पूर्वजों के सम्मान में श्रद्धाभाव से किया गया कार्य ही श्राद्ध माना जाता है। इस वर्ष 29 सितंबर से 14 अक्तूबर तक पितृपक्ष रहेगा, जिसमें लोग अपने पूर्वजों के प्रति श्राद्ध करेगें। राजगढ़ के जाने-माने कथावाचक एवं कर्मकांड के ज्ञाता आचार्य पंडित अनिल शर्मा ने विशेष बातचीत में श्राद्ध के बारे बताया कि वर्तमान में श्राद्ध करना एक मात्र औपचारिकता बन गई है। जिस कारण अनेक परिवार पितृ दोष से ग्रसित हैं, जबकि श्राद्ध का धार्मिक ग्रंथों में बहुत महत्व है। वर्ष में केवल एक बार पितृ पक्ष आता है, जिसमें सभी पितृ धरती पर आकर अपने परिजनों को आर्शीवाद देते हैं।
आचार्य अनिल शर्मा ने बताया कि जो परिवार अपने पूर्वजों को श्राद्ध के दौरान श्रद्धा से याद करते हैं, उनके वंश के मार्ग सदैव प्रगति और खुशहाली की ओर प्रशस्त रहते हैं। पितृपक्ष में अपने पितरों के निमित तर्पण करना बहुत ही जरूरी है, जिसका उल्लेख गरूड़ पुराण में भी मिलता है। उन्होंने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि बदलते परिवेश में अधिकांश लोग पितरों के प्रति तर्पण नहीं करते हैं। केवल भोजन बनाकर भाई-बंधुओं को परोसने की केवल परंपरा शेष रह गई है। उन्होंने बताया कि तर्पण के बिना श्राद्ध अधूरा है।
आचार्य ने बताया कि शुक्ल अथवा कृष्ण पक्ष की जिस तिथि को व्यक्ति द्वारा प्राण त्यागें जाते हैं उसी तिथि को श्राद्ध करना चाहिए। तिथि का स्मरण न होने पर अपने पूर्वजों का अमावस्या को श्राद्ध करना चाहिए। अमावस्या का सर्वपितृ श्राद्ध किया जाता है, जिसके करने से परिवार में कई पुश्तों से मरे व्यक्तियों के निमित भी श्राद्ध हो जाता है। आचार्य का कहना है कि श्राद्धों में कौआ का बहुत महत्व माना जाता है।
श्राद्ध के दिन कौआ, गाय और कुत्ते को भोजन अर्पित करने से पितृ प्रसन्न हो जाते हैं। उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति पितृपक्ष में अपने पूर्वजों को याद नहीं करते अथवा उनके सम्मान में कोई तर्पण नहीं किया जाता है उस परिवार पर पितरों के आक्रोश से संकट बना रहता है। इनका कहना है कि पूर्वजों के आर्शिवाद से वंश की वृद्धि होती है, जिसके लिए पितरों को वर्ष के दौरान पड़ने वाले पितृपक्ष में जरूर याद करना याद करना चाहिए।
आचार्य ने बताया कि सनातन धर्म की परंपराएं बदलते परिवेश में विलुप्त होती जा रही है, जोकि स्वस्थ समाज के लिए उचित नहीं है। बताया कि किसी व्यक्ति के निधन के उपरांत किए जाने वाले वार्षिक और चतुर्थ वार्षिक श्राद्ध करने की परंपरा बहुत कम हो गई है। उन्होंने बताया कि अनेक धार्मिक प्रवृत्ति के व्यक्ति अपने परिजन की मृत्यु के उपरांत हर माह पिंडदान अथवा श्राद्ध करते हैं। जबकि अधिकांश लोग परिजन की मृत्यु के 13वें दिन तक का संस्कार भी सही ढंग से नहीं करते हैं।
आचार्य अनिल शर्मा ने लोगों से अपील की है कि पितृपक्ष में अपने पूर्वजों के निमित्त किए जाने वाले श्राद्ध में तर्पण किसी कर्मकांड के ज्ञाता पंडित से अवश्य करवाएं। इसके अतिरिक्त कौआ, गाय और कुत्ते को भोजन खिलाने के उपरांत ब्राह्मण और भाई बंधुओं को श्रद्धा भाव के साथ भोजन करवाएं। ताकि पितरों का आर्शीवाद परिवार पर बना रहे।