ज़िद की दो किस्में होती हैं. एक ज़िद इंसान को बर्बाद करता है और दूसरा उसे हर तरह की चुनौती के आगे डट कर खड़ा रहने की हिम्मत देता है. दूसरे किस्म के जिद्दी लोग हर तरह की कठिनाई से लड़ कर अपने लिए खुद रास्ता तैयार करते हैं. इसी तरह की ज़िद है भारतीय महिला तीरंदाज शीतल देवी के अंदर.
दुनिया की पहली बिना हाथों की तीरंदाज
ये इनका जुनून ही है जिसने इन्हें दुनिया की एकमात्र ऐसी महिला तीरंदाज बना दिया है जो बिना हाथ के सटीक निशाना लगाती हैं. वर्ल्ड पैरा आर्चरी चैंपियनशिप के फाइनल में पहुंच चुकी शीतल देवी 16 साल की हैं. इस एथलीट ने इस टूर्नामेंट के महिला वर्ग के कंपाउंड इवेंट के फाइनल में जगह बनाई है. चेक रिपब्लिक के पिल्सेन में हो रही इस चैंपियनशिप में शीतल देवी ने सेमीफाइनल में भारत की ही सरिता को हराकर फाइनल में जगह बनाई है. उन्होंने इस मुकाबले में 137-133 के स्कोर से जीत हासिल की.
मां संभालती हैं बकरियां
अमर उजाला की रिपोर्ट के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर के लोही धार गांव की रहने वाली 16 साल की शीतल देवी बेहद गरीब परिवार से हैं. उनके पिता किसान और मां बकरियों को संभालती हैं. वह जम्मू की माता वैष्णोदेवी तीरंदाजी अकादमी से ट्रेनिंग लेती हैं. शीतल का जन्म बिना हाथों के हुआ. दुनिया की नजरों में एक एक बहुत बड़ी कमी है लेकिन शीतल ने कभी भी इसके लिए खुद कमजोर नहीं माना. शीतल ने केवल 11 महीने पहले तीरंदाजी सीखना शुरू किया था. इतने कम समय में ही वह उस स्तर पर अपनी छाप छोड़ रही हैं जिसके बारे में कुछ लोग केवल सपना देख सकते हैं.
कोच बढ़ाई हिम्मत
वर्ल्ड आर्चरी से बात करते हुए शीतल देवी ने बताया कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि तीरंदाजी कर सकती हैं लेकिन कोच कुलदीप कुमार ने उनकी इस सोच को बदल दिया. उनके एक फोन कॉल के बाद से ही शीतल के जीवन में बदलाव आया. कोच ने कहा, ‘उन्होंने शीतल से अकादमी में आने और अन्य लोगों को शूटिंग करते देखने के लिए कहा. वह तेजी से आगे बढ़ीं. कोच उसे राष्ट्रीय चैंपियनशिप में ले गए. वह उत्साहित थी और उसने विकलांगताओं वाले कई पैरा तीरंदाजों को देखा. उसे जल्द ही खेल में दिलचस्पी हो गई.’
शीतल देवी इस सप्ताह विश्व तीरंदाजी पैरा चैंपियनशिप में डेब्यू किया लेकिन यह उनका पहला अंतरराष्ट्रीय इवेंट नहीं है. इससे पहले उन्होंने चेक गणराज्य में ही मई में आयोजित यूरोपीय पैरा तीरंदाजी कप में सिल्वर मेडल जीता था. पिल्सन में शीतल के साथ मौजूद श्राइन बोर्ड अकादमी में कोच अभिलाषा बताती हैं कि शीतल मात्र छह माह के अंदर ही निपुण तीरंदाज बन गईं. यहां तक वह पैरा के अलावा आम तीरंदाजों के साथ खेलने लगीं.
अब फाइनल का इंतजार
अभिलाषा के अनुसार दो माह पहले ही चेक रिपब्लिक में शीतल ने अपना पहला अंतरराष्ट्रीय पैरा टूर्नामेंट खेला, जिसमें उन्होंने दो रजत और कांस्य जीते, लेकिन पेरिस पैरालंपिक की क्वालिफाइंग विश्व चैंपियनशिप में उनका प्रदर्शन शानदार रहा है. अगर वह फाइनल जीत जाती हैं तो वह खिताब जीतने वाली दुनिया की बिना हाथों की पहली महिला तीरंदाज बन जाएंगी.
शीतल को शुक्रवार को टीम इवेंट का मुकाबला भी खेलना था, लेकिन गुरुवार को उनकी काफी तबियत खराब हो गई. अभिलाषा के मुताबिक उन्हें यहां के अस्पताल में दाखिल कराना पड़ा. वह रात दो बजे अस्पताल से आई हैं. इस वजह से उन्हें आज का मुकाबला छुड़वा दिया गया. जिसके बाद उन्होंने शनिवार को होने वाले फाइनल की तैयारी शुरू कर दी.