Parachute Coconut Oil: World War 2 से जुड़ी नाम की कहानी, चूहों से जंग लड़कर बना देश का पहला नारियल तेल ब्रांड

एक समय था जब गांव-देहात से लेकर शहरों तक में कई लोग चावल नापने के लिए एक छोटे टीन के डिब्बे का इस्तेमाल करते थे. बिहार के गांव में इसे ‘चाउर नपना’ कहा जाता था. चावल आज भी नापा जाता है लेकिन अब ग्लास या छोटे लोटे का ज्यादा प्रयोग होता है. एक दौर था जब खास कर गांवों के लगभग हर घर में ये चावल नापने वाला टीन का डिब्बा दिख जाता था.

वो टीन का डिब्बा होता था ‘Parachute Coconut Oil’ का. अब सोच लीजिए कि इस नारियल तेल की क्या लोकप्रियता रही है जो लगभग हर घर में इसके डिब्बे दिख जाया करते थे. हालांकि कंपनी ने टीन के डिब्बों की जगह प्लास्टिक की बोतलों का इस्तेमाल शुरू कर दिया लेकिन इस नारियल तेल की मांग नहीं घटी. डिब्बा बंद नारियल तेल भारत में बहुत पहले से है लेकिन इसे असली पहचान पैराशूट ने ही दिलाई.

1862 में शुरू हुआ Parachute Coconut Oil का सफ़र

कहा जाता है कि केरल में एक लोकप्रिय धारणा यह है कि एक नारियल तेल ब्रांड के नाम में ‘केरा’ जरूर होना चाहिए. लेकिन महाराष्ट्र में स्थित मैरिको कंपनी ने इस मिथक को तोड़ दिया. मैरिको कंपनी के पास पैराशूट ब्रांड का स्वामित्व है. इसके संस्थापक और अध्यक्ष हैं हर्ष मारीवाला.

भारत में 1992 के आर्थिक उदारीकरण से पहले, सरकार ने वनस्पति तेल को एक आवश्यक वस्तु की मान्यता दे दी थी. हालांकि कांजी मोरारजी 1862 में ही मुंबई में तेल का एक छोटा व्यापारिक व्यवसाय शुरू कर चुके थे. गुजरात के कच्छ के रहने वाले कांची मोरारजी ने 1862 में इस व्यवसाय की शुरुआत कर दी थी. बाद में उन्होंने अपने भतीजे वल्लभदास को इसमें हिस्सेदार के रूप में शामिल कर लिया. मोरारजी और वल्लभदास की कमीशन एजेंसी ने सबसे पहले केरल में प्रवेश किया क्योंकि यह तब मसालों का स्वर्ग माना जाता था. हल्दी, काली मिर्च, अदरक और खोपरा (सूखे नारियल की गुठली) को राज्य से मुंबई ले जाया जाता और फिर ट्रेनों के माध्यम से दिल्ली, अमृतसर और कोलकाता भेजा जाता.

दोनों ने केरल में एक मसाला व्यापार केंद्र शुरू किया. इसके बाद अल्लेप्पी में एक काली मिर्च प्रसंस्करण इकाई खोली. गुजराती में ‘मारी’ का अर्थ काली मिर्च है. व्यापारियों द्वारा मसाला व्यापार को बढ़ावा देने के उनके प्रयासों की सराहना के रूप में ‘वल्लभदास’ ने इस शब्द को अपने नाम से जोड़ लिया और मारीवाल सरनेम रख लिया.

मुंबई ऑयल इंडस्ट्री लिमिटेड की स्थापना

वल्लभदास और उनके चार बेटों ने 1948 में कृषि उत्पादों के प्रसंस्करण और बिक्री को बढ़ावा देने के लिए मुंबई ऑयल इंडस्ट्री लिमिटेड की स्थापना की. उन्होंने 1947-71 की अवधि में मुंबई में तीन संयंत्र शुरू किए. उन्होंने राज्य में केवल मार्केटिंग करने के बजाय केरल में एक कंपनी शुरू की और नारियल का तेल, वनस्पति तेल और रासायनिक पदार्थों का उत्पादन और विपणन किया\

और यहां से हुई Marico की शुरुआत

Parachute Coconut Oil History Harsh Mariwala Marico Industries Twitter

इसके बाद आया Marico इंडस्ट्रीज लिमिटेड कंपनी का समय जिसने देश में नारियल तेल का पहला ब्रांड तैयार किया. 4 दशक पहले शुरू हुए नारियल तेल का सफर आज भी जारी है. Marico ने देश को एक ऐसा नारियल तेल दिया जो यहां के घर घर में इस्तेमाल होने लगा. नारियल तेल का दूसरा नाम पैराशूट पड़ गया. एक अनोखे तरह के नाम के साथ आने वाला ये नारियल तेल देखते ही देखते पूरे देश में छा गया. 1990 के दशक में मैरिको ने बांग्लादेश में एक विनिर्माण संयंत्र स्थापित करके विदेशी बाजारों में अपनी पहली गंभीर प्रविष्टि की. पैराशूट खाद्य तेल में 100% नारियल का तेल होता है जबकि इसके हेयर ऑयल में नारियल के तेल के साथ 50% खनिज तेल होता है.

