History of Kulcha कैसे छोले का साथी कुलचा हैदराबाद के निज़ाम के झंडे तक पहुंच गया, बड़ी दिलचस्प है ये कहानी

kulcha in hyderabad nizam flag

हैदराबाद का नाम लें और बिरयानी याद न आए ऐसा हो नहीं सकता. हैदराबाद का ज़िक्र हो तो दो ही चीज़ें ध्यान में आती हैं, एक चार मिनार और दूसरी बिरयानी. फिर हैदरादाब के निज़ाम के झंडे पर बिरयानी के बजाए कुलचा कैसे आ गया? बेहद दिलचस्प है कुलचे का हैदराबाद के निज़ाम के झंडे तक पहुंचने के सफ़र का क़िस्सा.

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कुलचे और छोले साथी हैं, ये पक्की बात है. कुलचे के साथ आप पनीर या कुछ और भी खा सकते हैं लेकिन छोले और कुलचे जब ज़ुबान पर चढ़ते हैं तो जो भावना दिल-ओ-दिमाग़ में आती है बस वही स्वर्ग है! यक़ीन करिए, हर एक खाने का शौक़ीन यही कहेगा. फिर ये कुलचे हैदराबाद के निज़ाम के झंडे का हिस्सा कैसे बन गए?

पराधीन भारत के सबसे अमीर रियासतों में से एक थी हैदराबाद के निज़ाम की रियासत. यहां ‘हैदराबादी रूपी’ नामक करेंसी चलती थी. यही नहीं इनका अपना पोस्टल स्टाम्प भी था. इसके साथ ही हैदराबाद के निज़ाम का अपना झंडा था जिस के मध्य में एक कुलचा बना था.

कैसे पहुंचे झंडे पर कुलचा?

Mir Qamar-Ud-din-Asaf-JahMir Qamar-Ud-din-Asaf-Jah/Wikimedia

मीर क़मर-उद-दीन- ख़ान आसफ़ जाह ने 18वीं शताब्दी में आसफ़ जाही राजवंश की नींव रखी. आसफ़ जाह मुग़ल बादशाह, मोहम्मद शाह द्वितीय के दरबार में सूबेदार थे और उनके कई वंशजों ने मुग़ल दरबार में अपनी सेवाएं दी थी. 1712 में आसफ़ जाहको दक्कन का गवर्नर बनाकर और निज़ाम-उल-मुल्क की उपाधि देकर भेजा गया. औरंगज़ेब की मौत के बाद दिल्ली राजनैतिक षड्यंत्रों का गढ़ बनती जा रही थी और इस वजह से आसफ़ जाह दिल्ली छोड़ने पर बेहद ख़ुश हुए.

सूबेदार-ए-दक्कन की गद्दी संभालने से पहले आसफ़ जाह अपने आध्यात्मिक गुरु, सूफ़ी संत हज़रत निज़ामुद्दीन औरंगाबादी से मिलने पहुंचे. आज हज़रत निज़ामुद्दीन औरंगाबादी की दरगाह शाहगंज, औरंगाबाद में है.

कहानियों की मानें तो हज़रत निज़ामुद्दीन औरंगाबादी ने आसफ़ जाह को आसफ़ जाह को खाने का निमंत्रण दिया, और पीले कपड़े में बंधा कुलचा उनकी तरफ़ बढ़ा दिया. भूखे आसफ़ जाह ने सात कुलचे खा लिए. हज़रत साहब ने उन्हें दुआ दी और भविष्यवाणी करते हुए कहा कि एक दिन आसफ़ जाह बादशाह बनेंगे और उनकी सात पीढ़ियां राज करेंगी.

hyderbad nizam flag Flag of Hyderabad Nizam/Wikimedia

मुग़ल साम्राज्य के पतन के बाद आसफ़ जाह ने दक्कन को दिल्ली से स्वतंत्र राज्य घोषित कर दिया और हैदराबाद में आसफ़ जाह वंश की शुरुआत की. सूफ़ी संत, हज़रत निज़ामुद्दीन औरंगाबादी को सम्मान देने के लिए आसफ़ जाह ने कुलचा को हैदराबाद के निज़ाम के झंडे पर जगह दी और झंडे का रंग पीला रखवाया.

ग़ौरतलब है कि आसफ़ जाह का वंश सात पीढ़ियों तक ही राज कर पाया. सातवें निज़ाम नवाब सिर ओसमान अली ख़ान भारत से जा जा मिले. 8वें वंशज, मुकर्रम जाह ने पूर्वजों की पूरी संपत्ति गंवा दी.

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