मिजोरम में जोरम पीपल्स मूवमेंट (ZPM) ने 40 सदस्यीय सदन में 27 सीट जीतकर बड़ा उलट फेर कर दिया है. ZPM ने 2018 के विधानसभा चुनाव में 26 सीटें जीतने वाली मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) को सत्ता से हटा कर खुद सत्ता हासिल कर ली. एमएनएफ ने विधानसभा चुनाव में 10 सीटों पर जीत हासिल की. वहीं भाजपा को दो और कांग्रेस को एक सीट पर जीत मिली. जीत के बाद जेडपीएम के लिए मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार प्रबल दावेदार लालदुहोमा (Lalduhoma) को माना जा रहा है.
लालदुहोमा ने कर दिखाया मिजोरम में बड़ा उलट फेर
लालदुहोमा ने सेरछिप सीट पर मिजो नेशनल फ्रंट (MNF) के जे. माल्सावमजुआला वानचावंग को 2,982 मतों से हराया. मिजोरम के इतिहास में यह पहली बार होने जा रहा है कि 1987 में इसके गठन के बाद से पूर्वोत्तर राज्य पर गैर-कांग्रेस तथा गैर-एमएनएफ सरकार का शासन होगा. इस जीत के बाद लालदुहोमा का मुख्यमंत्री बनना तय माना जा रहा है. अब हर कोई यी जानने के लिए उत्सुक है कि मिजोरम में इतना बड़ा उलटफेर करने वाले लालदुहोमा कौन हैं? तो चलिए जानते हैं आईपीएस अधिकारी से राजनेता बने लालदुहोमा के बारे में.
कौन हैं लालदुहोमा?
1977 बैच के 74 साल के पूर्व आईपीएस अधिकारी लालदुहोमा राज्य में मुख्यमंत्री की दौड़ में सबसे आगे निकल चुके हैं. वह अपने राज्य मिजोरम में एक जाना-पहचाना नाम बन चुके हैं. इस चुनाव से पहले मिजोरम के बाहर उनका नाम दल-बदल विरोधी कानून के तहत अयोग्य ठहराए जाने वाले देश के पहले सांसद और फिर विधायक के रूप जाना जाता रहा है लेकिन अब ईसाई-बहुल उत्तर-पूर्वी राज्य की राजनीति में सबसे बड़ी उथल-पुथल पैदा करने वाले लालदुहोमा को पूरा देश इस राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में जानेगा.
एक सख्त IPS के रूप में जाने गए
लालदुहोमा का जन्म म्यांमार की सीमा से लगे चंफाई जिले के तुआलपुई गांव में हुआ था. एक गरीब परिवार में जन्में लालदुहोमा ने शिक्षा को साधन मान अपने भविष्य को उज्ज्वल करने का फैसला किया और वह इसमें कामयाब भी रहे. उन्होंने पढ़ाई में बेहतर प्रदर्शन किया, जिससे तत्कालीन केंद्र शासित प्रदेश के पहले सीएम सी चुंगा का ध्यान उनकी ओर आकर्षित हुआ. जिन्होंने उन्हें 1972 में अपने कार्यालय में प्रधान सहायक के रूप में नौकरी दी. लालदुहोमा ने इसके साथ गौहाटी विश्वविद्यालय में एक शाम के पाठ्यक्रम के लिए दाखिला लिया. ग्रेजुएट की उपाधि हासिल की और पांच साल बाद सिविल सेवा परीक्षा पास की. उन्होंने एक आईपीएस अधिकारी के रूप में गोवा में फैले ड्रग माफिया पर करारे प्रहार किए.
इंदिरा गांधी की सिक्योरिटी का हिस्सा रहे
उनके काम में इतनी मजबूती थी कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाईं. उन्होंने 1982 में उनका ट्रांसफर नई दिल्ली कर दिया. बाद में उन्हें इंदिरा गांधी की सिक्योरिटी का हिस्सा बनने का मौका भी मिला. इंदिरा गांधी के कहने पर लालदुहोमा ने विद्रोही नेता लालडेंगा के मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) को बातचीत की मेज पर लाने में मदद की. 1984 में उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी, कांग्रेस में शामिल हो गए और मिजोरम से सांसद चुने गए. चार साल बाद उन्होंने पार्टी से इस्तीफा दे दिया.