History of Sikh Turban सिख धर्म में पगड़ी पहनने का रिवाज कितना पुराना है? क्यों आज तक पहनी जा रही है पगड़ी?

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पगड़ी पहनने की परंपरा हाल-फिलहाल की नहीं, यह बहुत पुरानी है. कई जगहों पर शादी ब्याह में लड़के और लड़की के घरवाले पगड़ी पहनते हैं. इतिहास में पगड़ी का अच्छा-खासा जिक्र है.पहले सिर्फ़ राजा-महाराजा पगड़ी पहना करते थे. योद्धा पगड़ी को अपने बाहुबल का प्रतीक समझते थे. कई फिल्मों में भी हारे हुए लोग या कमजोर लोग अपनी पगड़ी उतारकर पैर के नीचे रख देते हैं यानी अपना सम्मान उतारकर ताकतवर व्यक्ति के पैरों में रख देते हैं. पगड़ी को देखकर कई सारी बातें हमारे दिमाग में आती हैं. अक्सर आपने सिख धर्म को मानने वाले लोगों को पगड़ी में देखा होगा. उन्हें देखकर जिज्ञासा होती है कि पगड़ी का इतिहास कितना पुराना है और सिख धर्म में पगड़ी को बहुत ज्यादा महत्व क्यों दिया जाता है?

सिख धर्म में पगड़ी कब से पहनी जा रही है?

Sikh AFP/Representational Image

सिख पगड़ी को गुरु का उपहार मानते हैं. सिखों की पगड़ी 1699 में बैसाखी के दिन गुरु गुरु गोविंद सिंह जिन्हें सिखों का दसवां गुरु माना जाता है, उन्होंने अपने खास लोगों को पगड़ी उपहार के रूप में दी थी. पांच सबसे करीबी लोगों को अमृत देने के बाद उन्होंने उन्हें जो कपड़ा भेंट किया उसमें पगड़ी भी थी.

गुरु गोविंद सिंह के समय में पगड़ी सम्मान के रूप में देखी जाती थी.पगड़ी बड़प्पन का प्रतीक थी. उस समय मुगल नवाबों या हिंदू राजपूत को उनकी पगड़ी से जाना और पहचाना जाता था. हिंदू राजपूत लोगों की पगड़ी थोड़ी अलग तरह की होती थी. उनकी पगड़ी में गहने जड़े होते थे. हिंदू राजपूत पगड़ी पहनने के साथ-साथ हथियार भी रखते थे. साथ ही उन्हें दाढ़ी और मूंछ रखने की भी इजाजत थी. पर उस समय हर सिख को पगड़ी पहनने, तलवार चलाने और अपने नाम के आगे सिंह या कौर लिखने की इजाजत नहीं थी. लेकिन गुरु गोबिंद सिंह ने सभी सिखों को तलवार चलाने, अपने नाम के आगे सिंह और कौर लिखने और केश रखने की आजादी दी. इससे सिख समाज के अंदर जो बड़े और छोटे लोग के बीच फासला था वो समाप्त हुआ.

पंजाबी समाज में खालसा सिखों पर कमजोर तबके के लोगों की रक्षा की जिम्मेदारी होती है. सिख योद्धाओं को खालसा कहते हैं. वे पगड़ी पहनते हैं और अपने अंतिम गुरु गुरु गोविंद सिंह की अंतिम इच्छा के अनुसार कभी बाल नहीं कटवाते. सिख इतिहास बताता है कि गुरु गोविंद सिंह ने अपने दोनों बेटे अजीत सिंह और जुझार सिंह के सिर पर पगड़ी बांधी थी और हथियार दिए थे. गुरु गोविंद सिंह ने अपने दोनों बच्चों को दूल्हे की तरह सजाकर युद्ध के मैदान में भेजा था और दोनो युद्ध के मैदान में शहीद हो गए थे.

सिख धर्म में पगड़ी का विशेष महत्व क्यों है?

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सिर पर पगड़ी पहनना सीख संस्कृति का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है. पगड़ी को सिख धर्म का अस्तित्व माना जाता है. अमृत धारी सिखों के लिए पगड़ी धारण करना अत्यंत आवश्यक है. सिख पगड़ी को सिर्फ सांस्कृतिक धरोहर ही नही मानते, ये उनके लिए सम्मान, स्वाभिमान के साथ-साथ साहस और आध्यात्म का भी प्रतीक है. और खालसा सिख पगड़ी के साथ-साथ केश, कंघा, कड़ा, कृपाण भी रखते हैं. उनके लिए लंबे बिना कटे बाल को ढकने में भी पगड़ी मदद करती है.

पगड़ी से जुड़ी और कितनी प्रथाएं हैं?

