कहते हैं आज के आधुनिक दौर में पैसा हर तरफ बिखरा पड़ा है, बस चाहिए तो इसे पहचानने वाली नजर. आप ही देख लीजिए, लोग हवा, पानी यहां तक की मिट्टी बेच कर भी पैसा कमा रहे हैं. आज हम जिस इंसान की कहानी आपको बताने जा रहे हैं उन्होंने भी अपने अलग नजरिए से पानी के दम पर अपना करोड़ों का साम्राज्य खड़ा किया.
सरकारी कंपनी में थे ऑफिसर
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ये कहानी है IIT कानपुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई के बाद सरकारी कंपनी इंडियन ऑयल में ऑफिसर वाली नौकरी करने वाले महेश गुप्ता की. जिन्हें उनकी नौकरी रास नहीं आई. वह कुछ अलग करना चाहते थे. उन्हें ये बात रास नहीं आ रही थी कि वह एक इंजीनियर होकर अपना कुछ करने की बजाए किसी के अंडर नौकरी करें. वो कहते हैं ना जहां चाह होती है वहां राह अपने आप मिल जाती है. महेश गुप्ता को भी विपरीत परिस्थिति में ही सही लेकिन उनके चाह के मुताबिक राह मिल गई. अचानक ही उनकी ज़िंदगी में कुछ ऐसी स्थिति बनी कि उन्हें नौकरी छोड़नी पड़ी.
उनके बेटे भी बीमार पड़ गए. बेटों की बीमारी के साथ साथ उन्हें एक बड़ी समस्या दिखी जिसके बाद उन्होंने इसे हल करने का प्रण ले लिया. महेश गुप्ता ने अपनी सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया और उस समस्या का निवारण खोजने में जुट गए. इसी समस्या की वजह से उनके बेटे बार-बार बीमार पड़ रहे थे. बेटों की बीमारी का इलाज खोजते हुए महेश गुप्ता ने कुछ ऐसा शुरू किया जो आज हमारे देश के लगभग हर दूसरे घर में देखने को मिल जाता है. ये शुरुआत थी कैंट आरओ (Kent RO) की.
पैशन के लिए छोड़ी नौकरी
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24 सितंबर 1954 को दिल्ली में जन्मे महेश बेहद सामान्य परिवार से संबंध रखते थे. वह हमेशा से पढ़ाई में तेज थे. उनके पिताजी वित्त मंत्रालय में सेक्शन ऑफिसर थे. पांच-भाई बहनों के साथ पूरा परिवार एक छोटे से घर में रहता था. लोधी रोड से अपनी स्कूलिंग पूरी करने के बाद महेश गुप्ता ने आईआईटी , कानपुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की. इसके बाद उन्होंने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पेट्रोलियम, देहरादून से पेट्रोलियम से मास्टर्स की. पढ़ाई के बाद उनकी नौकरी इंडियन ऑयल (Indian Oil Corporation) में लग गई.
बच्चों की चिंता करते हुए आया Kent RO का आइडिया
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एक सामान्य परिवार से आने के बाद एक इंसान को जो चाहिए होता है लगभग वो सब महेश के पास था. अच्छी खासी सरकारी नौकरी थी, घर था, परिवार था. लेकिन, वह फिर भी खुश नहीं थे. उन्हें कुछ अपना करना था. लंबे विचार के बाद आखिरकार 1988 में उन्होंने नौकरी छोड़ दी और ऑयल मीटर का बिजनेस शुरू किया. उन्होंने नोएडा में प्लांट लगाया. इसी बीच उनके बच्चे बीमार रहने लगे. उनके बच्चों को बार-बार ज्वाइंडिस हो रहा था.
डॉक्टर के मुताबिक सब गंदे पानी की वजह से उनके बच्चे बार बार बीमार हो रहे थे. बच्चों की बीमारी को लेकर महेश गुप्ता काफी परेशान थे. उनके लिए अब सबसे बड़ी चुनौती थी गंदे पानी की समस्या का निवारण खोजना. इसी चिंता के बाद उन्हें कुछ ऐसा सूझा जिसने ना केवल उनके बच्चों को ठीक किया बल्कि इसके साथ ही कैंट आरओ (KENT RO) शुरू करने की प्रेरणा भी दी.
शुरू किया अपना काम
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महेश गुप्ता बाजार से वाटर प्यूरिफॉयर लेकर आए लेकिन वो इससे संतुष्ट नहीं हुए क्योंकि उन्होंने देखा कि बाजार में मिलने वाले आरओ अल्ट्रावायलेट टेक्नोलॉजी पर आधारित थे, जिस वजह से वे पानी को पूरी तरह से साफ नहीं कर पाता थे. इसे देख उनका इंजीनियरिंग दिमाग कुछ अलग करने के मूड में आ गया. और फिर उन्होंने खुद के रिवर्स ऑस्मोसिस पर आधारित प्यूरिफायर बनाने का आइडिया दिया. ये आइडिया हिट हो गया. जिसके बाद 1998 में उन्होंने आरओ बनाने का काम शुरू किया. उन्होंने अपनी कंपनी का नाम रखा KENT RO.
5 हजार से बनाई 1100 करोड़ की कंपनी
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महेश गुप्ता ने उस समय अपने आरओ का दाम 20,000 रुपये रखा, जो कि बाजार में मौजूद बाकी आरओ से थोड़ा महंगा था. लेकिन इसके बावजूद लोगों ने कैंट की फैसिलिटी देखते हुए उसपर भरोसा किया. महेश गुप्ता ये जानते थे कि किसी भी प्रोडक्ट को बाजार में लोकप्रिय बनाने के लिए मार्केटिंग कितनी जरूरी है. यही कारण था कि उन्होंने अपने आरओ के लिए हेमा मालिनी को अपना ब्रांड एंबेसडर बनाया. उन्होंने देश में सबसे पसंद किये जाने वाले खेल के स्पॉसरशिप में भी पैसा लगाया.
उन्होंने मार्केटिंग इतनी बढ़ा दी कि टीवी, रेडियो, अखबार हर जगह कैंट के विज्ञापन दिखने लगे. यही कारण था कि महेश गुप्ता की मात्र 5 हजार रुपये से शुरू की गई कंपनी आज 1100 करोड़ की हो गई है.