घर को सजाना हो या फिर मंदिर को, ज़रूरत होती है फूलों की… भगवान पर फूलों के हार चढ़ाकर और फूलों की बारिश कर मन को खुश करना हो या फिर भगवान को… इन सब कामों के लिए जो सबसे ज़रूरी चीज़ है, वो है फूल.
मंदिर ही क्यों मजिस्दों और गुरूद्वारों में भी फूलों की मांग होती है, पर क्या कभी आप उन फूलों के बारे में सोचते हैं जो श्रद्धा से चढ़ाए तो जाते हैं लेकिन बासी हो जाने के बाद उन्हें उतार कर फेंक दिया जाता है. देवों के दरबार में फूल चढ़ाएं जाने और उतारे जाने का सिलसिला सालों सदियों से जारी है और ये हमेशा जारी रहेगा. पर किसी ने सोचा नहीं था कि बासी फूल भी काम आ सकते हैं और बिज़नेस के काम आ सकते हैं.
हम बात कर रहे हैं कानपुर के IITian अंकित अग्रवाल की. जो इन दिनों फूल डॉट कॉम के सीईओ और फाउंडर हैं. अंकित इन्हीं बासी फूलों को जमा करते हैं और फिर उसे रीसाइकिल कर हमारे सामने एक नए रंग में पेश करते हैं.
दोस्त से मिला बिज़नेस आइडिया
आईआईटी कानपुर से पढ़ाई करने के बाद कानपुर के अंकित अग्रवाल को 14 लाख सालाना के पैकज वाली नौकरी मिल गई. पहली ही कमाई लाखों में थी, परिवार वालों के चेहरे खिल गए और अंकित भईया चले गए नौकरी करने. सब कुछ ठीक चल रहा था, कमाई हो रही थी, सपने भी पूरे होने लगे थे पर अंकित की सोच अलग थी. वो ऐसा कुछ करने की सोच रहे थे, जिससे उनके साथ-साथ गरीब परिवारों को भी काम मिले. इसी उधेड़बुन के बीच अंकित की बात विदेश में बसे अपने एक दोस्त से हुई. अंकित की परेशानी को समझते हुए और भारत घूमने की चाह में वह भी इंडिया आ गया. बिज़नेस की चर्चा करते हुए दोनों दोस्त गंगा किनारे पहुंचे.
जहां पानी में फूलों का ढ़ेर लगा हुआ था. ये वही फूल थे जो मंदिरों में चढ़ाए गए या फिर गंगा जी में बहाए गए थे. ये फूल आस्था में चढ़ाए गए थे पर वे गंगा को इतना दूषित कर रहे थे कि पानी पर सेल्यूलोज की एक परत सी जम गई थी. दोस्त ने कहा इसे साफ करने के लिए कुछ करते क्यों नहीं? एक बारी अंकित को लगा स्वच्छ भारत अभियान से जुड़ जाएं पर ये कोई बिजनेस थोड़े ही था!
खैर दोस्त तो वापिस चला गया पर अंकित को सोचने के लिए एक आइडिया जरूर मिल गया, कि आखिर गंगा को साफ कैसे किया जाए और इन फूलों का क्या करें?
छोड़ दिया 14 लाख रु का पैकेज
अंकित ने अपने कुछ विदेशी दोस्तों से संपर्क किया और खराब फूलों के रिसाइकिल किए जाने की प्रक्रिया के बारे में समझा. इसके बाद कानपुर के मंदिरों में घूम-घूमकर बासी फूलों के बारे में जानकारी ली, जैसे कि कितने फूल इस्तेमाल होते हैं, बाद में उनका क्या होता है और क्या वे फूल उन्हें दे सकते हैं?
मंदिर प्रबंधन को भला क्या दिक्कत होती. ऐसा करने से उनका मंदिर साफ़ ही रहता, सो सबने कहा कि वे बासी फूल उन्हें दे सकते हैं. बस फिर क्या था, अंकित ने अपनी नौकरी छोड़ बासे फूलों को रिसाइकिल कर उसके प्रोडेक्ट बनाने की सोची. एक इंटरव्यू में अंकित ने बताया था कि जब नौकरी छोड़ने की बात घरवालों को पता चली तो सभी नाराज हुए. रिश्तेदार और जान पहचान वाले तरह-तरह की बातें करने लगे, लेकिन वो कहते हैं ना कि एक बार जो ठान ली सो ठान ली. बस फिर क्या था, अंकित ने अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर फूल जमा करने का काम शुरू किया.
