#HP : अतीत के पन्नों से “रनिंग ट्रॉफी” की रोचक दास्तां…AVN स्कूल की बढ़ा रही शोभा

80 के दशक के अंतिम पड़ाव में अंतर विद्यालय प्रश्नोत्तरी(Inter School Quiz) प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता था। उस दौर में आदर्श विद्या निकेतन (Adarsh Vidya Niketan) स्कूल मौजूदा की तरह तब भी अनुकरणीय शिक्षा (exemplary education) प्रदान करता था। 1988 में अंतर विद्यालय प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता में रोटरी क्लब (Rotary Club) द्वारा एक ट्राॅफी (Trophy)  प्रायोजित की गई थी। प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता के सूत्रधार नेशनल अवार्डी दिवंगत आरके दुग्गल हुआ करते थे।

प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता जीतने वाले विद्यालय को ट्रॉफी अगले वर्ष दोबारा आयोजकों को सौंपनी होती थी। शर्त ये थी कि ट्रॉफी को स्थाई तौर पर स्कूल ले जाने के लिए प्रतियोगिता को लगातार तीन बार जीतना होता था। 1988 व 1989 में ट्राॅफी पर आदर्श विद्या निकेतन विद्यालय (School) ने कब्जा कर लिया। उस समय विद्यालय दसवीं कक्षा तक ही था।
गौरतलब है कि 1989 में स्कूल का पहला दसवीं का बैच पास आउट हुआ था। स्कूल के स्टुडेंटस ने आगे की पढ़ाई के लिए शमशेर वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला में दाखिला ले लिया। लिहाजा, विद्यालय ये ट्राॅफी लगातार तीसरी बार नहीं जीत पाया, इस पर शमशेर स्कूल का कब्जा हो गया।

इसके बाद आदर्श विद्या निकेतन के होशियार छात्रों ने लगातार तीन साल तक प्रतियोगिताओं में जीत हासिल करने के बाद ये ट्राॅफी स्कूल के प्रधानाचार्य के के चंदोला (KK Chandola) को एक ऐसी यादगार के तौर पर सौंपी, जो करीब 35 साल बाद भी प्रधानाचार्य के कार्यालय की शोभा बढ़ा रही है।

हालांकि, प्रधानाचार्य के कार्यालय में छात्रों की उपलब्धियों के बेशुमार यादें (memory)  मौजूद हैं, लेकिन 35 साल पुरानी ट्रॉफी की चमक अलग ही है।

एमबीएम न्यूज नेटवर्क से बातचीत में प्रिंसिपल व शिक्षाविद के के चंदोला ने कहा कि इसे रनिंग ट्रॉफी कहा जाता था। स्कूल की स्थापना 44 साल पहले की गई थी। ट्रॉफी की यादें इस कारण भी अहम है, क्योंकि इसे विद्यालय के पहले दसवीं के बैच के स्टूडेंट्स लगातार दूसरी बार जीतकर लाए थे।

स्टूडेंट्स के अगले वर्ष दूसरे स्कूल में दाखिला लेने के कारण लगातार तीसरी बार ट्रॉफी नहीं मिली थी, लेकिन बाद में विद्यालय (School) के विद्यार्थियों ने रनिंग ट्रॉफी (Running Trophy) को लगातार तीन बार जीतकर अपना बना लिया था।

उन्होंने कहा कि शिक्षा के व्यवसायीकरण को हावी नहीं होने दिया। इस बात पर गर्व महसूस करता हूं कि 44 सालों में शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्र मौजूदा में दुनिया भर में मौजूद हैं। उन्होंने कहा कि वो इस बात पर भी फक्र महसूस करते हैं कि उनके पढ़ाए हुए छात्र शिक्षा के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय योगदान दे रहे हैं।

विद्यालय के पहले दसवीं बैच के छात्र रहे रविंद्र ठाकुर, अजय कांत अग्रवाल, धीरज जैन, प्रोमिला, कंवर अंबरीश सिंह, नलिन शर्मा इत्यादि ने कहा कि शिक्षा ग्रहण करने का वो दौर अलग ही था।