जब भी देश का कोई जवान शहीद होता है तो हम भारत माता के एक वीर सपूत के साथ साथ किसी परिवार एक चिराग, एक पिता, एक पति और ना जाने ऐसे कितने रिश्ते समेटे एक इंसान को भी खो देते हैं. जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग जिले में आतंकवादियों के साथ हुई मुठभेड़ के दौरान भी हमने सेना के ऐसे ही तीन जांबाजों को खो दिया जो देश के साथ साथ अपने अपने परिवार के भी चिराग थे.
इस मुठभेड़ में सेना की राष्ट्रीय राइफल्स यूनिट के कर्नल मनप्रीत सिंह, मेजर आशीष धौंचक और डीएसपी हुमायूं भट्ट शहीद हो गए. कर्नल मनप्रीत सिंह 19 राष्ट्रीय राइफल्स (19 आरआर) यूनिट के कमांडिंग ऑफिसर थे. जिन्हें प्रतिष्ठित सेना मेडल (एसएम) मिल चुका था. इन अफसरों के बलिदान के बाद सामने आ रही इनकी कहानियां हर किसी की आत्मा झकझोर रही हैं.
कर्नल मनप्रीत सिंह की कहानी, दो बच्चों ने खो दिया अपना पिता
19RR CO सिख रेजिमेंट में अपनी सेवाएं दे रहे कमांडिंग ऑफिसर कर्नल मनप्रीत सिंह पिछले 5 साल से अनंतनाग जिले में पोस्टेड थे. कर्नल मनप्रीत ने 6 दिन पहले ही अपने भाई से बात की थी. लेकिन कल उन्होंने ने फोन किया तो किसी ने फोन नहीं उठाया. इसके बाद उन्हें ऐसी खबर मिली कि पूरे परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. कर्नल मनप्रीत के पिता भी सेना में थे. 2014 में उनकी बीमारी से मौत हो गई थी.
उनका पूरा परिवार मोहाली में रहता है. वहीं उनकी पत्नी जगमीत टीचर हैं और अपनी पोस्टिंग की वजह से 6 साल के बेटे कबीर सिंह और ढाई साल की बेटी वाणी के साथ पंचकूला अपने माता-पिता के घर रह रही हैं. मनप्रीत और जगमीत की शादी 2016 में हुई थी. साल 2003 में सीडीएस की परीक्षा पास कर ट्रेनिंग के बाद मनप्रीत 2005 में लेफ्टिनेंट बने. मनप्रीत सिंह ने ट्रेनिंग पर जाते समय कहा था कि, उन्हें नहीं मालूम कि डर क्या होता है, मौत को पीछे छोड़कर भारत माता की सेवा करने के लिए सेना में शामिल हो रहा हूं. 2021 में कर्नल मनप्रीत सिंह को उनके अदम्य साहस के लिए गैलेंट्री सेना मेडल से सम्मानित किया गया था.
तीन भाई-बहनों में सबसे बड़े मनप्रीत के दादा स्वर्गीय शीतल सिंह, उनके भाई साधु सिंह और त्रिलोक सिंह तीनों सेना से रिटायर्ड थे. वहीं उनके पिता लखमीर सिंह सेना में बतौर सिपाही भर्ती होकर हवलदार के पद पर रिटायर हुए थे. चाचा भी सेना में रहे हैं.
मेजर आशीष की कहानी, बर्थडे में घर आकर देने वाले थे सरप्राइज
हरियाणा के पानीपत जिले का बिंझौल गांव बुधवार के दिन उस समय दुख में डूब गया जब खबर आई कि गांव के लाल मेजर आशीष जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग में आतंकियों से मुठभेड़ में शहीद हो गए. शहीद मेजर आशीष पानीपत जिले के बिंझौल गांव के रहने वाले थे. वह तीन बहनों का इकलौता भाई थे. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार आशीष छह माह पहले अपने साले की शादी के लिए छुट्टी लेकर घर आए थे. था. उनके पिता और मां पानीपत के सेक्टर-7 में किराए के मकान में रहते हैं.
