पीएम मोदी पर मालदीव के मंत्रियों के बयान पर वहां के लोग क्या सोचते हैं?
मालदीव की राजधानी माले की संकरी सड़कों के किनारे रेस्टोरेंटों में बैठे लोगों के बीच इसी बात की चर्चा हो रही है कि कैसे भारत के साथ विवाद हाथ से निकलता दिख रहा है और नई दिल्ली की इसे लेकर क्या प्रतिक्रिया होगी.
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर मालदीव के तीन जूनियर मंत्रियों के अपमानजनक बयान ने टूरिज़्म पैराडाइज़ की मुश्किलें खड़ी कर दी हैं. मालदीव भारतीय पर्यटकों का बायकॉट झेल रहा है. पर्यटन देश की आय का सबसे मज़बूत ज़रिया है.
पिछले साल मालदीव जाने वाले कुल पर्यटकों का सबसे बड़ा समूह भारतीय था. देश की अर्थव्यवस्था में पर्यटन का योगदान लगभग एक तिहाई है.
बीते साल के मालदीव सरकार के आंकड़े कहते हैं कि टूरिस्टों के मामले में भारत सबसे आगे है. देश की अर्थव्यवस्था का एक तिहाई हिस्सा पर्यटन से आता है.
मालदीव के मंत्रियों ने पीएम मोदी को ‘जोकर, आतंकवादी’ और ‘इसराइल की कठपुतली’ कहा जिसके बाद ये विवाद बढ़ा और अभी मालदीव सरकार ने तीनों मंत्रियों को निलंबित कर दिया है.
मालदीव के मंत्रियों के इस बयान से सोशल मीडिया पर भारतीयों का गुस्सा फूट पड़ा और आम से लेकर सेलिब्रिटी सभी ने मालदीव को बायकॉट करने की मुहिम शुरू कर दी.
हालांकि विवाद बढ़ा तो मंत्रियों ने अपनी विवादित पोस्ट डिलीट की और देश के विदेश मंत्रालय को एक बयान जारी कर कहना पड़ा कि ये मंत्रियों के व्यक्तिगत विचार हैं और ये सरकार की सोच को नहीं दर्शाते.
मालदीव में लगभग 1,200 कोरल द्वीप और एटोल हैं. भारत की 140 करोड़ की तुलना में वहां की जनसंख्या लगभग 5 लाख 20 हज़ार है.
मालदीव एक छोटा सा देश है, वो अपने अधिकांश ज़रूरतों, बुनियादी ढांचे के निर्माण और तकनीकी प्रगति के लिए अपने पड़ोसी भारत पर अब तक निर्भर करता रहा है.
माले के लोगों की राय क्या है?
माले के लोग कहते हैं कि उन्हें लगता है कि ये ताज़ा विवाद भारत के साथ उनके रिश्ते बिगाड़ सकता है.
मालदीव नेशनल यूनिवर्सिटी की छात्रा मरियम ईम शफ़ीग ने बीबीसी से कहा, “हम (भारत से) बायकॉट के आह्वान से निराश हैं, लेकिन उससे ज़्यादा हम अपनी सरकार से निराश हैं. हमारे अधिकारियों की ओर से अच्छे फैसले लेने की कमी साफ़ नज़र आती है.”
कई लोगों का यहां कहना है कि मालदीव के भारत के साथ मज़बूत सांस्कृतिक संबंध भी हैं क्योंकि वहां के लोग बॉलीवुड फिल्में और नाटक खूब देखते हैं.
मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी की समर्थक शफ़ीग कहती हैं, “हम खाने, शिक्षा और स्वास्थ्य ज़रूरतों के लिए भी भारत पर निर्भर हैं.”
मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी की नीति “इंडिया फर्स्ट” की रही है और इब्राहिम मोहम्मद सोलिह की सरकार का झुकाव भारत की ओर रहा है.
दरअसल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लक्षद्वीव में पर्यटन को बढ़ावा देने वाली एक पोस्ट शेयर की थी जिसे लेकर मालदीव के तीन मंत्रियों ने अपमानजनक टिप्पणी की थी.
इसके बाद कई लोगों ने एक्स पर लिखना शुरू कर दिया कि वो अपनी मालदीव की ट्रिप रद्द कर रहे हैं.
सोशल मीडिया पर ‘बायकॉट मालदीव’
इसके बाद ही, भारतीय टिकट-बुकिंग साइट EaseMyTrip के सीईओ ने घोषणा की कि उनकी कंपनी ने मालदीव के लिए सभी उड़ान बुकिंग रद्द कर दी है.
ट्रैवल एजेंट और टूर ऑपरेटरों के मालदीव एसोसिएशन के अध्यक्ष अब्दुल्ला गियास ने कहा है कि रिसॉर्ट्स और होटलों में बहुत अधिक बुकिंग कैंसल नहीं हुई है.
उन्होंने कहा, “लेकिन हमें नई बुकिंग में कमी दिख रही है.”
यह पूरा विवाद ऐसे समय पर खड़ा हुआ है जब मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज़्ज़ू बीजिंग की राजकीय यात्रा पर थे.