इसके बाद उन महिलाओं को काम दिया जो गंगा घाट पर बैठकर अगरबत्ती बनाया करती थीं. वे महिलाएं फूलों से उनकी पत्तियों को निकालती और फिर रिसाइकिल करने की प्रक्रिया के बाद उन्ही से अगरबत्ती, धूपबत्ती, हवन सामग्री बनाती. इस प्रोडेक्ट को पूरी तरह प्राकृतिक रखा गया, जैसे फूलों के साथ तुलसी के बीज और गंगा धुली माटी प्रयोग में लाई जाती.
शुरूआत में प्रोडेक्ट बेचना कुछ मुश्किल था पर नामुमकिन नहीं रहा. अंकित ने अपने किसी भी प्रोडेक्ट पर देवी—देवताओं के चित्र नहीं बनवाएं, पैकेट भी रिसाइकिल पेपर से तैयार किए जाते. कुछ ही दिनों में यह स्टार्टअप चल निकला. और इसे नाम दिया गया फूल डॉट कॉम (phool.co).
इस कोशिश को आईएएन फंड ने 1.4 मिलियन यूएस डॉलर का निवेश करके मुनाफे का सौदा बना दिया है. आपको बता दें कि शिक्षा, पर्यावरण जैसे विभिन्न स्टार्टअप को इस फंड के माध्यम से मदद दी जाती है. आप यकीन नहीं करेंगे कि करीब हर साल 80 लाख टन फूलों का अंत देश की नदियों में होता है. सोचिए अगर ये फूल नदियों में जाने की बजाए काम में आ जाएं तो कितना फायदा होगा, नदियों का भी और हमारा भी.
सम्मान के लायक है ये कोशिश
इतना ही नहीं फूल डॉट कॉम ने फूलों को रिसाइकिल कर पशुओं के चमड़े यानी एनिमल लेदर का कॉमर्शियल विकल्प पेश किया है. यह पूरी तरह से रासायनिक से हटकर एक प्राकृतिक विकल्प है. इसका नाम उन्होंने “फ्लेदर” रखा है. इस कोशिश के लिए अंकित की कंपनी पेटा के सर्वश्रेष्ठ नवाचार वेगन वर्ल्ड से सम्मानित हो चुकी है.
संयुक्त राष्ट्र यंग लीडर्स अवार्ड, COP 2018, द नेशंस मोमेंटम ऑफ़ चेंज अवार्ड, एशिया सस्टेनेबिलिटी अवार्ड 2020, हांगकांग, एलक्विटी ट्रांसफ़ॉर्मिंग लाइव्स अवार्ड्स, लंदन और ब्रेकिंग द वॉल ऑफ़ साइंस, बर्लिन अवार्ड भी कंपनी के खाते में गए हैं. फूल डॉट कॉम अब कानपुर से होते हुए तिरूपति बाला जी मंदिर तक पहुंच चुका है.
अंकित देश के सभी नामी मंदिरों तक पहुंच बनाने की कोशिश कर रहे हैं ताकि भगवान को अर्पित हुए फूलों को उपयोग में लाया जा सके. उनके इस स्टार्टअप ने कानपुर समेत देश के विभिन्न हिस्सों की सैकड़ों महिलाओं को रोजगार दिया है. जो लोग सालाना 14 लाख की कमाई वाली नौकरी छोड़ने पर अंकित का मजाक बना रहे थे उनके सामने अब उदाहरण है फूल डॉट कॉम! जो हर साल तकरीबन 2 करोड़ रुपए से ज्यादा का मुनाफा कमा रहा है. इस मुनाफे से हटकर देखें तो अब नदियों में फूलों का प्रदूषण कम होने लगा है.
इन फूलों में रासायनिक पदार्थ मिले होते हैं, जो नदी के पानी को भी दूषित करते हैं. इतना ही नहीं कई बार तो मंदिर के फूल कचरे के ढेर पर मिलते हैं… अच्छा है कि फूल डॉट कॉम ने उन्हें सही जगह पहुंचा दिया है. अगर आपके पास भी फूल डॉट कॉम जैसा कोई उदाहरण है तो हमें जरूर बताएं…. हो सकता है कि अंकित अग्रवाल जैसा कोई और युवा बिजनेस आईकॉन हमारे बीच हो!