आज के समय में कहीं दूर खेले जा रहे छोटे से छोटे क्रिकेट टूर्नामेंट की हर जानकारी हमें मिल जाती है. देश ही नहीं विदेशों के लीग मैचों का प्रसारण हम देख सकते हैं. लेकिन एक समय ऐसा भी था जब भारतीय टीम विश्वकप (ICC Cricket World Cup 1983) का अहम मैच खेल रही थी मगर उसका प्रसारण टीवी से लेकर रेडियो तक कहीं भी नहीं हो रहा था. कमाल की बात ये है कि इसी मैच में एक खिलाड़ी ने ऐसा जलवा दिखाया कि मैच के साथ साथ भारतीय क्रिकेट तक की तस्वीर बदल गई.
WC का वो मैच जब भारत ने 17 पर गंवाए 5 विकेट
ये कहानी है 18 जून 1983 की. टनब्रिज वेल्स के मैदान पर 1983 वर्ल्डकप का 20वां मैच भारत और जिम्बाब्वे के बीच खेला जा रहा था. ये स्टेडियम मैच को लेकर उत्साहित दर्शकों से खचाखच भरा हुआ था. भारतीय टीम पहले बैटिंग करने उतरी. हर देशवासी की तरह भारतीयों को भी उम्मीद थी कि टीम अच्छा खेलेगी लेकिन लिटिल मास्टर सुनील गावस्कर और श्रीकांत के जीरो पर आउट होने के बाद ये उम्मीद कम होने लगी. और जब 17 रन पर भारत की आधी टीम यानी 5 खिलाड़ी वापस पवेलियन लौटे तब रही सही उम्मीद भी खत्म हो गई.
कपिल देव ने संभाली पारी
जिम्बाब्वे के पेस बॉलर पीटर रॉसन और केविन कर्रन की गेंदबाजी के सामने धराशायी हो चुके भारत के टॉप ऑर्डर के बाद न कोई उम्मीद बची और ना उत्साह. उस समय हर कोई यही सोच रहा था कि भारत अगर 50 रन भी पूरे कर ले तो बड़ी बात होगी. तब 24 साल के एक लड़के ने लड़खड़ाती हुई भारतीय टीम को अपने मजबूत कंधे से टिका लिया. वो लड़का था कपिल देव (Kapil Dev Only Hundred). रोजर बिन्नी ने कुछ देर कपिल का साथ देते हुए 22 रन बनाए. मगर 50 रन की पार्टनरशिप होने के बाद वो भी आउट हो गए.
भारत 77 रन पर 6 विकेट गंवा चुका था. रवि शास्त्री आए मगर आते ही लौट गए. उनके 1 रन के योगदान से भारत का स्कोर पहुंचा 78 पर और विकेट गिरे 7. जहां से सब उम्मीदें खत्म थी, वहां से भारत की टीम थोड़ा सा संभली. भारतीय बल्लेबाजों को दुर्गति करने वाले रॉसन और कर्रन को जिंबाब्वे के कप्तान डंकन फ्लेचर ने रेस्ट दे दिया. इस समय क्रीज पर कपिल के साथ मदन लाल टीके रहे. कपिल ने स्कोर 140 तक पहुंचाया, जिसमें 17 रन मदन लाल के थे. 140 पर मदद लाल के रूप भारत का अठवां विकेट गिरा.
किरमानी ने दी हिम्मत कपिल ने रच दिया इतिहास
कपिल देव भी हिम्मत हारने लगे थे लेकिन उसी समय मैदान में सैय्यद किरमानी की एंट्री हुई. उन्होंने कपिल देव को सलाह दी कि वह बिना चिंता के अपना नैचुरल गेम खेलें. लेकिन चिंता होना स्वाभाविक था, तब एकदिवसीय मैच 60 ओवर के होते थे और दोनों को 60 ओवर तक खेलना था. किरमानी की बढ़ाई हिम्मत ने काम किया और कपिल देव में मानों दैवीय शक्ति आ गई. इसके बाद कपिल ने कुछ नहीं देखा बस अपना बल्ला घुमाने लगे.
डबल-सिंगल लेकर टुक-टुक क्रिकेट खेल रहे कपिल पाजी ने अब एक के बाद एक छक्के चौके लगाने शुरू कर दिए. उन्होंने 72 गेंदों में अपना शतक पूरा कर लिया. किरमानी 24 रन आउट हो गए लेकिन वो अपना काम कर चुके थे. उन्होंने कपिल देव का ऐसा साथ दिया कि 60 ओवर खत्म होने तक कपिल ने 16 चौकों और 6 छक्कों की मदद से 138 बॉलों पर 175 रन बना दिए.
ये महत्वपूर्ण मैच था, भारत के हारने के साथ ही सेमीफाइनल तक पहुंचने की उम्मीदें भी खत्म हो जानी थीं. लेकिन कपिल देव की अद्भुत पारी ने टीम इंडिया ने 60 ओवरों में 266 रन बना दिए. इसके बाद मदन लाल, रोजर बिन्नी और अमरनाथ की शानदार बॉलिंग ने जिंबाब्वे की टीम को 235 रनों पर ही समेट दिया. इस जीत के साथ ही भारत की टीम सेमीफाइनल में पहुंची और वर्ल्डकप जीत इतिहास रच दिया.
नहीं हुआ इस मैच का प्रसारण
सोचिए अगर आज कोई बल्लेबाज अपनी टीम को अकेले दम पर इतना बड़ा स्कोर खड़ा करने में मदद कर दे तो उसके चर्चे कहां कहां होंगे! लेकिन कपिल की ये पारी स्टेडियम में मौजूद लोगों के अलावा और किसी को देखनी नसीब नहीं हुई. ना इसका लाइव टेलिकास्ट हुआ और नया रेडियो कॉमेंट्री सुनने को मिली. इसके पीछे कारण थी बीबीसी की हड़ताल. उस दिन बीबीसी हड़ताल पर थी जिस वजह से कैमरामैन मैदान आए ही नहीं. यही वजह है कि उस दिन टेलिकास्ट नहीं हुआ और ना ही इस मैच की कोई वीडियो रिकॉर्ड की गई. जिस वजह से आज भी इस मैच को देखा नहीं जा सकता. ये मैच बस पीढ़ी दर पीढ़ी हम भारतीयों की यादों में ताजा रहेगा.