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एक समय देश कृषि प्रधान था. खेती करने वाले भी लाखों कमाते थे. धीरे-धीरे खेती में आमदनी घटी और किसानों के बच्चे प्रोफेशनल कोर्स करके बड़े शहरों में नौकरी करने चले गए. लेकिन, अब चीजें फिर से बहुत थोड़ी ही लेकिन बदल रही है. उसी बदलाव के एक उदाहरण अरविंद साय हैं.
छत्तीसगढ़ के जशपुर जिले के दुलदुला विकासखंड के एक छोटे से गांव सिरिमकेला के रहने वाले अरविंद ने एमबीए की पढ़ाई की. इसके बाद वह पुणे की एक मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब करने लगे. जॉब में उनका मन नहीं लगा. ऐसे में वह लाखों का पैकेज छोड़कर गांव लौट आए.
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गांव पर उन्होंने पिता को पारंपरिक खेती करते देखा. उन्हें लगा कि खेती में कुछ तकनीकी का इस्तेमाल कर दिया जाए तो अच्छी कमाई हो सकती है. ऐसे में अरविंद ने खेती-किसानी शुरू कर दी. हालांकि, इसके लिए उन्होंने तकनीकी और वैज्ञानिक पद्धति का ख्याल रखा.
दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक़, अरविंद मक्के और अरहर की खेती करने लगे. इससे उनकी आमदनी भी बढ़ने लगी. करीब तीन साल में ही अरविंद ने डेढ़ करोड़ रुपये की कमाई की. इतना ही नहीं वह अब गांव में ही करीब 20 लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं.
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वह अपने इलाके के लोगों को मक्के और अरहर की खेती के लिए जागरुक भी कर रहे हैं. वह लोगों को बता रहे हैं कि किस तरह से खेती करके लाखों कमाया जा सकता है. हर साल वह ज्यादा खेती में काम कर रहे हैं. उन्हें उम्मीद है कि गांव के दूसरे लोगों का भी उन्हें साथ मिलेगा और सबके घर खुशहाली आएगी.