एक्टिंग, संगीत और निर्देशन के अलावा एक और चीज़ है, जो किसी भी फिल्म को दर्शकों में लोकप्रिय बनाती है. ये है फिल्म के संवाद यानी डायलॉग. अगर फिल्म के डॉयलॉग अच्छे हैं तो ये किसी भी फिल्म को अमर कर देते हैं. लोग सालों साल तक इन डायलॉग्स को अपने आम बोलचाल में इस्तेमाल करते रहते हैं.
अगर किसी खास परिस्थिति में लोगों को अपने मन से कोई बात नहीं सूझती तो वो यहां फिल्मी डायलॉग का प्रयोग कर लेते हैं. तभी तो फिल्में आईं और चली गईं लेकिन ये डायलॉग हमेशा के लिए अमर हो गए. आज हम बात करेंगे ऐसे ही कुछ लोकप्रिय फिल्मी डायलॉग्स के बारे में और साथ ही आपको बताएंगे कि इन्हें लिखा किसने
1. “रिश्ते में हम तुम्हारे…”
“रिश्ते में तो हम तुम्हारे बाप होते हैं…नाम है शहंशाह…हईं…” 90 के दशक का शायद ही कोई ऐसा लड़का हो जिसने अपने किसी दोस्त को अमिताभ की आवाज़ में ये डायलॉग ना दिया हो. इस डायलॉग की खास यही है कि इसे आप जब भी बोलेंगे तो अमिताभ स्टाइल में ही बोलेंगे और साथ में हईं ज़रूर लगाएंगे, इसके बिना फील जो नहीं आता. आज भी ये संवाद लोगों की ज़ुबान पर उतना ही चढ़ा जितना कि फिल्म की रिलीज़ के बाद चढ़ा था. संवाद है 1988 में आई शहंशाह फिल्म का और इसे इंद्र राज आनंद ने लिखा था.
2. ”मेरे पास मां है…”
दीवार फिल्म का यह डायलॉग सालों तक लोगों की ज़ुबान पर चढ़ा रहा. आम बोलचाल की भाषा में भी कोई सामान्य रूप से ये पूछता कि तुम्हारे पास क्या है तो सामने वाले के मुंह से अपने आप निकल जाता ‘मेरे पास मां है.’ अगर आप भी सिनेमा प्रेमी रहे हैं तो आपने भी कभी ना कभी ये डायलॉग ज़रूर बोला होगा. इस संवाद की लोकप्रियता का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि 1975 में रिलीज़ हुई दीवार फिल्म का ये संवाद आज के दौर में मीम के लिए भी खूब इस्तेमाल किया गया. इस संवाद को लिखा था जावेद अख्तर ने.
3. ”जा सिमरन…”
बच्चे तो बच्चे मां बाप भी इस डायलॉग के दीवाने रहे हैं. जितनी ही दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे फिल्म लोकप्रिय साबित हुई उतना ही लोकप्रिय रहा इस फिल्म का ये संवाद. इस संवाद पर भी खूब मीम बनाए गए. इसे लिखा था आदित्य चोपड़ा ने. इस फिल्म के निर्देशक भी आदित्य ही थे. डायलॉग की कैटेगरी में इस फिल्म को कई पुरस्कार भी मिले.
4. ”कौन हैं ये लोग…”
“कौन हैं ये लोग कहां से आते हैं ?” जॉली एल एल बी फिल्म का ये संवाद वैसे तो बेहद संवेदनशील भाव से फिल्माया गया था मगर उसके बाद मीमर्स ने इसकी जो हालत की उसने ना जाने कितनों को हँसाया. सोशल मीडिया पर भी ये संवाद बेहद लोकप्रिय रहा. इसे सुभाष कपूर ने लिखा था तथा 2014 में उन्हें बेस्ट डायलॉग के लिए फिल्म फेयर अवार्ड भी मिला. सुभाष जॉली एल एल बी, जॉली एल एल बी 2 और से सलाम जैसी फिल्मों के लिए संवाद लिख चुके हैं.
5. ”ई साला हिंदुस्तान में…”
गैंग्स ऑफ़ वसेपुर को हिंदी सिनेमा के एक बदलाव के रूप में देखा जाता है. इसका कारण भी है, इस फिल्म का निर्देशन, अदाकारों का अभिनय, संगीत सब एकदम अलग है. ऐसा जैसा हिंदी सिनेमा में पहले कभी नहीं देखा गया. इस फिल्म ने अपना एक अलग ही दर्शक वर्ग खड़ा कर लिया. इसकी सफलता का बहुत बड़ा श्रेय जाता है फिल्म के संवाद को. “ई साला हिंदुस्तान में जब तक सिनेमा है, तब तक लोग …. बनते रहेंगे.” रामधीर सिंह के किरदार में तिग्मांशु धुलिया द्वारा बोला गया ये संवाद दर्शकों के ज़हन में अमर हो गया.
