लगभग हर इंसान पहले अपने लिए और फिर अपने परिवार के लिए कमाता है. हम से अधिकतर लोगों का जीवन इसी तरह से चलता है. यही जीवन का चक्र है लेकिन कुछ विरले लोग होते हैं जो इस चक्र को तोड़ कर अपने या अपनों के लिए नहीं जीते बल्कि वो अपना जीवन मानवता की रक्षा में समर्पित कर देते हैं.
Indiatimes हिंदी इंसानियत की सच्ची कहानियों में आज आपके लिए ऐसी ही एक महिला की कहानी लेकर आया है जो खुद अभावों में पली-बढ़ी लेकिन इसके बावजूद लगभग 2000 बच्चों की मां बनकर उनके जीवन को नर्क होने से बचा लिया.
कौन थीं क्लारा हेल?
ये कहानी है क्लारा हेल (Clara Hale) की, जो अपने तीन बच्चों को पालने के लिए कुछ ऐसा कर गई जिसने उसे अन्य अनाथ बच्चों का सहारा बनने की प्रेरणा दी. ये ऐसे बच्चे थे जिन्हें अच्छे पालन-पोषण की आवश्यकता थी. उन्होंने हेल हाउस की स्थापना की, ये ऐसी संस्था है जो नशे की लत वाले बच्चों के लिए शुरुआती सुविधाएं उपलब्ध करवाती है. क्लारा ने 2,000 से अधिक नशीली दवाओं के आदी शिशुओं और छोटे बच्चों की मदद की. ये वो बच्चे थे जो नशीली दवाओं के आदी थे, एचआईवी पीड़ित थे और इनमें से बहुत से बच्चों के माता-पिता एड्स के कारण मर गए थे. उनका कहना था कि, “ऐसे बच्चों को पालना आसान है, हमें बस उन्हें खोजना है, उन्हें गले लगाना है, प्यार देना है और उन्हें बताना है कि वे कितने महान हैं.”
पहले पिता फिर मां दोनों को खोया
1 अप्रैल, 1905 को उत्तरी कैरोलिना के एलिजाबेथ शहर में जन्मी क्लारा का शुरुआती नाम क्लारा मैकब्राइड था. उनका पालन-पोषण फिलाडेल्फिया, पेंसिल्वेनिया में हुआ. क्लारा, जिसने सैकड़ों अनाथ और नशे में लिप्त बच्चों को नया जीवन दिया, उनका खुद का बचपन बेहद संघर्ष पूर्ण रहा. क्लारा ने अपने पैरों पर चलना भी शुरू नहीं किया था कि इतनी छोटी में पिता का साया उनके सिर से उठ गया. किसी ने उनकी हत्या कर दी थी. जब तक क्लारा 16 साल की हुई तब तक उनकी मां ने दूसरों के घरों में काम कर उनका पालन पोषण किया लेकिन क्लारा के नसीब में मां का साथ भी ज्यादा समय तक ना रहा. जब वो सोलह साल की थीं तब उनकी मां का निधन हो गया.
थॉमस हेल से हुई शादी
16 की उम्र में ये लड़की पूरी तरह अनाथ हो चुकी थी. एक खासियत जो क्लारा में हमेशा से रही वो ये थी कि उसने कभी हार मानना नहीं सीखा था. एक अश्वेत जवान अनाथ लड़की का भविष्य उन दिनों कटी पतंग की तरह था, जो क्लारा को किसी भी गलत दिशा में ले जा सकता था. लेकिन उसने अपनी ज़िंदगी का कंट्रोल अपने हाथ में रखा. हाई स्कूल तक पढ़ाई की, फिर खुद को संभालने के लिए लोगों के घरों में काम तक किया. कुछ सालों तक ज़िंदगी ऐसे ही चलती रही. फिर क्लारा की मुलाकात थॉमस हेल से हुई. उसे फर्श पॉलिश करने वाला थॉमस पसंद आया और फिर दोनों ने शादी कर ली. वे न्यूयॉर्क के हार्लेम में आ कर बस गए.
पति को भी खो दिया
वहां क्लारा के पति कहने को एक बिजनेस चलाते और इसके साथ साथ कॉलेज भी जाते लेकिन उनकी कमाई से घर का गुजारा नहीं चल पाता था. जिस वजह से क्लारा एक थियेटर में सफाईकर्मी की नौकरी करने लगी. क्लारा को ज्यादा समय तक पति का साथ भी ना मिल पाया. 1932 में थॉमस की कैंसर के कारण जान चली गई.
