Subrata Roy Sahara Shri Passed Away: बिहार का वो लड़का जिसने ₹2000 से खड़ा कर दिया अरबों का साम्राज्य, बड़े बड़े सितारों को दिया ‘सहारा’

सहारा इंडिया परिवार के 75 वर्षीय संस्थापक सुब्रत रॉय ने 14 नवंबर को मुंबई में अपनी अंतिम सांस ली. सहारा श्री के नाम से मशहूर सुब्रत रॉय का लंबे समय से मुंबई के एक निजी अस्पताल में इलाज चल रहा था. वह हाई ब्लड प्रेशर और मधुमेह के कारण कई तरह की शारीरिक दिक्कतों से जूझ रहे थे. लंबे समय से बीमार चल रहे सुब्रत रॉय का कार्डियोरेस्पिरेटरी अरेस्ट के कारण 14 नवंबर 2023 को रात 10.30 बजे निधन हो गया.

बिहार के अररिया में जन्मे सहारा श्री

एक समय देश के सबसे चर्चित कारोबारी और उद्योगपति सुब्रत रॉय सहारा इंडिया परिवार के मैनेजिंग वर्कर और चेयरमैन थे. 10 जून 1948 को बिहार के अररिया में एक मध्यम वर्गीय परिवार में जन्मे सुब्रत रॉय की प्रारंभिक शिक्षा कोलकाता के होली चाइल्ड स्कूल से हुई. सरकारी तकनीकी संस्थान, गोरखपुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में स्नातक की पढ़ाई पूरी करने वाले सुब्रत रॉय ने 1978 में सहारा की स्थापना की.

2004 तक उन्होंने अपनी कंपनी को देश के सबसे सफल समूहों में से एक बना दिया था. यहां तक कहा जाने लगा था कि भारतीय रेलवे के बाद सहारा ‘भारत में दूसरा सबसे बड़ा नियोक्ता’ है. वे संभवतः भारत के कॉर्पोरेट जगत के इतिहास की सबसे अनूठी शख्सियतों में से एक थे. हालांकि सुब्रत रॉय के लिए ये सब हासिल करना इतना आसान नहीं था.

2 हजार के काम से खड़ा किया अरबों का साम्राज्य

बिहार के एक मध्यवर्गीय परिवार में जन्मे सुब्रत अपने भविष्य को लेकर भला कितना बड़ा सपना देख सकते थे, लेकिन उन्होंने हाथ में चंद हजार रुपये लेकर अपनी हैसियत से कई गुणा ज्यादा बड़ा सपना देखा और उस सपने को पूरा करने के लिए हर तरह से कोशिश की. जिसका परिणाम ये निकला कि कुछ ही वर्षों में उन्होंने एक विशाल साम्राज्य खड़ा कर दिया. उन्होंने फाइनेंस, रियल एस्टेट, मीडिया और हॉस्पिटैलिटी सहित विभिन्न क्षेत्रों तक अपना व्यापार फैलाया. 1978 में मात्र दो हजार रुपये से अपना काम शुरु करने वाले सुब्रत रॉय ने कुल शुद्ध 2,59,900 करोड़ तक की संपत्ति बना ली.

साल 2000 तक सुब्रत रॉय ने अपनी कंपनी सहारा इंडिया परिवार को उन ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया जहां से उन्हें ‘भारत के 10 सबसे शक्तिशाली लोगों’ में गिना जाने लगा. समूह ने देश भर में 5,000 से अधिक प्रतिष्ठानों संचालित किए जिसमें सहारा इंडिया परिवार के तहत लगभग 1.4 मिलियन वर्कफोर्स को रोजगार मिला. सहारा इंडिया की सफलता उन उस शिखर पर थी जहां से कहा जाने लगा कि ये भारतीय रेलवे के बाद भारत में दूसरे सबसे बड़े नियोक्ता हैं.

सुब्रत रॉय ने 2000 में सहारा टीवी लॉन्च किया, जिसे बाद में सहारा वन नाम दिया गया. सहारा इंडिया में 9 करोड़ से अधिक निवेशक और जमाकर्ता हैं जो भारत में लगभग 13 प्रतिशत परिवारों का प्रतिनिधित्व करते हैं. 2019 में, सुब्रत रॉय सहारा ने अन्य उन्नत संबद्ध सेवाओं के साथ अपना खुद का इलेक्ट्रिक वाहन (ईवी) ब्रांड ‘सहारा इवोल्स’ लॉन्च किया.

