शूलिनी देवी भगवान शिव की शक्ति माता दुर्गा की अवतार हैं।
ऐसी मान्यता है कि जब राक्षस महिसासुर के अत्याचारों से सभी देवता और ऋषि मुनि परेशान हो गए थे, तब इनके अत्याचारों से बचने के लिए देवता और ऋषि मुनि शिव और विष्णु जी से सहायता मांगी और इसतरह शिव और विष्णु जी के तेज़ से माता दुर्गा प्रकट हुई।
इसके बाद शिव जी ने माता दुर्गा को अपने त्रिशूल में से एक शूल भेंट दिया। और इसी त्रिशूल से माँ दुर्गा ने महिसासुर का वध किया । और इस तरह त्रिसूल धारी होने की वजह से माता दुर्गा का नाम शूलिनी पड़ा।
अगर साक्ष्य के तौर पर भागवत पुराण की मानें तो इसमें में भी मां दुर्गा को कई बार… शूलिनी नाम से बुलाया गया है और गुरु गोबिंद सिंह जी ने भी देवी की आराधना शूलिनी नाम से ही की है।
==आज़ादी से पूर्व सोलन शहर,,बघाट रियासत की राजधानी हुआ करता था। चूकि बघाट रियासत के शासक माता शूलिनी को अपनी कुलदेवी मानते थे। इसीलिए इस रियासत के राजाओं ने अपनी कुलदेवी शूलिनी माता की यहाँ स्थापाना की और इन्हीं के नाम पर इस शहर का नाम सोलन रखा ।
तभी से यहाँ माता शूलिनी सोलन के मंदिर में विराजमान हैं। वैसे तो पूरा हिमाचल प्रदेश ही देव भूमि के नाम से जाना जाता है। क्यों कि यहाँ पर बहुत से देवी देवताओं के पवित्र स्थल हैं। इसीलिए यहाँ देवी देवताओं के बहुत से मंदिर मौजूद हैं और हर मंदिर अपना एक अलग महत्व रखता है। और इसी तरह सोलन में स्थित माता शूलिनी मंदिर का भी एक खास महत्व है।
यहाँ के लोगों का मानना है की मां शूलिनी के कृपा के कारन ही यहां किसी भी तरह की प्राकृतिक आपदा व महामारी नहीं आती, बल्कि सिर्फ खुशहाली रहती है।
==ऐसी मान्यता है की बघाट रियासत के शासक अपनी कुलदेवी को प्रसन्न करने के लिए मेले का आयोजन करते थे। मेले की जो यह परंपरा थी वो आज भी चली आ रही है। यह मेला सोलन में हर साल जून माह में ३ दिनों तक चलता है। ऐसा कहा जाता है की इस मेले के पहले दिन मां शूलिनी अपने मंदिर से पालकी में बैठकर शहर की परिक्रमा करते हुए गंज बाजार में स्थित अपनी बड़ी बहन मां दुर्गा से मिलने पहुंचती हैं और 3 दिनों तक वहीं विराजमान होतीं हैं।
इस यात्रा में लोग हजारों की संख्या में उपस्थित होकर माता शूलिनी का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इन 3 दिनों तक मां के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। इन दिनों सोलन के लगभग सभी जगहों पर ढेरों भंडारें आयोजित की जाती हैं। इस तरह यह मेला सांस्कृतिक महत्व तो रखता ही है साथ ही ढेरों खुशिया भी लेकर आता है।