शिक्षा एक ऐसी चीज़ है जो किसी व्यक्ति की आर्थिक और सामाजिक स्थिति को पूर्ण रूप से बदल सकती है. शिक्षा के ज़रिये न सिर्फ एक व्यक्ति जागरूक नागरिक बनता है बल्कि देश निर्माण में भी अहम भूमिका निभाता है.
ऐसी कई दिल छू लेने वाली कहानियां हैं, जिनमें ग़रीबी से उठकर अपनी शिक्षा के बदौलत किसी ने एक बड़ी सफ़लता प्राप्त की हो. कुल मिलाकर शिक्षा से अनचाही तकदीर को अपनी मनचाही तकदीर में बदला जा सकता है.
यही वजह है कि भारत के कई स्कूल और टीचर्स अपनी ओर से कोई कमी कमी नहीं छोड़ते हैं. जहां बिहार में सिर्फ एक बच्ची के लिए स्कूल खोला जाता है, वहीं मध्यप्रदेश में एक टीचर ने अपनी सैलरी से बनवाया स्कूल का बेहतर लर्निंग स्ट्रक्चर. आइए, ऐसे स्कूल या टीचर्स के बारे में जानते हैं, जो शिक्षा के लिए बहुत अच्छा काम कर रहे हैं-
1. अपनी बचत के पैसों से स्टूडेंट्स को हवाई जहाज की यात्रा कराने वाला
इंदौर के देवास ज़िले के एक सरकारी स्कूल के इस टीचर ने अपनी बचत के सारे पैसे अपने स्टूडेंट्स की ख़ुशी के लिए कुर्बान कर दिए. हम बात कर रहे हैं ‘रियल हीरो’ किशोर कनासे की. हेडमास्टर किशोर ने अपनी बचत के 60 हज़ार रुपयों से अपने स्टूडेंट्स को पहली बार प्लेन की यात्रा करवाई. बिजेपुर के सरकारी स्कूल के 6, 7 और 8 क्लास के बच्चे पहली बार इंदौर एयरपोर्ट पहुंचे और वहां से उन्होंने दो दिन दिल्ली दर्शन के लिए फ्लाइट पकड़ी.
2. बिहार में सिर्फ़ एक बच्चे के लिए खोला जाता है स्कूल
जापान देश से सिर्फ एक बच्ची के लिए ट्रेन चलाई जाती है ताकि वह रोज़ स्कूल आ-जा सके. इससे जापान की शिक्षा के प्रति गंभीरता दिखाई देती है. कुछ ऐसी ही प्यारी कहानी है बिहार के एक स्कूल की.
बिहार के गया से 20 किलोमीटर दूर जाह्नवी कुमारी नाम की एक स्टूडेंट रोज़ पढ़ने आती है. इस स्कूल में पढ़ने वाली वह एक मात्र स्टूडेंट हैं लेकिन इसके बावज़ूद स्कूल चलाया जाता है.
पहली क्लास में पढ़ने वाली जाह्नवी के लिए स्कूल में दो टीचर और एक मिड डे मील वर्कर आती हैं.
दरअसल, मनसा बिगहा नाम के इस गांव में 35 परिवार हैं. जिसमें से ज्यादातर बच्चे पास के खिजरसराय स्कूल चले जाते हैं. सिर्फ़ एक बच्चा होने के बावज़ूद इस स्कूल में प्रिंसिपल भी ही. ज्यादातर सभी परिवार अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ाना ज्यादा बेहतर मानते हैं. हालांकि, स्कूल ने लोगों से इस स्कूल में भेजने की रिक्वेस्ट भी की है.
3. जब एक टीचर ने सरकारी स्कूल को बना दिया ‘स्मार्ट’ स्कूल
अमरजीत सिंह चहल ने रल्ली और जैत्सर बिछोना के प्राइमरी स्कूल्स और बोहा और रंगहरियाल के सेकेंडरी स्कूल्स को अपने विज़न से स्मार्ट स्कूल बना दिया.
उन्होंने स्कूल की इमारतों को सीखने लायक बना दिया, जिसमें उन्होंने स्कूल की दीवारों से लेकर पिलर्स को साइंस और मैथ्स के Formulas से भर दिया. क्लासरूम्स में बच्चे ऑडियो-विज़ुअल क्लासेज़ की बदौलत मुश्किल कॉन्सेप्ट्स को भी आसानी से समझ जाते हैं.
साल 2007 में चहल ने रल्ली गांव का प्राइमरी स्कूल जॉइन किया. इस दौरान, बच्चों के लिए बेसिक जरूरतों की कमीके बाद अपनी पहल शुरू की.
उन्होंने ग्राम पंचायत को प्रेरित किया, जिससे उन्हें ज़िला परिषद से फंड्स मिलने में सहायता मिली. इसके साथ ही नरेगा से भी कुछ फंड्स मिलने में सफलता मिली. इन दोनों से कुल मिलाकर 13 लाख रुपये मिले, जिन्हें उन्होंने स्कूल के रेनोवेशन में ख़र्च कर दिया.
अपने इस योगदान के लिए उनके 2019 के 5 सितंबर यानी शिक्षक दिवस पर उन्हें नेशनल अवॉर्ड से सम्मानित भी किया गया.
4. टीचर्स ने अपनी सैलरी से करवाया स्कूल का रेनोवेशन
मध्य प्रदेश के डिंडौरी डिस्ट्रिक्ट के कुछ टीचर्स ने स्कूल को ही ट्रेन का डिब्बा बना दिया और नाम दिया ‘एजुकेशन एक्सप्रेस’.
