भारत में हर घर में जो दो चीज़ें लगभग रोज़ ही बनती है वो हैं चाय और कुछ मीठा!
मीठे के शौक़ीन हों या न हों लेकिन हमारे घरों के फ़्रिज में, रसोई के कनस्तरों में मिठाई ज़रूर होती है. फिर चाहे वो गुड़ या शहद या शक्कर ही क्यों न हो! हम भारतीय एक बार को नमकीन और तीखी चीज़ें मना भी कर दें लेकिन मीठा एक ऐसा स्वाद है जिससे गुरेज़ करने में जी-जान लगानी पड़ती है. मन ख़राब हो तो मीठा, गु़स्सा हो, दुखी हो तो मीठा बचपन में चोट लग जाती थी तो मां भी शक्कर खिलाती थीं और पुचकारती थी. मिठाई हमारे यहां का अभिन्न अंग है और अगर डॉक्टर किसी को मीठा मना कर दे तो अंतरात्मा तक कांप जाती है.
स्वतंत्रता दिवस हो, गणतंत्रता दिवस हो, घर पर कोई पूजा हो, अनुष्ठान हो, किसी शुभकार्य की शुरुआत हो, रिश्ता पक्का होने पर एक-दूसरे के परिवार के लोगों का मुंह मीठा करवाना हो, जो एक चीज़ इन सब अवसरों पर कॉमन है वो लड्डू. रसगुल्ला, गुलाब जामुन, बर्फ़ी सब एक तरफ़ लेकिन लड्डू की सुप्रिमेसी पर कोई सवाल उठाया ही नहीं जा सकता! आप देश के किसी भी कोने में चले जाओ, आपको लड्डू न मिले ऐसा संभव ही नहीं है! हां ये ज़रूर है कि हर क्षेत्र के लड्डू का अपना स्वाद होगा, बनाने का तरीका होगा.
नारियल लड्डू से लेकर कंगनी के लड्डू
Aromatic Essence
The Indian Express के एक लेख के अनुसार, अपने यहां न सिर्फ़ लड्डू की कई वैराइटीज़ मिलती है, बल्कि इसे बनाने की बहुत सारी विधियां हैं. यूं समझिए कि जैसे हर मिठाई के बनने का कोई फ़िक्स तरीका होगा, जैसे रसगुल्ले के लिए छेना, गुलाब जामुन के लिए खोया आदि लड्डू बनाने की कोई तय विधि नहीं है. लड्डू भौगोलिक स्थिति, फसल, जलवायु आदि पर भी निर्भर करता है, फिर चाहे वो मोतीचूर के लड्डू हों, जिनके बारे में कहा जाता है कि ये सबसे पहली बार राजस्थान और उत्तर प्रदेश में बनाए गए थे. दक्षिण का नारियल का लड्डू हो या महाराष्ट्र का डिंकाचे लड्डू.
दवा के रूप में खाए जाते थे!
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सबका मन ख़ुश कर देने वाले लड्डू का इतिहास उतना ही दिलचस्प है जितना जादुई इसका स्वाद. The Better India के लेख के अनुसार, लड्डू को पहले दवाई के तौर पर खाया जाता था. भारतीय शल्यचिकित्सक सुश्रुत अपने मरीज़ों को बतौर एंटीसेप्टीक लड्डू देते थे. 400 ईसा पूर्व में सुश्रुत गुड़, मूंगफली और तिल के बने लड्डू मरीज़ों को देते थे. आज भी इस विधि से तिल के लड्डू बनाए जाते हैं. तिल को शहद में लपेटकर, लड्डू बनाए जाते थे. शहद में एंटीबैक्टीरियल प्रॉपर्टीज होते हैं, वहीं गुड़ और तिल भी स्वास्थ्य के लिए बेहद फायदेमंद है.
सफ़र में बतौर गुड लक चलता था लड्डू!
Chef Kunal Kapoor
एक कहानी की मानें तो सफ़र में इसे गुड लक के तौर पर भी रखा जाता था. लड्डू जिस विधि से बनती है, इससे ये जल्दी खराब भी नहीं होती और इसे आसानी से सफ़र में साथ रखा जा सकता है. कुछ ऐतिहासिक दस्तावेज़ों के मुताबिक, चोल वंश में लोग लड्डू को बतौर गुडलक सफ़र में साथ रखते थे. यही
मिठास से भरा है लड्डू का इतिहास
Geek Robocop
लड्डू आज भले ही कई प्रकार के हों लेकिन एक इनका सफ़र मिठास से भरा हुआ है. मंदिरों में ये प्रसाद के रूप में दिए जाने लगे क्योंकि लड्डू का प्रसाद यानि बिना किसी भेद-भाव के सबको एक समान प्रसाद मिलने की गारंटी. विशेषज्ञों का मानना है कि खाने-पीने की आदतों की वजह से इसकी विधि में कई बदलाव आए.
गुड़ के जगह होने लगा चीनी का इस्तेमाल
Cooking Carnival
बदलते दौर के साथ लड्डू भी बदला और इसमें गुड़ के बजाए चीनी का इस्तेमाल होने लगा. इसमें अंग्रेज़ों का बड़ा हाथ था. चीनी को मीठा सफ़ेद ज़हर (Sweet White Poison) कहा जाता था लेकिन इसी चीनी की वजह से लड्डू और ज़्यादा मशहूर हुआ और घर-घर पहुंचने लगा. लोगों को जैसे ही पता चला कि चीनी से लड्डू की मिठास बढ़ सकती है, लड्डू की विधि में गुड़ की जगह चीनी ने ले ली. बिहार में रामदाने से बनने वाला लड्डू, जिसे लाई भी कहा जाता है, सबसे पहले लड्डुओं में से एक था जिसमें गुड़ की जगह चीनी का इस्तेमाल किया गया.
कानपुर का ठग्गू का लड्डू, जिसने लोगों को चीनी खाने से रोका!
कानपुर की मशहूर दुकान, ठग्गू के लड्डू के नाम से हम सभी परिचित हैं! इस दुकान की शुरुआत राम अवतार यादव ने की थी. दुकान का टैगलाइन भी ज़ोरदार, ‘ऐसा कोई सगा नहीं, जिसको हमने ठगा नहीं.’ यादव गांधी समर्थक थे और वे गांधी जी का भाषण सुनने दिल्ली गए थे. बापू ने अपने भाषण में चीनी को ‘सफ़ेद ज़हर’ कहा. बहुत से हलवाई चीनी से ही मिठाई बनाते थे, यादव भी उन्हीं में से एक थे. ग्राहकों को चीनी के दुष्प्रभाव से सावधान रखने के लिए उन्होंने दुकान का नाम ठग्गू के लड्डू रखा और खोया, सूजी और गोंद से लड्डू बनाना शुरु किया. यूं कहना ग़लत नहीं होगा कि ये सबसे ईमानदार हलवाई थे जिन्होंने अपना नाम ठग्गू रख लिया.
अगर कल को देश की राष्ट्रीय मिठाई चुननी पड़े, और इस पर वोटिंग हो तो लड्डू ही विजेता होगा!