अनूठे स्वाद व खनिज तत्वों से मशहूर है हिमाचल के पहाड़ी व्यंजन “पचौले”

 बरसात के दिनों में सिरमौर जिला के गिरिपार क्षेत्र में कालांतर से हरी मक्की के पचौले बनाने की प्रथा बदलते परिवेश मेें भी कायम है। हरी मक्की से तैयार पचौले एक पहाड़ी व्यंजन है जोकि स्वादिष्ट ही नहीं अपितु अनेक खनिज तत्वों से भी भरपूर है। हरी मक्की को प्रायः भूटटे के तौर पर बड़े शौक के साथ खाया जाता है और यदि इसके साथ अखरोट का मिश्रण किया जाए तो इसका स्वाद दुगना हो जाता है।

जाजर गांव की रीता तोमर ने पचौले के बारे जानकारी देते हुए बताया कि पचौले तैयार करने के लिए हरी मक्की को छिलकर उसको ग्राईडर मशीन में पीसकर पेस्ट बनाया जाता है, जबकि अतीत में मक्की को हाथ से सील-बटटे पर पीसकर पेस्ट तैयार किेया जाता था। पचौले प्रायः दो प्रकार अर्थात मीठे और नमकीन बनाए जाते है। मीठे पचोले में गुड़ अथवा शक्कर के अतिरिक्त मीठी सौंफ, गरी इत्यादि का मिश्रण डाला जाता है जबकि नमकीन पचोले में आवश्यतानुसार नमक व अन्य मसाले मिलाए जाते है। पचौले को अक्सर घी अथवा दही के साथ बड़े चाव के साथ खाया जाता है।

पूर्व प्रधान कुश्ल तोमर ने बताया कि अतीत में अनाज की कमी होने पर उनके बुजुर्ग खेतों से हरी मक्की तोड़कर लाते थे जिसके पचौले अथवा डणे बनाकर परिवार को खिलाते थे। इसके अतिरिक्त लोग कच्ची मक्की को उबालकर उसके पीसकर सत्तू भी बनाते है जिसे विशेषकर गर्मियों के मौसम में लस्सी के साथ खेत में काम करने के दौरान खाते हैं।

सर्दियों के दिनों में मक्की की रोटी का उपयोग पहाड़ों में हर घर में किया जाता है क्योंकि मक्की में कार्बोहाइड्रेट्स और आयरन प्रचुर मात्रा में पाई जाती है और मक्की की रोटी की ताहसीर भी गर्म होती है। चूल्हे में लकड़ी की आग से तैयार मक्की की रोटी का स्वाद ही निराला होता है। सरसों का साग अथवा अरबी की सब्जी के साथ मक्की की रोटी के खाने का मजा ही कुछ अलग है। बदलते परिवेश में ग्रामीण क्षेत्रों में नकदी फसलों के कारण मक्का का उत्पादन भले कम हुआ है, परन्तु मक्का का विशेषकर ग्रामीण जीवन में महत्व कम नहीं हुआ है।

आयुर्वेद चिकित्सक डाॅ विश्वबंधु जोशी के अनुसार मक्का में फाईबर काफी मात्रा में उपलब्ध होता है जिसके उपयोग से शरीर में काॅलेस्ट्राॅल स्तर को सामान्य बनने के अतिरिक्त हृदय संबधी रोगों से भी बचाव रहता है। कालांतर से ग्रामीण क्षेत्रों में मक्की का उपयोग भिन्न-भिन्न तरीके से काफी मात्रा में किया जाता रहा है, परन्तु वर्तमान परिप्रेक्ष्य मक्की की रोटी और साग लोगों की बहुत बड़ी पसंद बन गई है।