बनाई अपनी अलग दुनिया

सुब्रत रॉय की सफलता कहां तक थी इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने अपनी एक ऐसी दुनिया बसा ली थी जहां उनके पास सब कुछ था. दरअसल, वह 1990 में लखनऊ चले आए थे. जहां उन्होंने एक अलग दुनिया बसाई. कहते हैं कि उनकी इस दुनिया में हेलीपैड, एक क्रिकेट स्टेडियम, एक छोटा खेल परिसर, 11 किमी परिधि वाली एक झील, एक 18-होल मिनी-गोल्फ कोर्स जैसी सुविधाएं थीं. इसके साथ ही उनकी इस दुनिया में 3,500 लोगों के बैठने की जगह वाला एक अत्याधुनिक सभागार, 124 सीटों वाला मूवी थियेटर, एक एम्बुलेंस के साथ पांच बिस्तरों वाला स्वास्थ्य केंद्र, एक फायर स्टेशन और एक पेट्रोल पंप भी था.

अमिताभ बच्चन का सहारा बने सहारा श्री

जिस समय सुब्रत रॉय सफलता की ऊंचाइयों पर थे, उस समय उनका कद देश के बड़े बड़े सितारों से भी ऊंचा था. वह बड़े-बड़े भव्य कार्यक्रमों की मेजबानी करते थे, जहां क्रिकेटरों और बॉलीवुड हस्तियों के साथ देश के बड़े बड़े चेहरे नजर आते थे. रिपोर्ट्स की मानें तो, वो सुब्रत रॉय ही थे जो सदी के महानायक कहे जाने वाले अमिताभ बच्चन के बुरे दौर में उनका सहारा बने थे. यही वजह थी कि सहाराश्री और बिग बी की दोस्ती हुई. रिपोर्ट्स का कहना है कि अमर सिंह ने बिग बी और सहाराश्री को मिलवाया था. 2010 में सुब्रत रॉय की भतीजी की शादी हुई थी, जहां बड़ी हस्तियों के बीच अमिताभ बच्चन और जया बच्चन भी सुब्रत रॉय के साथ दिखाई दिए थे.

बिस्कुट बेचने से शुरू किया काम

देश के हर सेक्टर में अपनी बड़ी पहचान बनाने वाले सुब्रत रॉय ने अपने बिजनेस करियर की शुरुआत बहुत ही छोटे स्तर से की थी. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, उन्होंने 1978 में गोरखपुर में अपने एक दोस्त के साथ मिलकर एक कमरे, दो कुर्सी और एक स्कूटर के साथ बिस्किट और नमकीन बेचने का काम शुरू किया. सुब्रत रॉय ने पैरा बैंकिंग की शुरुआत की. उन्होंने दोस्त के साथ मिलकर चिट फंड कंपनी शुरू की. उनका टारगेट गरीब और मध्यम वर्ग के लोग थे. एक वक्त तो यहां तक कहा जाता था कि मात्र 100 रुपये कमाने वाले लोग भी उनके पास 20 रुपये जमा करवाते थे. देश के गांव-गांव तक उनकी यह स्कीम मशहूर हो गई. लाखों की संख्या में लोग सहारा के साथ जुड़ते चले गए.

कोर्ट ने कसा शिकंजा और सब कुछ छिन गया

एक समय ऐसा आया जब लग रहा था कि बिहार के छोटे से जिले से आए सुब्रत रॉय, टाटा-बिरला, अंबानी, मित्तल जैसे देश के जाने माने नामों को पीछे छोड़ बहुत आगे पहुंच जाएंगे लेकिन उनकी किस्मत दूध के उबाल जैसी रही, वो जितनी तेजी से ऊपर चढ़े उससे ज्यादा तेजी से सब खो दिया. 2012 में सहारा ग्रुप को आदेश दिया गया कि वह निवेशकों को ब्याज के साथ उनका पैसा लौटाए. निवेशकों का पैसा न लौटाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जेल भी भेजा.

सहारा फंड में करोड़ों रुपये की गड़बड़ी के आरोप लगने के बाद 2014 में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) के साथ एक विवाद के संबंध में अदालत में उपस्थित न होने पर उन्हें हिरासत में लेने का आदेश दिया. एक लंबी कानूनी लड़ाई के कारण रॉय को तिहाड़ जेल में समय बिताना पड़ा. 2016-17 में वह पैरोल पर रिहा हुए.