70 साल पुरानी Vicco की कहानी: रसोई में हुई तैयार, घर घर जाकर बेचा सामान, जिंगल्स से मिली पहचान

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बाजार में आया कोई भी उत्पाद लोगों के विश्वास के दमपर ही बाजार में अपनी जगह बना पाता है. वैसे तो एक ही तरह के प्रोडक्ट को सैकड़ों कंपनियां बनाती हैं लेकिन कामयाब वही कंपनी हो पाती है जिसने लोगों का दिल जीता हो. कुछ ब्रांड्स ऐसे भी रहे जिन्होंने लोगों के दिलों में जगह तो बनाई लेकिन खुद को ज्यादा बढ़ा नहीं पाए. हालांकि इन कंपनियों के प्रोडक्ट्स आज भी लोग पसंद करते हैं.

1952 में शुरू हुआ Vicco का सफर

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आज भले ही स्वदेशी व आयुर्वेदिक उत्पाद तैयार करने में पतंजलि जैसी कंपनियों को आगे माना जाता हो लेकिन सच ये है कि विको ने ये मुहिम ऐसी कंपनियों के वजूद में आने से काफी पहले ही छेड़ दी थी. विको ने साल 1952 में आयुर्वेद पर आधारित अपना पहला प्रॉडक्ट मार्केट में उतारा था. टूथपेस्ट और पाउडर के मामले में विको ही देश का पहला आयुर्वेदिक ब्रांड है.

राशन की दुकान चलाने वाले ने खड़ी की कंपनी

बात जब विको की आती है तो हमें इसके विज्ञापन में गाए जाने वाले ‘वीको टरमरिक, नहीं कॉस्मेटिक, वीको टरमरिक आयुर्वेदिक क्रीम’ और ‘वज्रदंती, वज्रदंती वीको वज्रदंती’ जैसे जिंगल झट से याद आ जाते हैं.

Vicco का पूरा नाम विष्णु इंडस्ट्रियल केमिकल कंपनी है. नागपुर में एक राशन की दुकान चलाने वाले केशव विष्णु पेंढरकर ने साल 1952 में इसकी शुरुआत की थी. राशन की दुकान से केशव इतना नहीं कमा पा रहे थे कि अच्छे से परिवार का पेट भर पाते. उनके अंदर कुछ अलग करने की ललक भी थी. उन्हें नए मौके तलाशने और सपनों की उड़ान भरने के लिए मुंबई पसंद आया और वे अपने परिवार के साथ यहां आ गए.

मुंबई आने के बाद उन्होंने बांद्रा व सबअर्ब्स में कुछ छोटे बिजनेस शुरू किए. इस दौरान वो बाजार को समझने की कोशिश करते रहे. कुछ समय बाद वो परेल चले आए. मुंबई आने के बाद उनका ध्यान एलोपैथिक दवाइयों और पॉन्ड्स, नीविया, अफगान स्नो जैसे कॉस्मेटिक प्रॉडक्ट ने अपनी तरफ खींचा. ये सब विदेशी प्रोडक्ट थे. ऐसे में विष्णु ने एक नेचुरल आयुर्वेदिक प्रॉडक्ट बनाने के बारे में सोचा. इसके लिए विष्णु को आयुर्वेदिक दवाओं की जानकारी चाहिए थी, जिसमें उनके साले ने उनकी मदद की.

रसोई में बनाया टूथपाउडर

केशव और उनका परिवार मुंबई में 3 कमरों के घर में रहते थे. ऐसे में उन्होंने घर के किचन को ही आयुर्वेदिक प्रॉडक्ट के लिए मैन्युफैक्चरिंग यूनिट बना लिया. अन्य कमरों को गोदाम और ऑफिस बना दिया गया. इस तरह एक छोटे से घर में शुरू हुई विको कंपनी और तैयार हुआ इसका पहला आयुर्वेदिक प्रॉडक्ट ‘विको वज्रदंती टूथ पाउडर’. दावा किया गया कि ये 18 जड़ी बूटियों से टूथ पाउडर दांतों की सफाई व मसूढ़ों को मजबूत करने में बेहद उपयोगी है. दूसरी बात थी कि ये पाउडर केमिकल फ्री था और बड़ों से लेकर छोटे-छोटे बच्चों के लिए भी सुरक्षित था.

