Uttarakhand Politics: अपने सांसदों-विधायकों की जमीनी पकड़ जानने के लिए सर्वे करा रही BJP, NaMo App पर लिया जा रहा फीडबैक
विपक्ष के गठबंधन आइएनडीआइए का कोई असर उत्तराखंड की पांच लोकसभा सीटों पर नहीं पड़ने जा रहा है। यहां लोकसभा चुनाव में मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के मध्य ही सिमटता है। वैसे राज्य के दो मैदानी जिलों हरिद्वार और ऊधम सिंह नगर में कुछ सीटों पर इन दो पार्टियों के अलावा बसपा जरूर जनाधार रखती है लेकिन वह गठबंधन का हिस्सा है नहीं।
राज्य ब्यूरो, देहरादून। इन दिनों भाजपा अपने सांसदों-विधायकों की जमीनी पकड़ का आकलन करने को सर्वे करा रही है। नमो एप के जरिये किए जा रहे जनमन सर्वे में वर्तमान सांसदों के बारे में फीडबैक लिया जा रहा है कि वे अपने क्षेत्र में कितने सक्रिय हैं, कार्यकर्ताओं और आम जन के बीच छवि कैसी है, केंद्र व राज्य सरकार की योजनाओं को लेकर कितने सजग हैं।
प्रत्याशी चयन में भाजपा अक्सर चौंकाती है और यही बात सिटिंग सांसदों की फिक्र बढ़ा सकती है। विधायकों के सर्वे को लेकर जानकारी यह है कि लगभग डेढ़ दर्जन की परफार्मेंस को लेकर रिपोर्ट ठीकठाक नहीं है। वैसे, अभी अगले विधानसभा चुनाव को खासा वक्त है, इस अवधि में वे अपना रिपोर्ट कार्ड सुधार सकते हैं। अलबत्ता, इतना जरूर है कि इस श्रेणी में आने वाले विधायक अगर मंत्रिमंडल की खाली चार सीटों की ओर देख रहे हैं, तो उन्हें मन मसोसकर ही रह जाना पड़ेगा।
एक सीट, एक क्षत्रप, बाकी वेट एंड वाच
मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की पराजय का साइड इफेक्ट यह भी दिख रहा है कि अब नेता लोकसभा चुनाव लड़ने को लेकर अधिक दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं। कांग्रेस में अमूमन संगठन के बजाय नेता आधारित चुनाव ही अधिक लड़े जाते रहे हैं।
यहां बड़े-बड़े क्षत्रप अपनी सीटों पर वर्चस्व रखते हैं। यानी एक क्षत्रप, एक सीट। अलग राज्य बनने के बाद से ही देखें तो नारायण दत्त तिवारी से लेकर हरीश रावत, सतपाल महाराज और विजय बहुगुणा पार्टी के इस श्रेणी के नेताओं में शुमार किए जा सकते हैं। अब महाराज और बहुगुणा तो भाजपा का हिस्सा बन चुके हैं। बचे हरीश रावत, वह अब भी पूरी शिददत से जुटे हैं। एकमात्र रावत ही हैं, जिनके बारे में कहा जा सकता है कि वह हर हालत में लोकसभा चुनाव के लिए मैदान में उतरेंगे। बाकी तो वेट एंड वाच की मुद्रा में हैं।
जनाधार लगभग शून्य, गठबंधन धर्म निभाने की फिक्र
विपक्ष के गठबंधन आइएनडीआइए का कोई असर उत्तराखंड की पांच लोकसभा सीटों पर नहीं पड़ने जा रहा है। यहां लोकसभा चुनाव में मुकाबला भाजपा और कांग्रेस के मध्य ही सिमटता है। वैसे, राज्य के दो मैदानी जिलों, हरिद्वार और ऊधम सिंह नगर में कुछ सीटों पर इन दो पार्टियों के अलावा बसपा जरूर जनाधार रखती है, लेकिन वह गठबंधन का हिस्सा है नहीं।
सपा वर्ष 2004 में हरिद्वार सीट जीत चुकी है, जो उत्तराखंड में अब तक उसकी एकमात्र चुनावी जीत रही है। पांच विधानसभा चुनाव में सपा को एक भी सीट हासिल नहीं हो पाई। इस सबके बावजूद हाल में जब कांग्रेस ने विपक्ष के सांसदों के निलंबन के विरोध में प्रदर्शन किया तो उसमें सपा के राष्ट्रीय सचिव एसएन सचान गठबंधन धर्म निभाते दिखे। संभवतया इस उम्मीद में कि हो सकता है इसके एवज में कांग्रेस पांच में से एक सीट लडऩे के लिए सपा को दे दे।
कुमारी सैलजा इन, यादव कंफर्ट जोन से आउट
कांग्रेस ने संगठन में बड़ा बदलाव किया और उत्तराखंड भी इस दायरे में आ गया। पिछले 10 वर्षों से भाजपा के सामने पार्टी का प्रदर्शन कुछ खास नहीं रहा। अब पार्टी ने कुमारी सैलजा को प्रदेश प्रभारी का दायित्व दिया है। अनुभवी नेताओं में शुमार सैलजा इस पर्वतीय भूगोल के राज्य में पार्टी की राजनीतिक किस्मत कितनी बदल पाती हैं, यह भविष्य बताएगा।
उधर, कांग्रेस को चुनाव न जिता पाने के बावजूद विधानसभा में सदस्यों का आंकड़ा 11 से 19 तक पहुंचाने के अलावा बगैर किसी उपलब्धि के विदा होने वाले प्रभारी देवेंद्र यादव को अब पंजाब का जिम्मा मिला है। पंजाब में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को सत्ता से बेदखल किया। अब लोकसभा चुनाव के समय गठबंधन में सीटों के बंटवारे में कांग्रेस को उपस्थिति दर्ज कराते दिखने का मुश्किल काम यादव को करना होगा। यादव जी, उत्तराखंड तो फिर भी आपके लिए कंफर्ट जोन रहा, है न।