हिन्दुस्तानी और मिठाई हैंड टू हैंड चलते हैं. फिर चाहे मूड खराब हो, कोई ख़ुशी का मौका हो, ग़म का मौका हो. हम नमकीन से ज़्यादा मीठे का शौक रखते हैं. मिठाई की एहमियत कितनी है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकते हैं कि बचपन में चोट लग जाने पर मां गुड़, शहद या चीनी ही खिलाती थी ताकि हम रोना बंद कर दे. हमारे यहां तो एक कहावत भी है, ‘आपके मुंह में घी शक्कर’…कोई ये नहीं कहता कि आपके मुंह में नींबू-नमक.
बात मिठाइयों की हो और गुलाब जामुन का ज़िक्र न हो ये तो तौबा-तौबा का मक़ाम होगा! रसगुल्ले, लड्डू की तरह ही गुलाब जामुन भी एक करिश्मा है जिसे खाकर मन नहीं भरता. ये शायद दुनिया की इकलौती मिठाई होगी जिसके नाम में एक फल और एक फूल है. लेकिन दोनों में से किसी का भी प्रयोग इसे बनाने में नहीं होता. हां एसेंस डालकर, या नया कॉम्बो बनाया जाए तो अलग बात है.
गोल, भूरे रंग के चाशनी में डुबाए हुए गुलाब जामुन को डायट का ख़्याल रखने वाले भी मना नहीं कर पाते, हम तो ख़ैर खाने के शौक़ीन हैं. एक परफ़ेक्ट गुलाब जामुन मुंह में जाते ही मानो घुल सा जाता है. इसका रंग गोल्डन और ब्राउन के कुछ बीच का होता है. मैदा और खोए से बनने वाली ये दिव्य मिठाई देवताओं की भी प्रिय ही होगी! अतिश्योक्ति है लेकिन गुलाब जामुन पर फ़िट ही बैठती है. कहते हैं अगर गुलाब जामुन में हल्की सी इलायची की ख़ुशबू आ जाए तो ऐसा एहसास होता है कि मानो स्वर्ग बस मिल ही गया! तो आइए जानते हैं कि हम हिन्दुस्तानियों की ज़िन्दगी का अहम हिस्सा कैसे बन गया गुलाब जामुन?
देश-विदेश में मशहूर है गुलाब जामुन
जो गुलाब जामुन हम भारतीयों के भोजन के बाद कुछ मीठा खाना है यार की तलब को मिटाता है. जो गुलाब जामुन शादियों, पार्टियों का अहम हिस्सा है. जो गुलाब जामुन वैनिला आइसक्रीम के साथ ही ऐसा लगता है मानो बस अब कुछ नहीं चाहिए. वो सिर्फ़ हम भारतीयों की ही पसंद नहीं है. The Times of India के एक लेख की मानें तो ये मिठाई कई अन्य देशों के लोगों की भी पसंदीदा मिठाइयों में से एक हैं. भारत के ही पड़ोसी देश, नेपाल, म्यांमार, पाकिस्तान, बांग्लादेश और यहां तक कि मॉरिशस के लोगों पर भी गुलाब जामुन का जादू चढ़ा हुआ है. चौंक गए न?
गुलाब जामुन कैसे बना भारतीयों के जीवन का हिस्सा?
इतिहास गवाह है कि स्वादिष्ट चीज़ें एक्सीडेंटली ही बनी थी. फिर चाहे वो सांबर हो, मैसूर पाक हो या कोई और व्यंजन. गुलाब जामुन के साथ भी कुछ-कुछ ऐसा ही है. कुछ फ़ूड हिस्टोरियन्स का मानना है कि गुलाब जामुन का जन्म मध्यकाल के दौरान पर्शिया (Persia) में हुआ. ये मिठाई अरबी स्वीट डिश लुक़मत-अल-क़ादी (Luqmat-Al-Qadi) से काफ़ी मिलती-जुलती है. मुग़लों ने जब भारत में पैर जमाए तब उनके साथ ये हिन्दुस्तान पहुंची.
कुछ थ्योरिज़ ये भी कहती है कि शाह जहां के निजी फ़ारसी खानसामे ने ये सबसे पहले बनाया था. हालांकि इसके कोई पुख़्ता सुबूत नहीं हैं. एक अन्य थ्योरी कहती है कि शाह जहां के शाही खानसामे ने फ़ारसी या तुर्की से प्रेरित होकर ये मिठाई बनाई थी.
न गुलाब न जामुन फिर नाम कैसे हुआ गुलाब जामुन?
सवाल तो बनता है कि मिठाई में न गुलाब है न जामुन है फिर ये अलग से नाम कैसे पड़ गया? दरअसल गुलाब शब्द, फ़ारसी शब्द ‘गोल’ और ‘आब’ से बना है जिसका मतलब है फूल और पानी. जामुन शब्द तो समझ ही रहे हैं, एक फल है. वो इस वजह से है कि पहले इस मिठाई का शेप जामुन जैसा होता था. तो इस तरह पड़ा गुलाब जामुन का एकदम अलग-थलग नाम.
गुलाब जामुन से मिलते फ़ारसी और तुर्की व्यंजन
गुलाब जामुन से मिलते-जुलते भी कुछ व्यंजन/मिठाइयां हैं. The Better India के एक लेख के अनुसार, फ़ारस का बामिएह (Bamieh) और तुर्की का तुलुम्बा (Tulumba) गुलाब जामुन से ही मिलते-जुलते हैं. इन दोनों मिठाइयों को ही चीनी के पाग में डुबोकर बनाया जाता है. ये दोनों ही मिठाइयां ठंडी खाई जाती हैं. जबकि गुलाब जामुन तो हमने अपने मन से गर्म या ठंडा खाते हैं. हो सकता है इन्हीं से प्रेरित होकर गुलाब जामुन बनाया गया हो लेकिन ये भी थ्योरिज़ ही हैं.
क्युलिनरी हिस्टोरियन, माइकल क्रोन्दल ने अपनी किताब The Donut: History, Recipes, and Lore from Boston to Berlin में लिखा है कि फ़ारसी आक्रमणकारी अपने साथ गुलाब जामुन लेकर आए. हालांकि उन्होंने ये भी लिखा कि मिडिल ईस्ट की रेसिपी ज़्यादा सरल थी और भारतीय विधि ज़रा कठिन.
कई तरीकों से बनाया जाता है गुलाब जामुना
गुलाब जामुन काला या हल्का भूरा रंग का होता है. गुलाब जामुन बनाने की कई विधियां हैं, कहीं चीनी को आटे में ही मिलाया जाता है. कईं चीनी से चाश्नी बनाकर गुलाब जामुन को उसमें डुबाया जाता है. राजस्थान में तो गुलाब जामुन की सब्ज़ी तक बनती है. खैर, इसे बनाने की विधि चाहे कुछ भी हो हम भारतीयों का कोई भी त्यौहार या ख़ुशी या ग़म का मौक़ा, गुलाब जामुन के बिना अधूरा ही है.