मैरिको दो तरह का नारियल तेल बनाती है, एक पैराशूट एडिबल ग्रेड कम हेयर ऑयल और दूसरा पैराशूट एडवांस्ड हेयर ऑयल. कंपनी दावा करती है कि वो अपने उत्पाद बाजार में लाने से पहले उस पर 6 साल का गहन शोध करती है.

बता दें कि मैरिको जो पैराशूट के साथ सफ़ोला जैसे खाद्य तेल उत्पादन के लिए जानी जाती है, 13 अक्टूबर 1988 को शुरू हुई. मैरिको फूड्स लिमिटेड के नाम से इस कंपनी ने 22 नवंबर को कारोबार शुरू करने का प्रमाणपत्र प्राप्त किया. 31 अक्टूबर 1989 को कंपनी का नाम बदलकर मैरिको इंडस्ट्रीज लिमिटेड कर दिया गया. कंपनी के उत्पाद पैराशूट, सफोला, स्वीकार, मैरिको हेयर एंड केयर, रिवाइव और सिल ब्रांड नाम से बेचे जाते हैं.

ये गुजराती बिजनेस टाइकून हर्ष मारीवाला ही थे जिन्होंने 1988 में चालीस साल की उम्र में मैरिको की शुरुआत की. यह उपभोक्ता उत्पादों के कारोबार में सबसे बड़े, सबसे सफल खिलाड़ियों में से एक हैं. आज हर तीन में से एक भारतीय पैराशूट, सफोला, निहार, काया और मेडिकर जैसे मैरिको उत्पाद का उपयोग करता है.

हेयर ऑयल पर लिया बड़ा रिस्क

हर्ष मारीवाला ने जब मैरिको की शुरुआत की तब उन्होंने उन श्रेणियों पर गौर करने का फैसला किया जहां एमएनसी यानी बहुराष्ट्रीय निगम मौजूद नहीं थे. ऐसे में एक श्रेणी का नाम सामने आया, जो था बालों में लगाने वाला तेल. हेयर ऑयलिंग केवल सीमित भागों में मौजूद था, मुख्य रूप से भारत, पड़ोसी देशों और मध्य पूर्व में. जब हर्ष ने इस बारे में बात करने के लिए विश्लेषकों और उन लोगों से बात की जो उनकी कंपनी में निवेश करना चाहते हैं, तो सबसे पहले उन्होंने यही पूछा कि, “बालों में लगाने वाला तेल क्या है?” और फिर उन्होंने बताया कि ये क्षेत्र अब खत्म हो रहा है, जो की उस समय सच था. हालांकि हर्ष इस बात को लेकर पहले से क्लियर थे कि यह आदत भारत में खत्म नहीं होगी, लोग कभी भी बालों में तेल लगाना नहीं छोड़ेंगे.

ऐसे में उन्होंने हेयर ऑयल पर एक बड़ा दांव लगाने का फैसला किया. इस क्षेत्र में कंपटीशन कम था जिससे हर्ष को अपनी सफलता की बहुत अधिक संभावना दिखी. हेयर ऑयल का यह दांव वास्तव में रंग लाया है. बालों में लगाने वाले तेल का चलन बढ़ रहा था और उन्होंने इसके फायदों पर काफी काम किया है. मैरिको ने लगभग 10-15 साल पहले बांग्लादेश के बाजार में प्रवेश किया था और आज उनके पास वहां 80% बाजार की हिस्सेदारी है. बांग्लादेश में सबसे बड़ी भारतीय कंपनी मैरिको है.

इस वजह से केरल को चुना

हर्ष मारीवाला नारियल तेल के लिए देश के किसी भी कोने में इकाइयां शुरू कर सकते थे लेकिन उन्होंने सबसे ज्यादा विचार गुजरात, गोवा, पांडिचेरी और केरल पर किया. मुंबई ऑयल इंडस्ट्रीज चलाने के समय भी मारिवार परिवार को केरल से ही खोपरा मिलता था. इस राज्य में देश के नारियल का दो तिहाई उत्पादन होता था. हर्ष ने सोचा कि अगर वे केरल में एक कारखाना शुरू करते हैं, तो वे ट्रक की आवाजाही को कम करके पैसे बचा सकते हैं.

