हर इंसान अपने घर में सभी तरह की सुख सुविधाएं चाहता है. आर्थिक रूप से मजबूत लोग बिना एसी, फ्रिज, टीवी जैसी चीजों के कहां रह सकते हैं. और जब ये सब घर में होगा तो बिजली का बिल भी उतना ही आएगा. लेकिन क्या आप सोच सकते हैं कि कोई आर्थिक रूप से मजबूत शख्स ऐसे घर में रहता हो जहां उसे न बिजली का बिल देना पड़ता हो और न ही गर्मियों में एसी की जरूरत पड़ती हो?
इंग्लैंड से लौटे भारत
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अगर नहीं सोच सकते तो अब सोच लीजिए क्योंकि बेंगलुरू की विनी खन्ना और उनके पति बालाजी ऐसे ही रह रहे हैं. इसका कारण है इनका इको-हाउस, मतलब कि इनका घर आम घरों की तरह ईंट सीमेंट से नहीं बल्कि मिट्टी और पुरानी लकड़ी से बना है. विन्नी और उनके पति बालाजी 28 साल से इंग्लैंड में रह रहे थे. 2018 में ये जोड़ी भारत लौट आई. तब इन्होंने इको-फ़्रेंडली घर बनाने का फैसला किया.
पहले बच्चे के जन्म के समय खुली आंखें
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इस बारे में इन्हें तब खयाल आया जब विन्नी ने 2009 में अपने पहले बच्चे को जन्म दिया. बच्चे के आने के साथ ही घर में नैपी, प्लास्टिक की बोतलें, बेबी फीड की बोतलों आदि की संख्या बढ़ने लगी. इस वेस्ट को देख कर विन्नी ने सोचा कि इस तरह से वो प्रकृति के साथ अच्छा नहीं कर रहे. इसलिए, उन्होंने कुछ ऐसा तरीका सोचा जिससे इन वेस्ट चीजों का फिर से इस्तेमाल किया जा सके.
2010 में जब इन्हें एक प्यारी सी बेटी हुई तब इन्होंने अपने देश लौटने का मन बना लिया. 2020 में इन्होंने बेंगलुरू में एक घर की तलाश शुरू की लेकिन अपार्टमेंट्स के दाम सुन कर ये हैरान रह गए. वाणी कहती हैं, “इसके बाद इन्हें बेंगलुरु की एक फर्म महिजा के बारे में पता चला, जो एक दशक से अधिक समय से स्थायी घर बना रही है. विन्नी अपना घर बनाने के लिए भी इन्हीं के पास पहुंची.”
कुछ इस तरह से बनाया अपना घर
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विन्नी और बालाजी के घर के लिए जिन ईंटों का इस्तेमाल हुआ है वे छह तत्वों से मिल कर बनी हैं. इन्हें 7 प्रतिशत सीमेंट, मिट्टी, लाल मिट्टी, स्टील ब्लास्ट, चूना पत्थर और पानी को मिलाकर बनाया गया. जबकि दीवारें इन्हीं से बनी थीं, छत मिट्टी के ब्लॉकों का उपयोग करके बनाई गई. इस तरह से इनके मकान में सीमेंट का बिल्कुल उपयोग नहीं हुआ.
घर बनाने में इन्होंने स्टील की छड़ों और एक स्लैब बनाने के लिए कंक्रीट का इस्तेमाल करने की बजाए स्क्रैप कीबोर्ड, नारियल के गोले आदि का प्रयोग किया. इसके साथ ही स्लैब बनाने के लिए उस क्षेत्र को मिट्टी से भरा गया. इस घर में इनका 1000 फुट का गार्डन भी है, जहां ये करी पत्ता, धनिया, मेथी आदि उगाते हैं और उनका इस्तेमाल अपने खाने में करते हैं.
सजावट और अन्य उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल की जाने वाली लकड़ी एक ऐसे व्यक्ति से लाई गई है जो ध्वस्त स्थलों का दौरा करते हुए पुरानी लकड़ियां खरीदता है. इस तरह से जो लकड़ियां बर्बाद होने वाली होती हैं उनकी पुनर्व्यवस्थित कर उनका फिर से इस्तेमाल किया जाता है. इसके बाद घर का सामान बनाने के बाद जो लकड़ी बची थी, उसे उन्होंने बुकशेल्फ़ में बदल दिया.
मुफ़्त बिजली मुफ़्त पानी
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वाणी का कहना है कि उन्हें कभी भी कृत्रिम शीतलन की आवश्यकता नहीं थी. “हमारे आर्किटेक्ट ने घर को इस तरह से डिजाइन किया है कि हम शाम 6.30 बजे के बाद ही रोशनी चालू करते हैं जबकि बाकी समय रोशनी का काम सनरूफ से हो जाता है.” वह आगे कहती हैं कि जिन कोणों पर घर बनाया गया है, यह सुनिश्चित करते हैं कि यह प्रकाश परावर्तन और प्राकृतिक शीतलन को अधिकतम करता है.
घर में इलेक्ट्रॉनिक्स सामान के लिए सौर ऊर्जा का प्रयोग किया जाता है. वाणी का कहना है कि ऑन-ग्रिड सिस्टम के माध्यम से उत्पादित अतिरिक्त बिजली 3 रुपये प्रति यूनिट के हिसाब से वापस ग्रिड को भेजी जाती है. 4.8 किलोवाट के 11 सौर पैनलों की बदौलत इस दंपत्ति को बिजली बिल का भुगतान नहीं करना पड़ता.
पानी के लिए भी इन्हें नगर निगम पर आश्रित नहीं रहना पड़ता. इनके घर से 200 मीटर की दूरी पर स्थित सामुदायिक बोरवेल बरसात के मौसम में पानी से भर जाते हैं और उन्हें पर्याप्त आपूर्ति प्रदान करते हैं. यहां के तीन कुएं, जिनमें से दो 5 फीट और अन्य 8 फीट हैं, यहां के 30 घरों में पानी की आपूर्ति करते हैं.
विन्नी और बालाजी को इन सभी पर्यावरण के अनुकूल उपायों के साथ से बनाए गए अपने घर पर गर्व है.