यूपी के बिजनौर का परिवार 300 साल से कर रहा गौरैया की रक्षा, पक्षी के लिए नहीं बदला हवेली का डिज़ाइन

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छोटे भूरे रंग के पक्षी ‘गौरेया’ को भारत की सबसे अधिक देखी जाने वाली पक्षी-प्रजातियों में से एक माना जाता है और यह सबसे ज्यादा पसंद की जाती है. पीठ पर काली धारियां वाली यह पक्षी टेनिस बॉल से बड़ी नहीं होती. गौरेया को आनंद, टीम वर्क, समुदाय, सुरक्षा सादगी और कड़ी मेहनत का प्रतीक माना जाता है.

शहरों, कस्बों और गांवों में लोगों की बढ़ती तादाद के बाद इन पक्षियों की आबादी में गिरावट देखने को मिली है, जबकि शहरी इलाकों में इन्हें देखना दुर्लभ हो गया है.

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300 साल से Sparrows की रक्षा कर रहा है ये परिवार

बिजनौर के स्योहरा के शेखों ने अपनी विशाल और शानदार हवेली में गौरेया को आश्रय दिया हुआ है और उनकी रक्षा कर रहे हैं. उनक लिए यह एक परंपरा बन गई है, जिसे वो पिछले 300 साल से निभा रहे हैं.

इस परंपरा को निभाने के लिए इस परिवार ने एक विशेष शपथ ली है कि हवेली की संरचना में कभी भी बदलाव नहीं किया जाएगा और सदियों से वहां रहने वाली गौरेया को विस्थापित नहीं किया जाएगा. महल के उत्तराधिकारियों की आने वाली पीढ़ियों ने इस शपथ को स्वीकार करते हुए गौरया को आश्रय देकर लोगों के लिए मिसाल बने हुए हैं.

This family of UP has been rearing sparrows for 300 yearsTwitter

23 साल पहले, परिवार के मुखिया अकबर शेख ने अपने बड़े बेटे शेख जमाल को अपनी पैतृक हवेली दी थी. वे भी उक्त शर्तों को स्वीकार कर अपने पुरखों की परंपरा को निभा रहे हैं. 52 वर्षीय जमाल ने अपने पिता की इच्छा का सम्मान करते हुए यह परंपरा जारी रखा हुआ है.

यूपी के वन विभाग के आंकड़ों के आधार पर, “गौरैया वालों की हवेली” के रूप में लोकप्रिय जागीर में 2,000 से अधिक गौरैयों का घर होने का अनुमान है. ऐसे समय में जब  शहरी परिदृश्य में गौरैया की आबादी में भारी कमी आई है, इस परिवार द्वारा इस पक्षी की प्रजातियों का संरक्षण सराहनीय है.

विश्व गौरैया दिवस पर कार्यक्रम

इस साल विश्व गौरैया दिवस सोमवार को मनाया गया. इस मौके पर जमाल के परिवार के सहयोग से वन विभाग द्वारा एक कार्यक्रम आयोजित किया गया. इस अवसर पर स्थानीय निवासियों को गौरैया की देखभाल करने की अपील के साथ 50 बोरी अनाज और मिट्टी के बर्तन वितरित किए गए.

सोमवार को जमाल ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, “मेरे पिता अकबर शेख के छह बेटे थे. उनमें से तीन जल्दी मर गए. फिर मुझे हवेली और उन पक्षियों की देखभाल करने का काम दिया गया, जिन्होंने इसे अपना घर बनाया था. मैं हाल ही में बीमार रहने लगा हूं. आगे बेटे शेख फ़राज़ गौरैया की देखभाल की ज़िम्मेदारी उठाएंगे.”

उन्होंने कहा “हमारे परिवार में यह हमेशा से परंपरा रही है. बुजुर्ग अपने वंशजों को अपनी संपत्ति सौंपते समय यह शपथ दिलवाते हैं कि युवा पीढ़ी हवेली में गौरैया की देखभाल करेगी. इन पक्षियों के प्रति हमारा प्यार और स्नेह इन पक्षियों के माध्यम से पारित किया गया है. वे हमारे बच्चों की तरह हैं.”

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उन्होंने कहा “गौरैया को हवेली में हर जगह देखा जा सकता है. उनके लिए अनाज की टोकरियां बिछाई जाती हैं. स्थानीय लोग भी अपना काम करते हैं, और वे दान करते हैं जो वे कर सकते हैं.

जमाल के बेटे फराज कहते हैं “मैंने होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई की हुई है और अब नौकरी की तलाश कर रहा हूं, लेकिन मुझे अपने छोटे दोस्तों के बीच बहुत शांति मिलती है. उनकी सेवा करना सिर्फ एक शौक नहीं है, बल्कि हमारी पारिवारिक परंपरा और कर्तव्य है.”

फ़राज़ ने अपनी बातचीत में बताया कि कैसे इन पक्षियों ने उनकी रोमांटिक जोड़ी खोजने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

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फराज ने कहा, “गौरैया ने मुझे अपना प्यार पाने में मदद की है. वानिया सिद्दीकी से शादी करने से पहले, मैं उसे इन पक्षियों के वीडियो भेजा करता था. जिनसे वह बहुत प्रभावित हुई थी.”

वानिया ने भी कबूल किया, “ये पक्षी असल में मुझे इस घर में लाए थे. अगर मुझे चहचहाहट नहीं सुनाई देती है, तो मुझे बेचैनी होती है.”

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वन अधिकारी ने की सराहना

परिवार के प्रयासों से प्रभावित अनुविभागीय वन अधिकारी ज्ञान सिंह ने उनकी प्रशंसा की. उन्होंने कहा, “उन्होंने हम सभी के लिए एक उदाहरण पेश किया है. पीढ़ियों से गौरैया का संरक्षण करना आसान नहीं है और उन्होंने इसे बहुत प्यार से किया है. उन्होंने जो हासिल किया है, हमारा विभाग उसकी सराहना करता है.”

जमाल ने गौरैया की घटती संख्या को लेकर अपनी चिंता भी साझा की. उन्होंने कहा, “गौरैया की आबादी में अचानक गिरावट के लिए पेड़ों की कटाई और कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग को जिम्मेदार ठहराया गया है. अधिकारियों को निवासियों के लिए घर बनाते समय पौधे लगाना अनिवार्य कर देना चाहिए. ज्यादातर घर शहरी और अर्ध-शहरी इलाकों में हैं. शहरी क्षेत्रों में आजकल पेड़ या छोटे पौधे भी नहीं हैं. पक्षी कहाँ जाएंगे?”