शुरू करने का एक अन्य कारण तत्कालीन केरल सरकार द्वारा दिए गए प्रस्ताव भी थे. सब्सिडी वाली जमीन, सस्ती बिजली और ‘खोपरा’ के लिए कम बिक्री कर, सभी प्रदान किए गए थे. इसके अलावा वहां बड़ी संख्या में शिक्षित युवा थे. केरल में प्रतिभाशाली मजदूरों का उपलब्ध होना एक और बड़ा करन था. इसमें कोई आश्चर्य नहीं था कि कंपनी ने केरल में एक कारखाना क्यों शुरू किया. यह 1993 में कंपनी ने कांजीकोड के पलक्कड़ में एक नारियल तेल शोधन इकाई स्थापित की.

अब बात करते हैं नारियल तेल ब्रांड पैराशूट की

हर्ष मारिवाला ने 80 के दशक में बिजनेस में कदम रखा, उस समय तक 100% नारियल तेल टिन के डिब्बे में बेचा जाता था. प्लास्टिक में फायदा देखते हुए मैरिको ने नारियल तेल को टिन की बजाए प्लास्टिक में लाने का फैसला किया. एक तो प्लास्टिक टिन से सस्ता था. दूसरा इसे शेल्फ पर रखना अधिक सुविधाजनक और अधिक आकर्षक था. हालांकि कंपनी ने इस काम को जितना आसान समझा था ये वास्तव में उतना था नहीं. एफएमसीजी के लिए काफी मार्केट रिसर्च की गई.

सफलता के लिए चूहों से भी निपटना पड़ा

रिसर्च के बाद बताया गया कि नारियल तेल के लिए प्लास्टिक सफल नहीं होगा. ये बात कंपनी के लिए एक तगड़े झटके जैसी थी. प्लास्टिक को लेकर ये बात इसलिए कही गई थी क्योंकि मैरिको से लगभग 10 साल पहले कोई अन्य कंपनी नारियल तेल को प्लास्टिक लेकर आई थी. उन्होंने नारियल तेल के डिब्बे का आकार चौकोर रखा था. उन्होंने पैकेजिंग के मामले में अच्छा काम नहीं किया था. नारियल तेल को प्लास्टिक की बोतल में लाने में चूहे सबसे बड़ी परेशानी साबित हो रहे थे.

ये चूहे प्लास्टिक में नारियल के तेल को देख उसे कुतरने लगते थे. उन्हें प्लास्टिक और नारियल तेल का संयोजन पसंद आ रहा था. ऐसे में जिस भी खुदरा दुकान में नारियल तेल जाता उसकी बर्बादी पक्की थी. काफी सोच विचार के बाद कंपनी ने इसका एक हल निकाला और नारियल तेल को चौकोर डिब्बे की जगह गोल आकार की बोतल में तैयार किया. बोतल का आकार गोल होने के कारण चूहे इस पर अपने दांतों की पकड़ आसानी से नहीं बना सकते थे. इसके बाद इसे इस तरह से पैक किया गया कि तेल की एक भी बूंद बाहर न निकले.

टीन से प्लास्टिक का सफर तय करने में लगे 10 साल

बात सिर्फ इतनी ही नहीं थी, बल्कि इसके लिए प्रयोग भी किया गया. कंपनी ने लगभग आठ से दस बोतलें और कुछ चूहे लिए और उन्हें कुछ दिनों के लिए पिंजरे में रख दिया. बाद में जब देखा तो ये चूहे बोतलों को नुकसान नहीं पहुंचा पाए थे. इससे कंपनी का आत्मविश्वास बढ़ा. इसके बाद पिंजरे की तस्वीरें लेकर उन्हें फील्ड फोर्स को यह कहते हुए दिया गया कि ‘ये तस्वीरें व्यापारियों को दिखा कर सांझाएं कि पहले तीन से छह बोतलें रखें और इसका परीक्षण करें.’

कंपनी समय के साथ बाजार में फैली इस धारणा को तोड़ने में कामयाब रही कि नारियल तेल प्लास्टिक में में सुरक्षित नहीं. बाजार में नारियल तेल को टिन की बजाए प्लास्टिक में लाने में मैरिको को लगभग दस साल लग गए. प्लास्टिक की कीमत टिन की कीमत से आधी थी. ऐसे में इस बचत को कंपनी विज्ञापन में लगाने लगी.