6. ”नो मीन्स नो…”
पिंक फिल्म के इस डायलॉग ने लोगों को भावनात्मक तरीके से खुद के साथ कनेक्ट किया. इस डायलॉग के बाद जैसे कई महिलाओं को वो शब्द मिल गया जिसे वो सालों से बोलना चाह रही थीं. एक वकील का किरदार निभा रहे अमिताभ बच्चन द्वारा बोला गया नो मीन्स नो संवाद पूरे देश में एक कैंपेन की तरह चलाया गया. इस संवाद को लिखा था रितेश शाह ने. उन्हें इसके लिए फिल्म फेयर अवार्ड भी मिला. रितेश पिंक के अलावा कहानी, एयर लिफ्ट और रेड जैसी फिल्मों के संवाद भी लिख चुके हैं.
7. ”बीहड़ में बागी होते हैं…”
इस डायलॉग की बात करने से पहले एक किस्सा सुन लीजिए. किसी जमाने में तिग्मांशु धुलिया और इरफ़ान खान साथ रहा करते थे. इरफ़ान स्ट्रगल कर कर के थक चुके थे. एक शाम निराश होकर बोले कि अब और झेला नहीं जाता वापस जा रहे हैं. इस पर तिग्मांशु ने इरफ़ान की पीठ पर धौल जमाते हुए कहा ‘अबे रुको, तुमको नेशनल अवार्ड दिला दें तब चले जाना.’
पता नहीं तिग्मांशु ने ये बात किस मूड में कही थी, लेकिन 2013 में तिग्मांशु द्वारा निर्देशित और इरफ़ान द्वारा अभिनित फिल्म पान सिंह तोमर को बेस्ट फिल्म और बेस्ट एक्टर के लिए नेशनल अवार्ड मिले. तिग्मांशु की कही बात सच साबित हुई. इसी शानदार फिल्म का ये डायलॉग ‘बीहड़ में बाग़ी होते हैं, डकैत होते हैं पाल्लयामेंट में’ हर किसी की ज़ुबान पर चढ़ गया.
8. ”आप पुरुष नहीं…”
किसी को ये कहना कि ‘आप पुरुष नहीं…’ और जब सामने वाला संवाद सुन कर आपकी तरफ घूरे तो झट से कह देना ‘ महापुरुष हैं, महापुरुष.’ बहुत लोगों ने अपने दोस्तों के साथ ऐसा मज़ाक किया होगा. ये मज़ाक आया फिल्म अंदाज़ अपना अपना फिल्म के संवाद से. इस कॉमेडी फिल्म की हर बात लाजवाब है और इसके डायलॉग्स के तो क्या ही कहने. 1994 में रिलीज़ हुई इस फिल्म को डायरेक्ट किया था राजकुमार संतोषी ने और उन्होंने ही फिल्म के संवाद भी लिखे थे.
9. ”आप हमसे हमारी ज़िंदगी…”
संजय लीला भंसाली द्वारा निर्देशित फिल्म बाजीराव मस्तानी को लोगों ने खूब पसंद किया. जितना ये फिल्म लोगों को पसंद आई उतने ही पसंद किए गये इस फिल्म के डायलॉग. काशीबाई के किरदार में प्रियंका चोपड़ा द्वारा बोला गया वो संवाद बहुत लोकप्रिय हुआ जिसमें वो भावुकता के साथ कहती हैं “आप हमसे हमारी ज़िंदगी मांग लेते, हम आपको खुशी खुशी दे देते. पर आपने तो हमसे हमारा गुरूर ही छीन लिया.” यह संवाद लिखा था प्रकाश कपाडिया ने.
10. ”बाबू मोशाय…”
बॉलीवुड ने अपनी तिजोरी में अनगिनत फिल्मों का ख़ज़ाना संभाला हुआ है और फिल्म आनंद इस खजाने के सबसे अनमोल रत्नों में से एक है. इस फिल्म की जितनी तारीफ की जाए उतनी ही कम है. वैसे तो फिल्म में कई ऐसे संवाद हैं जो सिनेमा के कम और ज़िंदगी की हकीक़त ज़्यादा लगते हैं मगर इनमें भी एक संवाद है “बाबू मोशाय, ज़िंदगी बड़ी होनी चाहिए, लंबी नहीं.” इस संवाद की लोकप्रियता आज भी बनी हुई है. इस लोकप्रिय संवाद को गुलज़ार साहब ने लिखा था.
11. ”डॉन को पकड़ना..”
खई के पान बनारस वाला…कहते हैं, जब तक बनारस रहेगा तब तक ये गीत रहेगा और गुरू जान लो कि बनारस तब भी रहेगा जब कुछ नहीं रहेगा. तो मतलब कि ना तो आप इस गीत को भूल पाएंगे, ना आपसे पूरानी वाली डॉन फिल्म भुलाई जाएगी और ना आप भुला पाएंगे इस फिल्म का डायलॉग. कौन सा डायलॉग ? तो ये वाला “डॉन को पकड़ना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है.” इसी तरह इस फिल्म और इस संवाद को भुलाना भी मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है. और इस नामुमकिन चीज़ को कागज़ पर सलीम जावेद की जोड़ी ने उतारा था.
तो जनाब ये थे कुछ ऐसे डायलॉग जिन्हें कभी नहीं भुलाया जा सकता. इन सभी डायलॉग्स को आप सबने भी कभी ना कभी ज़रूर बोला होगा!