कामयाब रहा आइडिया

प्रॉडक्ट तैयार हो गया था लेकिन इसे मार्केट में लाना और लोगों तक पहुंचाना बड़ी चुनौती थी. केशव ने इसका भी रास्ता निकाल लिया. वो अपने बेटों के साथ लोगों के घर-घर जाकर विको टूथ पाउडर बेचने और उसका प्रचार करने लगे. ये रास्ता आसान नहीं था, इसके लिए उन्हें कई लोगों से डांट सुननी पड़ी. कुछ तो बिना बात सुने ही उन्हें भगा देते थे. हालांकि केशव ने हार नहीं मानी और उसका ये नतीजा निकला कि उनकी मेहनत रंग ले आई. उनके प्रोडक्ट धीरे-धीरे लोगों के बीच अपनी पहचान बनाने लगे. फिर वो समय भी आया जब कंपनी इतना अच्छा करने लगी कि पेंढरकर परिवार ने इसे रजिस्टर करा ली. कंपनी ने 4 साल के अंदर ही इतनी तरक्की कर ली कि बड़ी संख्या में प्रॉडक्ट की मैन्युफैक्चरिंग के लिए उन्हें एक इंडस्ट्रियल शेड खरीदनी पड़ी.

बेटे ने बनाया पहला आयुर्वेदिक टूथपेस्ट

टूथ पाउडर के बाद अब बारी थी टूथपेस्ट की. केशव पेंढरकर ने जब यह देखा कि लोग धीरे-धीरे टूथ पाउडर की जगह टूथ पेस्ट इस्तेमाल कर रहे हैं तब उन्होंने विको का टूथपेस्ट लॉन्च करने के बारे में सोचा. विको को और ज्यादा मजबूती तब मिली जब केशव के बेटे गजानन ने फार्मेसी में डिग्री पा ली और 1957 में इस बिजनेस से जुड़ गए. केशव ने गजानन पेंढरकर से कहा कि वह जड़ी-बूटियों की मदद से एक टूथ पेस्ट तैयार करें. इसके बाद गजानन को विको वज्रदंती टूथपेस्ट बनाने में 7 वर्ष का समय लगा. ये वो समय था जब ज्यादातर टूथपेस्ट फ्लोराइड युक्त होते थे. ब्रश करते समय अगर कोई इन टूथपेस्ट को निगल लेता तो ये शरीर के लिए हानिकारक हो जाता था. बच्चों के लिए ये और भी ज्यादा हानिकारक था. वहीं विको ने प्राकृतिक तत्वों, आयुर्वेद के गुणों वाला टूथपेस्ट बनाया था जो रसायन मुक्त था.

केशव के बाद गजानन ने संभाली कंपनी

एक छोटी सी राशन की दुकान से अपने करियर की शुरुआत कर विको जैसी कंपनी की नींव रखने वाले केशव पेंढरकर 1971 में इस दुनिया को हमेशा के लिए अलविदा कह गए. कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार जब केशव का निधन हुआ उस समय तक विको कंपनी मात्र 1 लाख रुपये का टर्नओवर कमा रही थी लेकिन उनके बाद बिजनेस की बागडोर गजानन पेंढरकर के हाथ में चली आई. गजानन ने अपनी लगन और बिजनेस स्किल से विको को एक ब्रांड बना दिया.

