कबीर चंद्राकर: विदेश से MBA डिग्री ली, वतन लौटकर शुरू की अमरूद की खेती, कमा रहे हैं करोड़ों

एक दौर था जब बच्चों को कहा जाता था, ‘पढ़ाई-लिखाई नहीं करोगे तो क्या खेत में हल जोतोगे?’ और आज ऐसा दौर है कि इंजीनियर से लेकर MBA होल्डर्स तक ऑर्गेनिक खेती, डेयरी फ़ार्मिंग करते हैं. बहुत से युवा आजकल प्राइवेट जॉब्स और करोड़ों के पैकेज छोड़कर गांव में आकर बसने और साधारण ज़िन्दगी जीने लगे हैं. कुछ ऐसी ही कहानी है छत्तीसगढ़ के कबीर चंद्राकर की. कबीर ने विदेश में MBA किया लेकिन अब वो भारत में रहकर ही खेती कर रहे हैं और लाखों कमा रहे हैं

लंदन से MBA डिग्री ली, प्राइवेट नौकरी नहीं की

Kabir Chandrakar MBA turns guava farmer earns lakhs 30 Stades

Your Story के एक लेख के अनुसार, छत्तीसगढ़ के रायपुर के मुजगहन गांव के रहने वालें कबीर चंद्राकर. कबीर ने यूनिवर्सिटी ऑफ चेस्टर, लंदन से कॉर्पोरेट फ़ाइनेंस में MBA किया. 2014 में वो स्वदेश लौट आए. MBA डिग्री धारी कबीर के पास दो चॉइस थी- किसी कंपनी में प्राइवेट नौकरी करना या अपने घर की खेती संभालना. कबीर ने लैपटॉप के बजाए फावड़ा उठाने का निर्णय लिया.

प्राइवेट नौकरी नहीं की, अमरूद की खेती में हाथ बंटाना शुरू किया

कबीर ने बताया कि उनके परिवार के पास 45 एकड़ ज़मीन है. इसमें ज़्यादातर धान की ही खेती होती थी. गौरतलब है कि कई बार मुनाफ़ा लागत से कम मिलता. कबीर ने बताया कि 2011-12 में अपने पिता को 6 एकड़ ज़मीन पर VNR Bihi वैराइटी के अमरूद लगाए. ये वैराइटी लगाने के तीसरे साल में फल देना शुरू करती है. जब फल नींबू के आकार का हो जाता है तो उसे बायोटिक और एबायोटिक स्ट्रेसेज़ से बचाने के लिए उस पर तीन लेयर्स लगाए जाते हैं.

कबीर ने पैकेजिंग मटैरियल इम्पोर्ट करना शुरू किया

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तीन लेयर बैगिंग में फल को फ़ोम नेट, ऐंटी-फ़ॉग पॉलिथीन बैग्स और पेपर से ढका जाता है. कबीर के पिता गुजरात के एक ट्रेडर से 2.5 रुपये प्रति पीस फ़ोम नेट खरीदते थे. कबीर ने बताया, ‘मुझे पता चला कि 60 पैसे पर पीस के हिसाब से फ़ोम नेट को इम्पोर्ट भी किया जा सकता है. मैंने बल्क में मंगा लिया और उन्हें दूसरों को भी बेचा, इससे भी मुनाफ़ा कमाया.’

110 एकड़ ज़मीन पर होती है अमरूद की खेती

इस अनुभव ने कबीर को अमरूद की खेती, पैकेजिंग और सेल्स के कुछ गुर सिखा दिए. कबीर के परिवार और दोस्तों ने उसे मोटिवेट किया कि खेती पर फ़ोकस करना बुरा नहीं है. कबीर का मानना है कि इससे वो अपने परिवार और ज़मीन से भी जुड़े रह सकते हैं. इसके बाद उन्होंने बड़े पैमाने पर अमरूद की खेती करने का निर्णय लिया.

आज कबीर अपनी ज़मीन समेत 110 एकड़ ज़मीन पर अमरूद की खेती करते हैं. छत्तीसगढ़ में तीन जगहों पर लीज़ पर ज़मीन ली गई है, जहां अमरूद की खेती की जाती है. 2022 में अमरूद की खेती से कबीर ने 2.50 करोड़ रुपये कमाए यानि लगभग 6 लाख प्रति एकड़.

कबीर चंद्राकर ने कैसे की अमरूद की खेती?

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कबीर ने इतने बड़े पैमाने पर अमरूद की खेती शुरू नहीं की, उनकी शुरुआत छोटी थी. 2015 में उन्होंने अपनी पुश्तैनी 10 एकड़ ज़मीन पर अमरूद की खेती शुरू की. कबीर ने बताया, ‘मैंने लोन लिया और नेशनल हॉर्टिकल्चर बोर्ड (NHB) से सब्सिडी ली.’

NHB फल और सब्ज़ियों की खेती के लिए बैक ऐंड सब्सिडी देती है. इसका मतलब है कि प्रोजेक्ट पूरा होने के बाद ही सब्सिडी मिलती है.

रायपुर स्थित वीएनआर नर्सरी ने कबीर ने 120 रुपये प्रति पौधे के हिसाब से अमरूद के पौधे मंगवाए. उन्होंने 1 एकड़ में 12 फ़ीट की रो-टू-रो स्पेसिंग और 8 फ़ीट की प्लांट टू प्लांट स्पेसिंग के साथ 440 पौधे लगाए.

शुरुआत में एक एकड़ का ज़मीन को खेती लायक बनाने की लागत 50,000 रुपये आई. मज़दूरी, पानी, पोषक तत्व और खाद भी इनपुट कॉस्ट्स में शामिल हैं.

अपने फ़ार्म पर कबीर ने ड्रिप इरिगेशन सिस्टम लगाया ताकि पानी कम से कम बर्बाद हो. एक एकड़ में ड्रिप इरिगेशन का खर्ज 40000-50000 तक आ सकता है.

2018 में कबीर के अमरूद के पेड़ों में फल आने लगे. उन्होंने 45 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से फसल बेची. ये कीमत 100-120 तक भी जा सकती है और 30 रुपये प्रति किलो तक भी गिर सकती है.