दही-चूड़ा, चिवड़ा, सेव के साथ पोहा… या फिर चीनी के साथ ऐसे ही सादा. चूड़ा या पोहा एक ऐसी चीज़ है जिसे नापसंद करने का प्रश्न ही नहीं उठता. इसे खाने और बनाने के इतने तरीके हमने विकसित कर लिए हैं कि विकल्पों की कमी नहीं है.
मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात और मध्य प्रदेश के लोगों के दिन की शुरुआत ही पोहा जलेबी या पोहा और चाय से होती है. पश्चिम बंगाल के कुछ घरों में पोहे से ‘खापोरमोन्डा’ नामक मीठा व्यंजन भी तैयार किया जाता है. हिन्दुस्तान में उत्तर से दक्षिण, पूर्व से पश्चिम सफ़ेद मोतियों सा दिखने वाला या फ़ूड आइटम हर घर में मिल जाता है. दाल चावल रोटी के बाद शायद यही हम हिन्दुस्तानियों के स्टेपल फ़ूड में आता है!
इंदौर, मध्य प्रदेश (Indore, Madhya Pradesh) का तो ये ‘नेशनल फ़ूड’ बन चुका है. इंदौर पहुंचकर अगर आपने इंदौरी सेव पोहा नहीं चखा तो आपका इंदौर जाना सरासर बेकार ही है! इंदौर को देश में दो ही कारणों से जाना जाता है- साफ़-सफ़ाई और दूसरा पोहा.
वैसे तो हर जगह हम पोहा बोल देते हैं, लेकिन इंदौरी पोहा के स्वाद का कोई मैच नहीं.
कैसे बन गए मध्य प्रदेश का पोहा इंदौर की पहचान ?
पोहा, जलेबी और चाय अगर नाश्ते में मिल जाए तो लगता है दिनभर की आधी समस्याएं तो वैसी ही ख़त्म हो गईं!
एक लेख की मानें तो पोहा महाराष्ट्र का तोहफ़ा है, दुनिया को. होल्कर और सिंधिया राज में ये बेहद लोकप्रिय हुआ. जब होल्कर और सिंधिया राजवंश मध्य प्रदेश पहुंचा तब उनके साथ पोहा भी इंदौर समेत मध्य प्रदेश के बाकी शहरों में घरों में भी हमेशा के लिए बस गया.
ग़ौरतलब है कि मध्य प्रदेश में पोहा प्याज़, टमाटर, मसालों से ही बनता है वहीं इंदौर या मध्य प्रदेश में ये बिना प्याज़-लहसुन के भी बनता है. जो एक चीज़ मध्य प्रदेश के पोहे में पड़ती ही पड़ती है वो है- नमकीन, वो भी तीखा.
पोहा विदेशियों के बीच भी हुआ मशहूर
The Times of India के 1846 साल के अंक में छपे एक लेख की मानें तो बॉम्बे गैरिसन (Bombay Garrison) ने ऑर्डर जारी किया था कि जब भी सिपाही समुद्री सफ़र पर निकलेंगे तो उन्हें खाने के लिए पोहा दिया जाएगा. 1878 के इसी अख़बार के अंक के एक लेख पर यक़ीन करें तो साइप्रस से भारत लौट रहे कुछ सिपाही, पोहे की मांग पर अड़ गए थे और उन्हें डिटेन किया गया था, पोहा पावर!
सफ़र के लिए सबसे सही था पोहा. गर्म पानी डालकर इसे सिपाही आसानी से खा सकते थे. प्राकृतिक आपदाओं के दौरान तो पोहा किसी ईश्वरीय आशीर्वाद से कम नहीं लगता.
पोहा सुप्रिमेसी को समझने के लिए एक ही फै़क्ट काफ़ी है- 1960 के दशक में भारत सरकार ने पोहा प्रोडक्शन को सीमित कर दिया था, वजह थी चावल की कमी.
हिन्दू पौराणिक कथाओं में भी ज़िक्र
कहते हैं कि जब ग़रीब सुदामा अपने अमीर मित्र कृष्ण से मिलने गए थे, तब अपने साथ एक पोटली में पोहा बांधकर ले गए थे.
पोहा कैसे खाना पसंद करते हो, कमेंट बॉक्स में बताओ. खाने पर बातें और भी होंगी, कुछ खास फ़रमाइश हो तो वो भी हमसे कहिए.