इस क्षेत्र के विकसित न होने की वजह से बच्चों को ख़ुशी-ख़ुशी स्कूल आने के लिए प्रेरित करने के लिए स्कूल अथॉरिटी ने स्कूल बिल्डिंग को किसी ट्रेन की तरह ही पेंट किया कर दिया.
इसके लिए ख़ुद टीचर्स ने अपनी सैलरी जोड़कर इस बिल्डिंग को रोचक बना दिया. चूंकि स्कूल में बच्चों की संख्या कम है, तो इसी संख्या में बढ़ोतरी के लिए उन्होंने ऐसा किया. इससे बच्चे आकर्षित होकर स्कूल आना पसंद करेंगे.
इस सेकेंडरी स्कूल की Headmistress संतोष को इसके बदलाव की वजह माना जा सकता है. वह कहती हैं, “जब से स्कूल की बिल्डिंग ट्रेन की तरह दिखने लगी है, तब से बच्चे ख़ुशी से यहां आने लगे हैं. छात्रों की संख्या में भी इज़ाफ़ी हुआ है. बच्चों समेत माता-पिता भी इस बदलाव से काफ़ी ख़ुश हैं.”
5. रोज़ाना नदी तैरकर पढ़ाने जाती हैं ओडिशा की ये टीचर
ओडिशा के जरीपाल गांव में रहने वाली 49 वर्षीय बिनोदिनी सामल हर दिन नदी पार करके स्कूल तक पहुंचती हैं ताकि बच्चे पढ़ सकें. सामल सपुआ नदी पार करके राठीपाल प्राइमरी स्कूल पहुंचती हैं. उन्होंने 2008 में संविदा पर 1,700 रुपए प्रति माह के वेतन पर नौकरी शुरू की.
मानसून के समय कई बार तो पानी गर्दन तक पहुंच जाता है. लेकिन बिनोदिनी ने कभी इसे काम से छुट्टी लेने का बहाना नहीं बनने दिया.
वह प्लास्टिक की एक थैली में अपना सामान रखकर नदी को पार करती है और अपने साथ एक कपड़े का सेट रखती हैं, जिन्हें स्कूल में बदल लेती हैं. उन्होंने आज तक एक भी छुट्टी नहीं ली है.
6. चंदा इकट्ठा करके इस टीचर ने बनवाया स्कूल में टॉयलेट
तिरुची ज़िले के पूवालूर में एक सरकारी स्कूल में टॉयलेट कॉम्प्लेक्स लोगों के दान से बनाया गया. एक टीचर ने गंदे वॉशरूम के चलते बच्चों की संख्या में कमी की समस्या को ख़त्म करने के लिए स्कूल में परिसर में टॉयलेट ढंग का टॉयलेट बनवाया.
कई लोगों ने इस काम के लिए अपने हाथ आगे बढ़ाए और आर्थिक मदद दी. सतीश कुमार नाम के इस टीचर के मुताबिक़, इस टॉयलेट को बनाने के लिए 10.5 लाख रुपये जमा करने की पहल की. उन्हें इसके निर्माण का आइडिया मोबाइल में देखे गए वीडियो से आया.
स्कूल के महिला टॉयलेट लड़कियों को परेशान होते देखा. बारिश में टॉयलेट्स में पानी भर जाता था.
करीब 135 छात्राओं वाले इस स्कूल में आज वॉशरूम्स में वॉश बेसिन, सेनेटरी नैपकिन वेंडिंग मशीन और वेस्ट ट्रीटमेंट के लिए Incinerators भी लगे हुए हैं.
7. बच्चों की ख़ुशी के लिए इस टीचर ने अपनी सैलरी खर्च कर डाली
कोयंबटूर के एक सरकारी स्कूल में पढ़ाने वाले साईं सिन्थिलनाथन ने अपनी पूरी सैलरी अपने स्टूडेंट्स पर के लिए ख़र्च कर दी ताकि वो पोंगल पर नए कपड़े पहन सकें.
साईं के सभी छात्र बहुत ग़रीब और पिछड़े आदिवासी क्षेत्रों से आते हैं. वह अपनी रोटी का इंतजाम कर लें’, यही उनके लिए बहुत बड़ा संघर्ष होता है. ऐसे में, त्यौहार पर नए कपड़े ख़रीदना बहुत दूर है.
लिहाज़ा, साईं ने नीराड़ी, बिल्लुर और थोंड़ाई आदिवासी बस्तियों से आने वाले करीब 32 छात्रों को तोहफ़े में नए कपड़े दिलाए.
इससे पहले साल 2018 में उन्होंने बिल्कुल इसी तरह दिवाली के मौके पर स्टूडेंट्स की मदद की थी.
8. दो टाइम मिड-डे मील बांटता है चेन्नई का ये स्कूल
चेन्नई का सरकारी सहायता प्राप्त मद्रास प्रोग्रेसिव यूनियन हायर सेकेंडरी स्कूल बच्चों को स्कूल लाने के लिए हर संभव प्रयास करता है. लगभग 275 बच्चों वाला यह स्कूल दोपहर के भोजन समेत हफ्ते में पांच दिन शाम को भी खाना देता है.
स्कूल के प्रिंसिपल एम निर्मला के अनुसार इससे ड्रॉपआउट की संख्या कम करने और अकादमिक प्रदर्शन में सुधार करने में मदद मिली है. वह बताते हैं कि, “छात्रों के पास स्कूल जाने के लिए बुनियादी ढांचा नहीं है, इसलिए हम उन्हें रात 8 बजे तक यहां रहने और उन्हें खाना देने की अनुमति देते हैं.”
इस काम के लिए स्कूल के सभी शिक्षक मदद कर रहे हैं. वह हर महीने के पहले दिन अपने वेतन से छात्र कल्याण कोष में 1,000 रुपए जमा करा देते हैं.