विको टरमरिक स्किन क्रीम की तैयार

मंजन और टूथपेस्ट के बाद 1975 में गजानन ने विको को स्किनकेयर रेंज में उतारा और पीले रंग की विको टरमरिक स्किन क्रीम लॉन्च की. केमिकल फ्री और सिर्फ हल्दी के गुणों के साथ प्राकृतिक तत्वों के इस्तेमाल वाली क्रीम मार्केट पर पहले लोगों को भरोसा नहीं हुआ. लोगों को लग रहा था कि हल्दी की तरह क्रीम कहीं उनके चेहरे को पीला ना कर दे.

अपनाए विज्ञापन के अलग अलग तरीके

हालांकि समय के साथ साथ लोग ये बात मानने लगे कि विको टरमरिक क्रीम सेफ है. विको की मार्केटिंग के लिए बड़े अजब गजब उपाय लगाए गए. एक समय था जब विको के सेल्समैन अपने साथ हमेशा एक आइना रखते थे और रिटेलर्स और ग्राहकों को ऑन द स्पॉट क्रीम लगाकर दिखाते थे. इस तरीके ने खूब असर दिखाया और विको क्रीम ने लोगों के दिल से लेकर बाजार तक में अपनी जगह बनानी शुरू कर दी.

बाकी काम रेडियो पर आने वाले इसके आकर्षक जिंगल और थिएटर में चलने वाले इसके विज्ञापनों ने दिखाया. इसके बाद जब 80 के दशक में टीवी का चलन बढ़ने लगा तब विको क्रीम को लोगों तक पहुंचाने के लिए टीवी विज्ञापनों का सहारा लिया गया. ये विको क्रीम का विज्ञापन ही था जिससे संगीता बिजलानी को पहला ब्रेक मिला था. उनके अलावा अभिनेत्री मृणाल कुलकर्णी भी इसके विज्ञापनों में नजर आई थीं.

बताया जाता है कि भारत में टीवी शो को स्पॉन्सर करने का आइडिया खोजने वाले पहले व्यक्ति गजानन पेंढरकर ही थे. 1984 में दूरदर्शन पर आने वाले शो ‘ये जो है जिंदगी’ से इसकी शुरुआत हुई थी. यही नहीं विज्ञापनों के लिए फिल्मों की वीडियो कैसेट का भी इस्तेमाल किया गया. विको के जिंगल्स को क्षेत्रों के आधार पर तमिल, मलयालम, कन्नड़, तेलुगु, उड़िया, बंगाली, गुजराती, मराठी जैसी अलग-अलग भाषाओं में डब भी किया गया.

ऐसे जिंगल जो जुबान पर रट गए


1990 के दशक में विको ने अपने विज्ञापन के लिए ऐसा जिंगल चलाया जो देश के बच्चे बच्चे की जुबान पर रट गया. ये जिंगल था ‘विको टरमरिक नहीं कॉस्मेटिक’. विको पर लोगों का इतना भरोसा रहा कि आज के फैंसी और गोरा करने का दावा करने वाली क्रीमों के दौर में भी कुछ लोग केवल विको ही खरीदते हैं. हालांकि विको ने लोगों का दिल तो जीता लेकिन नए ग्राहक जोड़ने में सक्षम ना हो पाई. फिलहाल आपको मार्केट में विको वज्रदंती पेस्ट, विको टरमरिक क्रीम, विको शुगर फ्री पेस्ट, विको फोम बेस, विको टर्मेरिक फेस वॉश जैसे विको के प्रोडक्ट मिल जाएंगे.

बता दें कि विको को आज 35 सदस्यों वाला पेंढरकर परिवार चला रहा है. मौजूदा समय में विको कंपनी की तीन बड़ी फैक्ट्री हैं. इसके साथ ही इसके तीन जगह ब्रांच ऑफिस हैं. नागपुर के पास काफी बड़े पैमाने पर उनकी अपनी जमीन है, जहां पर जड़ी-बूटियां उगाई जाती हैं. कंपनी आज लगभग 40 उत्पाद 30 से ज्यादा देशों में एक्सपोर्ट कर रही है.