“जब इरादा बना लिया हो ऊंची उड़ान का, फिर देखना फिजूल है कद आसमान का”. ये पक्तियां बिहार के मनोज कुमार राय पर बिलकुल फिट बैठती हैं. जिन्होंने पढ़ाई की फीस अंडे बेचकर भरी, कई बार असफल रहे. गरीबी बीच में रोड़े बनी, लेकिन हिम्मत नहीं हारी. फिर UPSC की परीक्षा पास की. जो उनकी मेहनत का फल है.
नौकरी नहीं मिली, तो दिल्ली में लगाया अंडे का ठेला
मनोज का जन्म बिहार के सुपौल में एक गरीब परिवार में हुआ. वो बचपन से ही पढ़ाई में अच्छे थे. लेकिन उस समय सरकारी स्कूल के हालात बदतर थे. अध्यापकों का अभाव था. बच्चे फटी पुरानी किताबों से पढ़ाई करते थे. ऐसे में बच्चों के लिए आगे बढ़ना बहुत ही चुनौतीपूर्ण था. मनोज के लिए भी आसान नहीं था. फिर उस समय माता-पिता इस बात पर ज्यादा जोर देते थे कि पढ़ाई से ज्यादा पैसा कमाना अधिक जरूरी है.
उसी पर फोकस करने को कहा जाता था. मनोज अपनी शुरूआती शिक्षा पूरी करने के बाद नौकरी की तलाश में दिल्ली चले गए. उस समय मनोज का आगे की पढ़ाई करने के बारे में कोई विचार नहीं था. वे नौकरी कर अपने परिवार के खर्च में हाथ बटाना चाहते थे. घर वालों को भी उम्मीद थी कि मनोज घर चलाने में मदद करेंगे.
साल 1996 में मनोज दिल्ली आ गए. गांव के एक साधारण परिवार के लड़के के लिए बड़े शहर के हिसाब से रहना बहुत ही चैलेंजिंग था. नौकरी की तलाश में दिन बीतते गए. मनोज को कोई नौकरी नहीं मिली. इसके बावजूद उन्होंने हिम्मत बनाए रखी. मनोज दिल्ली में ही रहने का फैसला किया. इस उम्मीद में कि धीरे-धीरे चीजें बेहतर हो जाएंगी. फिर उन्होंने सब्जी और अंडे की दुकान लगाने का फैसला किया. जिससे उनकी रोजी रोटी चलती रही.
मिला दोस्त का साथ और बदल गई मनोज की ज़िंदगी
आगे मनोज जेएनयू में राशन सामग्री पहुंचाने का काम भी करने लगे. वहीं उनके जीवन में एक ऐसे व्यक्ति से मुलाकात हुई. जिसने उन्हें दोबारा पढ़ाई करने के लिए प्रेरित किया. उस छात्र का नाम उदय कुमार था. मनोज इस बारे में बात करते हुए अपने एक इंटरव्यू में बताते हैं कि “उदय और हम बिहार के सुपौल के ही रहने वाले थे. हम दोनों में गहरी दोस्ती हो गई. उन्होंने मुझे पढ़ाई पूरी करने की सलाह दी. मुझे भी लगा कि पढ़ाई पूरी करने के बाद एक अच्छी नौकरी मिल जाएगी.”
इसके बाद मनोज कुमार ने श्री अरबिंदो कॉलेज में एडमिशन ले लिया. वो शाम की क्लास करते थे. उन्होंने अंडे और सब्जियां बेचकर अपनी फीस भरी. और साल 2000 में ग्रेजुएट हुए. स्नातक की डिग्री लेने के बाद उनके दोस्त उदय ने उन्हें UPSC की परीक्षा देने की सलाह दी. आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण पहले वे पीछे हटे. फिर कुछ दिन विचार करने के बाद मनोज ने यूपीएससी की परीक्षा की तैयारी करने का फैसला किया.
मनोज के इस फैसले में उनके एक अन्य दोस्त ने मदद की. उसने 2001 में पटना युनिवर्सिटी के भूगोल विभाग के PHD प्रोफ़ेसर राम बिहारी प्रसाद से मनोज की मुलाकात कराई. जो उस वक़्त दिल्ली आए हुए थे. प्रोफ़ेसर से प्रेरित होकर उनके सुझाव पर वे पटना चले गए. मनोज ने UPSC में ऑप्शनल विषय अपना भूगोल ही रखा. मनोज रास बिहारी के मार्गदर्शन में तैयारी करने लगे.