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पगड़ी स्वाभिमान और पवित्रता का प्रतीक मात्र नहीं है. सिख परंपरा में बिना किसी स्वार्थ के समाज की सेवा करने को पारंपरिक रूप से पगड़ी देकर सम्मानित किया जाता है. पगड़ी के आदान-प्रदान का भी एक रिवाज सिखों की संस्कृति में मशहूर है. पगड़ी का आदान-प्रदान अपने सबसे करीबी दोस्तों, इष्ट मित्रों के साथ किया जाता है. एक बार पगड़ी का आदान-प्रदान करने के बाद उन्हें जीवन भर दोस्ती का रिश्ता निभाना होता है. पगड़ी को जिम्मेदारी का प्रतीक भी माना जाता है.

उत्तर भारत में एक प्रथा है जिसे रसम पगड़ी के नाम से जानते हैं. रसम पगड़ी की प्रक्रिया किसी व्यक्ति के देहांत हो जाने पर की जाती है. इस प्रथा में मरे हुए व्यक्ति का बड़ा बेटा शोक सभा के सामने पगड़ी बांधकर पूरे परिवार की जिम्मेदारी को संभालने का निश्चय करता है. पगड़ी रसम यह दर्शाती है कि पुत्र ने अपने पिता की विरासत को संभाल लिया है. पगड़ी रसम के बाद पुत्र परिवार का मुखिया हो जाता है.

अंग्रेजों के आने के बाद पगड़ी में कितना बदलाव आया?

पंजाब में करीब 1845 में जब ब्रितानिया हुकूमत मजबूत हुई तब पगड़ी के पहनावे में कई तरह का बदलाव हुआ. उस वक्त पगड़ी का प्रयोग सिख सिपाहियों को बाकियों से अलग करने के लिए प्रयोग में लाया गया. अंग्रेज़ों ने सिखों के लिए खास तरह के सिमिट्री वाली पग का चलन शुरू किया. पहले ये पगड़ी केन्याई स्टाइल की थी पर बाद में पगड़ी का रंग और आकार बदल दिया गया. अंग्रेज़ों की वजह से सिखों ने अपनी दाढ़ी को बांधना शुरु कर दिया क्योंकि अंग्रेज़ी बंदूक चलाते वक्त खुली हुई दाढ़ी में आग लगने का डर रहता था. इसलिए सिख सिपाहियों को समझाया गया कि वो दाढ़ी को ठोड्डी के पास बांधें ताकि आग न लगे. धीरे-धीरे ये परंपरा बन गई और इसे आज भी सिख धर्म में इसका निर्वहन होता है.

विदेशों में पगड़ी को स्वीकार्यता कैसे मिली?

भारत के आजाद हो जाने के बाद धीरे-धीरे भारत के सिख जब पश्चिमी देशों में जाने लगे तो शुरुआत में उन्हें खूब सम्मान मिला। उनकी असाधारण क्षमताओं के कारण उन्हें भरपूर मान-सम्मान दिया गया. सिख लोग चाहे ब्रिटेन में हों या दुनिया के किसी मुल्क में अपने पगड़ी पहनने की परंपरा को उन्होंने बरकरार रखा. पर उनके पगड़ी पहनने की वजह से धीरे-धीरे कई तरह के विवाद पैदा हुए. इंग्लैंड में एक मामला सामने आया जिसमें बस चलाने वाले ड्राइवर को ड्यूटी के वक्त पगड़ी पहनने से रोका गया. कुछ मामले आए जिसमें सिख छात्रों को पगड़ी पहनकर स्कूल में बैठने की अनुमति नहीं दी गई. फिर रोड एक्सीडेंट को खत्म करने के लिए दुनिया के कई मुल्कों में तेजी से हेलमेट कानून चलन में आया. हेलमेट कानून को मजबूती से लागू करने के लिए पगड़ी पहनने की प्रथा को खत्म करने की कोशिश की गई लेकिन सिख धर्म के लोग अपने पगड़ी पहनने की परंपरा पर टिके रहे. नितिजतन इंग्लैंड सहित दुनिया के कई देशों में पगड़ी को अनिवार्य मान लिया गया है, कई देशों में पगड़ी को स्वीकार कर लिया गया है. आज भी कई बार पगड़ी को लेकर विवाद उत्पन्न हो जाता है.

सिख महिलाएं क्यों पहनती है पगड़ी ?

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सिख धर्म में पगड़ी पहनने की परंपरा सिर्फ पुरुषों तक सीमित नहीं है सिख समुदाय की महिलाएं भी पगड़ी पहनती हैं. सिख संस्कृति में अमृत पान की एक रस्म होती जिसमें जब सिख महिलाएं अमृत चख लेती हैं यानि पांच ककार को अपना लेती है. पांच ककार (केश, कृपाण, कंघा, कड़ा और कच्छा) खालसा पंथ का एक सांस्कृतिक तरीका है. इस परंपरा को पूरा करने के बाद सिख महिलाओं को दस्तार पहनने की आजादी मिल जाती है. सिख महिलाओं की पगड़ी रस्म सिख पुरुष और बच्चे की तरह ही की जाती है. सिख धर्म के अनुसार पगड़ी पहनने वाली महिलाएं खुले बाल नहीं रख सकती.