अयोध्या राम मंदिर निर्माण के लिए विश्व हिंदू परिषद की ओर से देश भर में आंदोलन चलाया गया। लड़ाई लड़ी गई। एक लड़ाई वकील उमेश पांडेय ने वर्ष 1986 में लड़ी और जीती थी। वह थी 1949 से ताले में बंद रामलला के कपाट खुलवाने की लड़ाई। इस जीत के बाद रामलला बेड़ियों से बाहर आए थे।
राम मंदिर का ताला खुले, इस कानूनी लड़ाई की शुरुआत कैसे हुई?
जब मंदिर आंदोलन शुरू हुआ तो मन में इसकी जांच करने का विचार आया कि किसके आदेश से जन्मभूमि मंदिर पर ताला लगा है। कागजात का निरीक्षण किया तो पता चला कि जहां रामलला विराजमान हैं, उस कमरे में ताला लगाने का किसी कोर्ट का आदेश ही नहीं है। इसके बाद मैंने मुंसिफ कोर्ट में अर्जी देकर ताला खोलने के आदेश की मांग की। कोर्ट ने यह कहकर कोई आदेश नहीं दिया कि मामला हाई कोर्ट में विचाराधीन है। इस आदेश के खिलाफ जिला जज के कोर्ट में केस किया।
क्या आपको उम्मीद थी कि आप के पक्ष में कोर्ट आदेश करेगा?
तत्कालीन जिला जज केएम पांडेय के कोर्ट में मैंने 25 जनवरी 1986 को केस दायर किया था। कोर्ट ने हाई कोर्ट में फाइलें रहने के कारण कोई ऑर्डर नहीं किया। कोर्ट से पुन: सुनवाई की मांग करने पर 11 फरवरी को फिर सुनवाई हुई। उसी दिन तत्कालीन डीएम इंदु कुमार पांडेय और एसएसपी करमबीर सिंह ने कोर्ट में बयान दिया कि रामलला की सुरक्षा में फोर्स रहेगी। फिर क्या था, कोर्ट ने ताला खोलने का आदेश दे दिया। हालांकि, मुझे इसकी उम्मीद बहुत कम थी।
क्या हुआ फैसले के बाद?
सारे देश में मिठाइयां बंटीं और दीपावली मनी। इसी के साथ विहिप के मंदिर आंदोलन की धार तेज हो गई। आडवाणी की रथयात्रा का नाम विजय यात्रा में तब्दील हो गया।
क्या आप मानते हैं कि मंदिर का निर्माण कानूनी लड़ाई के बल पर ही हो रहा है?
मैं तो यही मानता हूं कि राम मंदिर की असली लड़ाई कानूनी ही रही है। आंदोलन से दबाव बना लेकिन कोर्ट के निर्णय से ही मंदिर के शांतिपूर्ण निर्माण का रास्ता खुला। बाकी रामजी की कृपा तो इसमें साथ रही ही है।
क्या आपकी कानूनी लड़ाई में किसी राजनीतिक दल का भी सहयोग रहा?
मैं कभी किसी राजनीतिक दल से नहीं जुड़ा। हां, अयोध्या का रहने वाला हूं। प्रभु राम के प्रति आस्था है। ऐसे में उनको ताले में बंद जर्जर भवन से मुक्त देखना चाहता था। मैंने कभी कोई श्रेय या सत्ता लाभ लेने का कोई प्रयास नहीं किया।
क्या आप को प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम का निमंत्रण मिला है?
अभी तक तो नहीं मिला। निमंत्रण तो वीआईपी लोगों को पहले मिल रहा है। मैं रामकाज में गिलहरी की तरह हूं, जिसने कानूनी लड़ाई में छोटा सा योगदान किया।