साल 2005 में मनोज पहली बार यूपीएसी की परीक्षा में बैठे. लेकिन असफल रहे. इसके बाद मनोज दिल्ली वापस आ गए. मनोज ने उम्मीदें नहीं छोड़ीं. वे तैयारी करते रहे. मनोज हिंदी मीडियम के छात्र रहे. उन्होंने परीक्षा में हिंदी में उत्तर लिखने का विकल्प चुना. लेकिन हिंदी में ज्यादा कंटेंट तैयारी के लिए मौजूद नहीं थे. जो मनोज के लिए काफी चुनौतीपूर्ण था.
कई बार असफलता हाथ लगी, मगर हारे नहीं मनोज
गौरतलब है कि अपनी पसंद की भाषा में उत्तर लिखने वाले अभ्यर्थियों को भाषा के दो विषयों की परीक्षा भी देनी होती है. जिनमें एक विषय अंग्रेजी था. मनोज की अंग्रेजी बहुत कमज़ोर थी. मनोज बताते हैं ”UPSC में अंग्रेजी और क्षेत्रीय भाषा की परीक्षा क्लियर करना अनिवार्य था. जो अभ्यर्थी इसे क्लियर नहीं कर पाता था. उसके सामान्य अध्ययन और वैकल्पिक सब्जेक्ट की कॉपियों का मूल्यांकन नहीं होता था. मैं अंग्रेजी के पेपर में फेल हो गया और मेरा एक साल बर्बाद हो गया.”
ऐसी स्थिति में मनोज अंग्रेजी पर ज्यादा फोकस करने लगे, लेकिन मेंस और इंटरव्यू क्लियर नहीं कर पाए थे. एक के बाद एक तीन कोशिशें नाकाम हो गईं. लेकिन मनोज ने UPSC क्लियर करने की ठान रखी थी.
चौथे अटेम्प्ट तक मनोज की उम्र 30 साल की हो चुकी थी. 33 साल के बाद वे परीक्षा में नहीं बैठ सकते थे. इस बार उन्होंने अपनी तैयारी करने के तरीके को बदल डाला. मनोज ने प्रीलिम्स की तैयारी न करके पहले मेंस का स्लेबस कवर किया. इससे उन्हें फायदा हुआ. उस दौरान उनके प्रीलिम्स के 80 प्रतिशत स्लेबस की भी तैयारी पूरी हो गई. इसके साथ ही मनोज ने कक्षा 6 से 12 तक की NCRT की किताबें पढ़ डालीं, जिससे उनका सामान्य अध्ययन मजबूत हो गया.
अंग्रेजी के अखबार व पत्रिकाएं पढने से करेंट अफेयर्स की अच्छी जानकारी हो गई. इस तरह अग्रेज़ी भी बेहतर हो गई. वह नियमित रूप से उत्तर लेखन का भी अभ्यास करते रहे. मनोज ने तैयारी करने की रणनीति बदली तो उनकी किस्मत बदल गई. उन्होंने साल 2010 में यूपीएससी की परीक्षा क्लियर कर दी. मनोज की पहली पोस्टिंग बिहार के नालंदा जिले के राजगीर आर्डनेंस फैक्ट्री में एक प्रशासनिक अधिकारी के रूप में हुई थी.
वे गरीबी से निकलकर यहां तक पहुंचे थे. जिसका उन्हें एहसास था. वे गरीब बच्चों को मुफ्त में सिविल सर्विसेज की कोचिंग देने का फैसला किया. हफ्ते के अंत में मनोज नालंदा से सैकड़ों किमी का सफ़र तय कर पटना पढ़ाने आते थे. बाद में काम में व्यस्त होने कारण पढ़ाने का कार्य बंद करना पड़ा था. मनोज की पत्नी जो पटना में डिप्टी कलेक्टर थीं. उन्होंने भी उनका इस काम में बहुत साथ दिया.
मनोज के द्वारा पढ़ाए गए कई बच्चे आज देश के अलग-अलग जगहों पर सिविल सस्थानों में कार्यरत हैं. मनोज ने न सिर्फ अपना सपना पूरा किया बल्कि दूसरों के सपनों को पूरा करने में मदद कर रहे हैं. जो दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत हैं.