नए राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू जो चीन की ओर झुकाव रखते हैं उन्होंने चीन की यात्रा के दौरान कहा कि वह मालदीव में अधिक से अधिक टूरिस्ट भेजे.
कोविड-19 से पहले चीन के आने वाले पर्यटक मालदीव की लिस्ट में सबसे आगे थे. लेकिन अब हालात ऐसे नहीं हैं.
टूर ऑपरेटर कहते हैं कि चीन से होने वाली बुकिंग अब कम हुई हैं.
मुइज़्ज़ू ने अपनी चीन यात्रा के दौरान कहा, “कोविड से पहले चीन हमारा नंबर एक बाज़ार था और मेरा अनुरोध है कि चीन इस स्थिति को फिर से हासिल करने के लिए प्रयास तेज़ करे.”
लेकिन मालदीव के कई लोग मुइज़्ज़ू की आलोचना कर रहे हैं और उका कहना है कि उनकी सरकार ने तीन मंत्रियों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई नहीं की.
विपक्षी पार्टी से जुड़े वकील ऐक अहमद ईसा ने बीबीसी से कहा- “मंत्रियों को सीधे बर्खास्त कर देना चाहिए था. हम भारत की प्रतिक्रिया को लेकर चिंतित हैं क्योंकि हम अपने अधिकतर खाद्य पदार्थों के लिए अपने पड़ोसी पर निर्भर हैं.”
ये मालदीव में रहने वाले भारतीयों को मुश्किल में डालेगा?
देश के सबसे बड़े व्यापारिक संगठनों में से एक, कन्फेडरेशन ऑफ़ ऑल इंडिया ट्रेडर्स ने अपने सदस्यों से मालदीव के साथ तब तक कारोबार बंद करने को कहा है, जब तक वहां के मंत्री माफ़ी नहीं मांग लेते.
हालाँकि, कई लोग बताते हैं कि बहिष्कार का आह्वान मालदीव में रहने वाले भारतीयों को भी प्रभावित कर सकता है. अनुमान है कि लगभग 33,000 भारतीय इंफ्रास्ट्रक्चर, हॉस्पिटैलिटी और रिटेल सेक्टर में काम करते हैं.
गियास ने कहा, “मालदीव के पर्यटन क्षेत्र में बड़ी संख्या में भारतीय भी काम कर रहे हैं, जिनमें से कई मैनेजर और फ्रंट ऑफिस स्टाफ़ के रूप में हैं.”
पिछले साल नवंबर में सत्ता में आने के बाद मुइज़्जू ने मालदीव में 77 भारतीय सैनिकों की एक टुकड़ी को देश छोड़ने के लिए कहा था. उनके चुनावी कैंपेन का एक वादा ये भी था कि सत्ता में आने के बाद वो मालदीव से भारतीय सेना को बाहर निकालेंगे.
भारत का कहना है कि उसके सैनिक मैरीटाइम की सुरक्षा और निगरानी के लिए मालदीव को दिए गए अपने तीन विमानों के रखरखाव के लिए मालदीव में रह रहे हैं.
‘कोई बड़ी कार्रवाई भारत के ख़िलाफ़ जा सकती है’
मालदीव में लंबे समय से भारत का प्रभाव रहा है और विश्लेषकों का कहना है कि मुइज़्ज़ू इसे बदलना चाहते हैं. उनका चुनावी कैंपेन था- ‘इंडिया आउट’
मालदीव के राजनीतिक विश्लेषक अज़ीम ज़हीर कहते हैं, “मुइज़्ज़ू की बयानबाजी ने उनके वोटरों के बीच भारत विरोधी भावना को मज़बूत किया. शायद इसीलिए उनके जूनियर मंत्रियों को भारतीय प्रधानमंत्री के ख़िलाफ़ खुलेआम ऐसे विवादास्पद बयान देने का बल मिला.”
हालाँकि मालदीव में कई लोग कहते हैं कि वे भारत और पीएम मोदी पर “अपमानजनक” टिप्पणियों को अस्वीकार करते हैं, लेकिन एक तर्क यह भी है कि अगर भारत कोई राजनयिक कार्रवाई करता है तो उसका असर उल्टा भी हो सकता है.
ज़हीर कहते हैं, “ऐसा करना मुइज़्ज़ू को चीन की ओर और भी ज़्यादा धकेल सकता है.”
पूर्व वरिष्ठ भारतीय राजनयिक, निरुपमा मेनन राव ने कहती हैं कि सोशल मीडिया पर आर्थिक बहिष्कार के आह्वान के बीच भारत को मालदीव को आश्वस्त करने के लिए क़दम उठाना चाहिए था.
उन्होंने एक्स पर लिखा, “महत्वपूर्ण, सुरक्षा और रणनीतिक हितों को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार के प्रवक्ताओं को आगे आना चाहिए और बयान देते हुए मालदीव को आर्थिक बायकॉट के कॉल के बीच आश्वस्त करना चाहिए.”