आशीष 2013 में पहले ही प्रयास में एसएसबी की परीक्षा पास कर लेफ्टिनेंट बने. बचपन से ही देश सेवा के लिए आर्मी में जाने का सपना देखने वाले आशीष ने आज देश के लिए अपने प्राणों का बलिदान दे दिया. बताया जा रहा है कि आशीष का पार्थिव शरीर उनके घर पहुंचेगा. उनके पैतृक गांव बिंझौल में राज्य के सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया जाएगा.
सेना मेडल के लिए नामित हुए मेजर आशीष अपने पीछे दो साल की एक बेटी और अपनी पत्नी को छोड़ गए. पत्नी का नाम ज्योति और बेटी का नाम वामिका है. आशीष धोनैक तीन बहनों के इकलौते भाई थे. मेजर आशीष की 2 साल पहले ही मेरठ से जम्मू में पोस्टिंग हुई थी. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार आशीष धौंचक अपने नए घर के गृह प्रवेश कार्यक्रम में 23 अक्टूबर को घर आने वाले थे. उसी दिन उनका जन्मदिन था. वह परिवार को अपने जन्मदिन पर आ कर सरप्राइज देना चाहते थे.
जानकारी के अनुसार मेजर आशीष सेना में लेफ्टिनेंट पद पर भर्ती हुए थे. उस दौरान उनके परिवार से चाचा के बेटे भी सेना में भर्ती हुए थे. परिवारवालों ने बताया कि आशीष पढ़ाई लिखाई में काफी आगे थे. यही कारण था कि उन्हें अपनी काबिलियत के बदौलत सेना में भी प्रमोशन मिलता रहा. उन्होंने बताया कि मेजर आशीष बहुत बहादुर थे और बिना किसी परवाह के वह दुश्मनों से भिड़ जाते थे.
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, परिवारवालों ने बताया कि शहीद मेजर के पिता लालचंद सिंह अपने चार भाइयों में सबसे बड़े हैं. वह एनएफएल से रिटायर हुए हैं. वहीं उनके दूसरे भाई यानी मेजर आशीष के चाचा दिलावर एयरफोर्स से रिटायर हैं. इनका का एक बेटा भी सेना में मेजर के पद पर देश की सेवा कर रहा है. आशीष के तीसरे नंबर के चाचा बलवान गांव में और चौथे दिलबाग गुरुग्राम में रहते हैं.
शहीद हो गए पूर्व IG के बेटे और 2 महीने की गुड़िया के पिता
अनंतनाग आतंकी मुठभेड़ में शहीद हुए डीएसपी हुमायूं भट एक महीने पहले ही एक बेटी के पिता बने थे. ये उस मासूम के लिए उम्र भर का दर्द होगा कि वो अपने पिता को देख तक ना पाई. उनके पिता गुलाम हसन भट जम्मू-कश्मीर पुलिस के रिटायर्ड आईजी थे. आतंकियों की गोली लगने के बाद बहुत ज्यादा खून बहने की वजह से उन्हें बचाया नहीं जा सका. डीएसपी हुमायूं का भट के शव को बडगाम के हुम्हामा में बुधवार देर रात सुपुर्द-ए-खाक कर दिया गया है. हुमायूं पुलवामा जिले के रहने वाले थे, लेकिन काफी समय से हुम्हामा में रह रहे थे.
अफसरों की घरवालों से आखिरी बात
कर्नल सिंह के ससुर वीरेंद्र गिल ने बताया कि “कर्नल सिंह की उनके साले से आखिरी बार सुबह 6:45 बजे बात हुई थी. उन्होंने कहा कि वह बाद में बात करेंगे. वह एक अच्छे इंसान थे. पिछले साल उन्हें उनकी ड्यूटी के लिए सेना मेडल से सम्मानित किया गया था. मैं उन्हें सलाम करता हूं.”
मेजर धोनैक के चाचा ने बताया कि, “आखिरी बार उनसे टेलीफोन पर बात हुई थी. वह डेढ़ महीने पहले घर आए थे और घर बदलने के लिए अक्टूबर में लौटने वाले थे.”