और श्रद्धा को पीढ़ियां समझें-शिरोधार्य करें। रामभक्तों की जिम्मेदारी बनती है कि जब कभी कोई निहंग-सिख दिखे, तो उनका सिर कृतज्ञता से झुक जाय।