Rani Abbaka Chowta: वो वीरांगना जिसने 16वीं शताब्दी में पुर्तगालियों को नाकों चने चबवा दिए

Veer Rani Abakka Chowta

1857 को अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ भारतीयों ने मोर्चा खोल दिया था. ग़ौरतलब है कि इससे पहले भी अंग्रेज़ी सरकार, अन्य विदेशी ताकतों से हमारी मिट्टी की रक्षा करने के लिए राजा-रजवाड़ों और रानियों ने युद्ध किया. दुख की बात है कि इनमें से कई वीरांगनाओं और वीरों की कहानियां इतिहास में कहीं दफ़न हो गईं, वक़्त की धूल ने उन्हें धूमिल कर दिया है और हम ऐसी कई घटनाओं से अनजान हैं. झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का नाम देश का बच्चा-बच्चा जानता है लेकिन उनसे पहले भी कई वीर रानियों ने अपनी माटी की रक्षा करते हुए शहीदी पाई.

2009 में भारतीय कोस्ट गार्ड में एक पेट्रोलिंग जहाज़ कमिशन्ड हुई, ICGS Rani Abbakka. कौन हैं ये रानी अब्बक्का जिनके नाम पर भारत की सीमा की निगरानी करने के लिए जहाज़ तैनात किया गया है. आज जानेंगे उसी वीरांगना की कहानी.

रानी के बारे में जानने से पहले, पुर्तगालियों के समुद्री पर कब्ज़ा करने की कोशिशों के बारे में कुछ बातें

दरअसल 7वीं शताब्दी में भारत के पश्चिमी तट और अन्य देशों के बीच समुद्री व्यापार फलने-फूलने लगा. युद्ध के घोड़े, मसाले, कपड़ा आदी का आयात-निर्यात किया जाता. समुद्री व्यापार को देखकर यूरोप के कुछ देशों की नज़र भारत पर पड़ी. पुर्तगालियों ने आख़िरकार 15वीं शताब्दी में भारत तक पहुंचने का समुद्री रास्ता खोज लिया. 1498 में वास्को डे गामा भारत के कालिकट तट पर पहुंचा. इसके 5 साल बाद पुर्तगालियों ने कोच्चि में पहला किला बनाया और इसके साथ ही भारतीय महासागर पर स्थित कई देशों में पुर्तगालियों का दब-दबा बनने लगा. पुर्तगालियों ने अपने तार चीन के मकाऊ तक फैला लिए. व्यापारी की भेष में आए पुर्तगालियों ने धीरे-धीरे समुद्री रास्तों पर नियंत्रण बनाना शुरु किया. भारत जिस रास्ते से मसाले भेजता था उनमें से सभी रास्तों पर पुर्तगालियों का नियंत्रण हो गया और ये सब वास्को डे गामा के भारत में आने के 20 साल बाद ही हो गया. पेड परमिट (Cartaz) देकर समुद्री रास्तों का इस्तेमाल संभव था. अब तक जिन व्यापारी रास्तों का इस्तेमाल मुफ़्त में करते आ रहे थे उनके लिए लोगों से टैक्स मांगा जाने लगा.

1526 में पुर्तगालियों ने मैंग्लोर बंदरगाह जीत लिया और उनका अगला निशाना था उल्लाल.

वीरांगाना रानी अब्बक्का

Veer Rani Abbaka Chowta The Better India

उल्लाल, चौटा के राजा, तीरुमाला राय तृतीय (Thirumala Raya III) की राजधानी थी. चौटा जैन राजा थे जो 12वीं शताब्दी में गुजरात से तुलू नाडू (Tulu Nadu) में आकर बसे थे. आज के कर्नाटक के दक्षिण कन्नड़ ज़िले, उदुपी के कुछ इलाके और केरल के कासरगोड़ ज़िला था तब का तुलू नाडु.

चौटा वंश मातृसत्ता का पालन करता था और राजा तीरुमाला तृतीय का राज उनकी भतीजी अब्बक्का को मिला.

बचपन में ही राजकुमारी अब्बक्का ने तलवारबाज़ी, तीरंदाज़ी, युद्ध के दांव-पेंच, कूटनीति, युद्ध नीति आदि गुर सीख लिए थे. उल्लाल की राजगद्दी पर बैठी रानी अब्बक्का ने पुर्तगाली खतरे को अच्छे से भांप लिया था.

मृत्यु से पहले राजा तीरुमाला ने रानी अब्बक्का का विवाह मैंग्लोर के राजा लक्ष्मप्पा बंगराजा से तय कर दिया था. शादी के बाद भी रानी अब्बक्का उल्लाल में ही अपने तीन बच्चों के साथ रहती और राज की बागडोर संभाल रही थी. The Week के लेख के अनुसार, अब्बक्का के पति से पुर्तगालियों ने वादा किया कि वो उन्हें अपना राज्य फैलाने में मदद करेंगे. जब अब्बक्का को ये पता चला तो उन्होंने बंगराजा के दिए गहने वापस किए, और अपने पति से सभी नाते-रिश्ते तोड़ लिए. बंगराजा बदला लेने के लिए पुर्तगालियों से जा मिला और रानी के ख़िलाफ़ षड्यंत्र रचने लगा.

उल्लाल पर पुर्तगालियों की नज़र

उल्लाल एक फलता-फूलता समुद्री तट पर बसा नगर था. रानी अब्बक्का के राज में राज्य की समृद्धी और ख़ुशहाली में वृद्धि हुई. पुर्तगाली भारत में पांव पसार रहे थे और उल्लाल की धन-संपत्ति पर भी उनकी नज़र पड़ी. वो रानी अब्बक्का से मनमाने टैक्स मांगने लगे. रानी अब्बक्का उनकी नाजायज़ मांगों के आगे नहीं झुकी और पुर्तगालियों की एक भी बात मानने से इंकार कर दिया. रानी अब्बक्का के जहाज़ अरब तक सामान ले जाते रहे, पुर्तगाली रास्ते में उन पर हमला करते.

