सोलन नसों की बीमारियों के उपचार में प्रभावी माने जाने वाले औषधीय मशरूम ‘हेरिशियम’की मांग भारत में तेजी से बढ़ रही है। पहले यह मशरूम मुख्य रूप से यूरोपीय देशों में पाया जाता था, लेकिन अब भारत में भी इसकी सफल व्यावसायिक खेती शुरू हो चुकी है। उल्लेखनीय है कि सोलन स्थित ‘राष्ट्रीय खुम्ब अनुसंधान केंद्र भी इस औषधीय मशरूम पर शोध कर रहा है, जिससे किसानों को वैज्ञानिक तकनीक और प्रशिक्षित मार्गदर्शन मिल रहा है।जैव रसायन विज्ञान की वैज्ञानिक डॉ. रितू ने इसके औषधीय गुणों और खेती की प्रक्रिया पर महत्वपूर्ण जानकारी देते हुए बताया कि हेरिशियम में ऐसे बायोएक्टिव तत्व पाए जाते हैं जो नसों की ग्रोथ बढ़ाने, क्षतिग्रस्त नसों की मरम्मत करने और मानसिक स्वास्थ्य सुधारने में प्रभावी माने जाते हैं। बाज़ार में इसकी मांग लगातार बढ़ने के कारण किसान भी बड़े पैमाने पर इसकी खेती की ओर आकर्षित हो रहे हैं।डॉ. रितू के अनुसार, बिहार, उत्तर-पूर्वी राज्यों और हिमाचल प्रदेश के किसान अब हेरिशियम को व्यावसायिक रूप से उगा रहे हैं। इसकी खेती के लिए चौड़ी पत्ती वाले पेड़ों के बुरादे के साथ गेहूं की भूसी और पीएच संतुलन हेतु जिप्सम का उपयोग किया जाता है। मशरूम के विकास के लिए 18–20 डिग्री तापमान और 85% से अधिक नमी अनिवार्य है। कटाई के बाद इसे सुखाकर उपयोग में लाया जाता है, जबकि बाजार में इसकी कैप्सूल, टिंचर और गोलियों की भी बड़ी मांग है।विशेषज्ञों का मानना है कि भविष्य में यह औषधीय मशरूम भारत के किसानों के लिए नई आय का बड़ा स्रोत बन सकता है, क्योंकि ‘हेरिशियम’ का उपयोग नर्व-संबंधी उपचारों में लगातार बढ़ रहा है और इसके अनुसंधान में सोलन का राष्ट्रीय खुम्ब केंद्र प्रमुख भूमिका निभा रहा है