इसके अलावा कंपनी के लिए एक अन्य परेशानी थे वे सब जो पैराशूट की 100% नकल कर रहे थे. इससे कंपनी की बिक्री में लगभग 20% की गिरावट आई थी. ये देखते हुए कंपनी ने एक विदेशी मोल्ड निर्माता के साथ मिलकर एक बहुत ही उच्च लागत पर एक निश्चित सांचे को डिजाइन करवाया. नकल करने वाले इसे कॉपी करने में सक्षम नहीं थे.

कैसे पड़ा पैराशूट नाम?

एक नारियल तेल का नाम पैराशूट क्यों रखा जाएगा? दोनों के बीच में कोई तालमेल नहीं बैठता. बहुत से लोगों ने इस बारे में सोचा होगा. तो चलिए आपके इस प्रश्न का जवाब जानते हैं. कुछ एक रिपोर्ट्स की मानें तो पैराशूट के नाम के पीछे की कहानी द्वितीय विश्व युद्ध से जुड़ी है. इस संबंध में ख़ुद कंपनी के संस्थापक हर्ष मारीवाला ने बताया था.

Onmanorama को मारीवाला ने इस संबंध में बताया था कि, “द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भारतीयों ने पहली बार पैराशूट के उपयोग का अनुभव किया था. सेना के जवानों द्वारा पैराशूट की सुरक्षित लैंडिंग तब एक आश्चर्य था. लोगों ने पैराशूट को सुरक्षा और विश्वसनीयता के साथ जोड़ना शुरू कर दिया. हमने भी अपने ब्रांड को यही नाम दिया. क्योंकि हम उपभोक्ताओं की सुरक्षा और गुणवत्ता संबंधी चिंताओं का समाधान करते हैं. विश्वसनीयता हमारी सफलता का रहस्य है.”

मारिवाला ने ये भी बताया था कि, “मेरे सभी अंकल और उनके बहुत सारे दोस्तों ने कहा था कि ब्रांड का नाम बदल दो, लेकिन पता नहीं क्यों, मैंने ब्रांड को यही नाम देने का फैसला किया और मुझे लगता है कि मेरा निर्णय सही था.”

पैक पर क्यों नहीं लिखा होता हेयर ऑयल?

पैराशूट को लेकर एक और बात है जो हमेशा चर्चा में रहती है. जिस पैराशूट नारियल तेल को हम बालों में लगाते हैं उसकी बोतल पर हेयर ऑयल नहीं लिखा होता. पैराशूट कोकोनट ऑयल के 10 ग्राम के पाउच से लेकर 1 लीटर के कंटेनर तक किसी पर भी हेयर ऑयल नहीं लिखा होता. उस पर पैराशूट ब्रांड के लोगो के साथ 100% pure coconut oil लिखा होता है. जिस पैराशूट ऑयल का सर्दी के मौसम में भारत के करीब 50 करोड़ मिडिल एवं लोअर क्लास के लोग इस्तेमाल करते हैं वो मॉइस्चराइजर ऑयल के रूप में उपयोग होता है.

कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार कंपनी पैकेट पर हेयर ऑयल प्रिंट कर देगी तो उसकी कीमत पर 8% एक्साइज ड्यूटी बढ़ जाएगी. पैराशूट कंपनी कोकोनट ऑयल की शुद्धता पर फोकस करती है इसलिए 100% शुद्ध लिखती है. कंपनी इसका खाद्य तेल के रूप में उत्पादन करती है. पैराशूट कंपनी के पास FSSAI का लाइसेंस भी है. क्योंकि भारत में खाद्य तेल टैक्स फ्री हैं.

हालांकि कंपनी आयुर्वैदिक हेयर ऑयल के नाम से भी प्रोडक्ट सप्लाई करती है, ताकि कोई कंपनी पर बेईमानी का आरोप न लगा पाए परंतु बहुत कम लोग कोकोनट आयुर्वैदिक हेयर ऑयल की खरीदारी करते हैं. ज्यादातर लोग 100% प्योर कोकोनट आयल की ही खरीदारी करते हैं.

बता दें कि मैरिको कंपनी की ऑफ़िशियल वेबसाइट के अनुसार, वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान, Marico कंपनी ने क़रीब 95 बिलियन (1.3 बिलियन डॉलर) का कारोबार किया था. वहीं, इसका बिजनेस भारत के अलावा, इजिप्ट, दक्षिण अफ़्रिका, मिडिल ईस्ट, वियतनाम, बांग्लादेश व मलेशिया जैसे देशों में फैला हुआ है.