पुर्तगालियों का उल्लाल पर लगातार आक्रमण

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पुर्तगालियों ने रानी को हराने के लिए कमर कस ली और उल्लाल पर लगातार आक्रमण करने लगे. IGNCA के लेख के अनुसार, रानी की सेना में हर धर्म और जाति के लोग थे. अब्बक्का जैन धर्म का पालन करती थी लेकिन उनके राज में हिन्दुओं और मुस्लिमों को भी ऊंचे पद दिए जाते थे.

पुर्तगाली और रानी अब्बक्का के बीच पहला युद्ध 1555 में लड़ा गया. पुर्तगाल के एडमिरल डॉन अल्वारो दे सिल्वेरा उल्लाल जीतने पहुंचे, युद्ध विराम संधि के बाद पुर्तगाली पीछे हटे.

1558 बाद दोगुनी सेना लेकर पुर्तगालियों ने उल्लाल पर आक्रमण किया और उल्लाल को कुछ हद तक क्षति पहुंचाने में सफ़ल रहे. रानी अब्बक्का ने अपनी कुशल युद्ध नीति, कोज़ीकोड के ज़ामोरिन और अरब मूर्स की मदद से एक बार फिर पुर्तगालियों को धूल चटाया

1567 में एक बार फिर पुर्तगाली सेना उल्लाल हथियाने पहुंची और मुंह की खाकर वापस लोटी. इसी साल गोवा के पुर्तगाली वायसरॉय Anthony D’Noronha ने General Joao Peixoto को उल्लाल जीतने भेजा. Peixoto ने राजमहल पर कब्ज़ा करने में क़ामयाब हो गया. ग़ौरतलब है कि रानी अब्बक्का पुर्तगालियों के हाथ न लगी और एक मस्जिद में शरण ली. सिर्फ़ 200 सैनिकों के साथ रानी अब्बक्का ने पुर्तगालियों पर रात के अंधेरे में हमला किया और जनरल और उसके 70 सैनिकों को मार गिराया. आक्रमण इतना भीषण था कि बाक़ी पुर्तगाली सैनिक भाग गए.

Veer Rani Abakka ChowtaThe Puratchi

उल्लाल में जो पुर्तगाली सैनिक बच गए थे वे अपनी जीत का जश्न मना रहे थे. इस मौक़े का फ़ायदा उठाकर रानी अब्बक्का के 500 मुस्लिम समर्थकों ने पुर्तगालियों पर हमला कर दिया और Admiral Mascarenhas को मार गिराया. 1568 में पुर्तगालियों को मैग्लोर के किले को छोड़ना पड़ा. ग़ौरतलब है कि 1569 में पुर्तगालियों ने दोबारा मैंग्लोर के किले पर और साथ की कुंडापुर पर भी कब्ज़ा कर लिया.

1570 में रानी अब्बक्का ने बिजापुर के सुल्तान अहमद नगर और कालीकट के ज़ामोरिन के साथ गठबंधन किया. ये दोनों भी पुर्तगालियों के विरोधी थे. कुट्टी पोर्कर मारकर, ज़ामोरिन के सेनापति अब्बक्का की ओर से लड़े और मैंग्लोर स्थित पुर्तगालियों का किला ध्वस्त कर दिया. मारकर को रास्ते में पुर्तगाली सैनिकों ने धोखे से मार गिराया.

पुर्तगाली हार मानने वालों में से नहीं थे. 1581 में उन्होंने 3000 पुर्तगाली सैनिकों के साथ Anthony D’Noronha को उल्लाल पर धावा बोलने भेजा. भोर से कुछ घंटे पहले पुर्तगाली समुद्री जहाज़ों ने उल्लाल पर आक्रमण कर दिया. रानी अब्बक्का मंदिर से वापस आ रही थी और अचानक हुए हमले से चौंकी लेकिन तुरंत ही संभलकर युद्ध की कमान संभाली.

Veer Rani Abbaka Chowta Remains of Rani Abbaka Fort/The Better India

रानी अब्बक्का के पूर्व पति ने रानी की युद्ध नीतियां, गुप्त रास्ते आदि जैसी अहम जानकारियां पुर्तगालियों को दे दी. पुर्तगालियों ने इसी का फ़ायदा उठाकर रानी को बंदी बना लिया. रानी अब्बक्का जेल में भी पुर्तगालियों से लड़ती रहीं और शहीद हो गईं.

इतिहास में पुर्तगालियों का सामना, उनकी सेना से लगातार युद्ध और उन्हें बार-बार किसी रानी ने हराया है तो वो है रानी अब्बक्का चौटा या रानी अब्बक्का महादेवी ने. भारत की वो वीरांगना जिन्होंने थल पर ही नहीं जल पर भी विदेशी ताकतों को हार का स्वाद चखाया, वो थी रानी अब्बक्का.

यहां एक बात कहना ज़रूरी है, रानी अब्बक्का और पुर्तगालियों के बीच हुई लड़ाइयों के दस्तावेज़ों में कई असमानाताएं मिलती हैं.

रानी अब्बक्का को लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं. कहा जाता है कि अग्निबाण का इस्तेमाल करने वाली वो आख़िरी रानी और देश की पहली महिला स्वतंत्रता सेनानी थी.

दक्षिण कन्नड़ के बंटवाल तालुक में एक इतिहासकार, प्रोफ़ेसर तुकाराम पुजारी (Professor Thukaram Poojary) ने उल्लाल की रानी अब्बक्का चौटा की स्मृति में एक संग्रहालय बनाया है.