इस साल सावन की शुरुआत मंगला गौरी व्रत के साथ हो रही है। इस व्रत को महिलाएं अच्छे वैवाहिक जीवन और अखंड़ सौभाग्य की प्राप्ति की कामना करके रखती हैं। सावन का पहला मंगला गौरी व्रत 4 जुलाई को रखा जाएगा। आइए जानते हैं मंगला गौरी व्रत की कथा और पूजा विधि।
मंगला गौरी व्रत पूजा विधि
व्रत रखने वाली महिलाओं को सावन मास के पहले मंगलवार से संकल्प लेकर व्रत प्रारंभ करना चाहिए। सावन मास में सुबह स्नान आदि करने के बाद मंदिर में एक लकड़ी की चौकी रखें और उसपर माता पार्वती की मूर्ति स्थापित करें। थाली में लाल कपड़े पर चावल से नौ ग्रह बनाकर रखें। गेहूं से सोलह देवियां बनाएं। थाली के एक तरफ चावल और दूसरे तरफ एक कलश फूल रखकर स्थापित करें। इस कलश में थोड़ा पानी जरूर रखें। इसके बाद माता पार्वती को श्रृंगार का सामान चढ़ाएं और उन्हें मेवें, नारियल, लौंग, सुपारी, इलायची और मिठाई अर्पित करें। अंत में माता पार्वती का आरती उतारें और व्रत कथा का पाठ भी जरूर करें।
मंगला गौरी व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक नगर में धर्मपाल नाम का एक व्यापारी रहता था। उसकी पत्नी बहुत खूबसूरत थी और उसके पास धन संपत्ति की भी कोई कमी नहीं थी। लेकिन, संतान न होने के कारण वह बहुत दुखी रहता था। लेकिन, भगवान की कृपा के बाद उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई। लेकिन, उसकी अल्पायु थी। 16 वर्ष की आयु के बाद सर्प के काटने की उसकी मृत्यु हो जाएगी। संयोग से 16 वर्ष का पूरा होने से पहले ही उसकी शादी हो गई। जिस कन्या से उसका विवाह हुआ था। उस कन्या की माता मंगला गौरी व्रत किया करती थी। मां गौरी के व्रत के कारण उस महिला की कन्या को आशीर्वाद प्राप्त हुआ था कि वह कभी भी विधवा नहीं होगी। मान्यता है कि अपनी माता के इस आशीर्वाद से उसे अखंड सौभाग्य की प्राप्ति हुई और धर्मपाल के बेटे को 100 वर्ष की आयु प्राप्त हुई। इसलिए सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए मंगला गौरी व्रत करती हैं।