बच्चों की परवरिश के लिए की मेहनत
पति की मौत के बाद 27 साल की क्लारा पर उसके तीन बच्चों को पालने की जिम्मेदारी आ गई. इसके लिए पैसों की जरूरत थी और ये जरूरत थियेटर की नौकरी से पूरी नहीं हो पा रही थी. इसके लिए उन्होंने दिन में लोगों के घरों में और रात में थियेटर में काम करना शुरू किया. इन दोनों कामों से वो अब इतना कमा पा रही थी कि अपने बच्चों को पाल सके. लेकिन अब परेशानी ये थी कि ओवरटाइम के कारण उसके बच्चे घर पर अकेले रहते थे. ये बात क्लारा को मानसिक रूप से परेशान करती थी.
अनाथ बच्चों को देने लगीं पनाह
इस परेशानी से निकलने का क्लारा ने एक हाल खोजा. यदि वो अनाथ बच्चों की परवरिश के लिए सरकारी लाइसेंस हासिल कर लेती तो उसे पैसा भी मिलते और वह अपने बच्चों के साथ भी रह सकती थी. उसकी ये सोच सच में उस समय बदली जब 1940 में सरकार ने उसे लाइसेंस दे दिया. हर अनाथ बच्चे की परवरिश के लिए उसे हर हफ्ते दो डॉलर मिलने लगे. अपने बच्चों को पलने से आए इस ख्याल ने कई अनाथ बच्चों की ज़िंदगी बदल दी. अगले 29 सालों के दौरान क्लारा ने चालीस अनाथ बच्चों को एक मां की तरह पाला.
बेसहारा बच्चों को मां बनकर पाला
अपने इस मानव धर्म को निभाती हुई वो चौंसठ साल की हो गई थीं. उनके अपने बच्चे भी कमा-खा रहे थे. उन्होंने सोच लिया था कि अब वो रिटायर हो जाएंगी. लेकिन अभी उनकी कर्म बाकी थी. 1969 क्लारा की डाक्टर बेटी लोरेन को एक नशे की लत से पीड़ित महिला मिली, जो गोद में दो महीने का बच्चा लिए भटक रही थी. उनकी बेहद खराब हालत को देखते हुए लोरेन ने उन्हें अपनी मां क्लारा के पास भेज दिया. क्लारा ने दोनों को अपने घर में पनाह दी और उनकी देखभाल करने लगी.
अगले 6 महीने के अंदर क्लारा के पांच कमरों वाले अपार्टमेन्ट में कुल बाईस ऐसे बच्चे पल रहे थे जिनके माता-पिता नशे की लत का शिकार हो चुके थे. इन बच्चों को पलने के लिए क्लारा को बड़ी आर्थिक मदद की जरूरत थी. उसके बच्चों ने डेढ़ साल तक उनकी हर संभव मदद की. कहते हैं सच्चाई का रास्ता बहुत कठिन होता है. क्लारा के लिए भी ये इंसानियत के नियमों पर चलने वाली राह तब मुश्किल हो गई जब बड़े अधिकारियों को उनका काम पसंद नहीं आया. उन्होंने क्लारा के उस अपार्टमेन्ट पर ताला लगाने के आदेश दे दिए जहां वो बेसहारा बच्चों के साथ रहती थीं.
अमेरिका के लोगों ने दिया साथ
सच्चाई का रास्ता भले ही मुश्किल हो लेकिन इस रास्ते पर चलने वालों के लिए मदद की कमी नहीं रहती. क्लारा उस समय तक अपने काम के लिए अमेरिका के लोगों के बीच जानी जाने लागि थी. लोग जानते थे कि क्लारा इन अनाथ बच्चों की परवरिश उनकी सगी मां की तरह की है. यही वजह है कि सरकारी अधिकारियों के आदेश के बावजूद क्लारा को मदद मिलनी बंद नहीं हुई. क्लारा को देश भर से लोगों की आर्थिक सहायता मिलने लगी. जॉन लेनन दस हज़ार डॉलर की मदद लेकर खुद क्लारा के पास पहुंचे थे. इस तरह क्लारा की मुहिम चलती रही. उन्होंने उन बच्चों को एक मां का प्यार दिया जो समाज के लिए किसी कचरे से ज्यादा कुछ नहीं थे.
2000 बच्चों की मां थीं मदर हेल
क्लारा 87 साल की उम्र तक जिंदा रहीं और उन्होंने इस दौरान दुनिया के अलग-अलग जाति-रंग-धर्मों के 2000 से अधिक बच्चों को उनकी मां बन कर पाला. तभी तो उन्हें आज भी मदर हेल के नाम से पुकारा जाता है. अनाथ और बेसहारा बच्चों को मां का प्यार देने वाली क्लारा 18 दिसंबर 1992 को इस दुनिया को अलविदा कह गईं.