स्कूल की पढ़ाई कॉलेज की पढ़ाई से भी महंगी होती दिखाई दे रही है। ऐसा हम इस लिए कह रहे है क्योंकि महज पहली कक्षा किताबें करीबन तीन हज़ार की निजी स्कूल दे रहे है। वहीँ आठवीं की किताबें नौ हज़ार तक कि आ रही है। सरकारी कॉलेज में पहले साल की किताबें महज दो हज़ार में आ जाती है। स्कूलों के इस व्यवसायी करण को लेकर शहरवासियों में ख़ासा रोष दिखाई दे रहा है। वहीँ एनसीईआरटी विभाग जो किताबों को लिखता है उसकी कीमत बेहद कम है। लेकिन उन किताबों के आधार पर निजी पब्लिशर्स जो किताबें लिखते है वह करीबन दस गुना रेटों पर बाज़ार में बेचीं जाती है। जो खेद का विषय है।
सोलन शहर वासियों का कहना है कि स्कूलों के बढ़ते व्यवसायी करण पर तुरंत रोक लगानी चाहिए और सरकार को कुछ सख्त कदम उठाने चाहिए ताकि स्कूलों की मनमानी पर रोक लगाई जा सके। उन्होंने कहा कि एनसीईआरटी की किताबों की कीमत बेहद कम है बल्कि निजी पलीशियर्स उन किताबों को मुँह बोले दामों पर बेच कर चांदी कूट रहे है। उन्होंने कहा कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो आम मिडल क्लास व्यक्ति अपने बच्चों को निजी स्कूलों में नहीं पढ़ा पाएगा। इस लिए स्कूलों के बढ़ते व्यवसायीकरण पर रोक लगनी चाहिए।