Ground Report: MP के बुरहानपुर में आदिवासियों ने अपनी आंखों के सामने कैसे खो दी अपनी जमीन?

बीते अप्रैल में 10 दिनों के लिए 101Reporters ने क्षेत्र में वन स्वास्थ्य की जांच करने के लिए खंडवा और बुरहानपुर जिलों की यात्रा की. हमारे मिशन को नेपानगर से सामने आई दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं से आकार मिला, जहां वन भूमि पर अतिक्रमण को लेकर पुराने निवासियों और नए लोगों के बीच झड़प पुलिस स्टेशन पर हमले में तब्दील हो गईं, और आगे की तस्वीर भयावह हो गई. कड़वी यादें अब भी लोगों को परेशान करती हैं.

वनों की कटाई की चौंकाने वाली बदसूरत तस्वीरें

पेड़ों की कटाई की तीव्रता और बड़े पैमाने पर कटाई के आरोपों की सच्चाई को समझने के लिए हमने नेपानगर को छूने के बजाय खंडवा जिले के पिपलोद से जंगल में प्रवेश करने का फैसला किया. पिपलोद से लगभग 15 किमी दूर डेहरिया पहुंचने पर, हम मुख्य सड़क से हट गए और दोपहिया वाहन पर जंगल के रास्ते अपनी यात्रा पर निकल पड़े. हम पुराना डेहरिया पार कर चुके थे. तभी हमारे सामने वनों की कटाई की चौंकाने वाली बदसूरत तस्वीरें सामने आईं.

यहां की एक पगडंडी खंडवा के डेहरिया बीट और बुरहानपुर के बकड़ी बीट को विभाजित करती है. दोनों ओर का वन क्षेत्र शून्य हो गया. निश्चित रूप से, यहां हजारों पेड़ों को काट दिया गया है. बकड़ी गांव की ओर आगे बढ़ते हुए, हमने एक पुलिस काफिले को देखा, जिसमें लगभग 20 वाहन थे, जो पटेल ढाना की ओर जा रहे थे. दंगा नियंत्रण वाहन (वज्र) और जेसीबी लोडर बेड़े का हिस्सा थे. जब धूल छटी तो हमें तबाही का मंजर साफ नजर आया.

तालाब ढाना में 35 से अधिक मकान जमींदोज हो गए

वन चौकी के ठीक सामने तालाब ढाना में 35 से अधिक मकान जमींदोज हो गए. जैसे ही हमने एक पैदल यात्री को रोका, और बातचीत में शामिल होकर पुलिस कार्रवाई को समझने की कोशिश की, वह बिना कोई जवाब दिए आगे बढ़ गया. बाद में पता चला कि यहां पिछले तीन दिनों से तोड़फोड़ अभियान चल रहा है. करीब तीन दर्जन मकानों के मलबे को देखकर अंदाजा लगाया कि ये सभी 30 से 40 साल पहले बने थे.

पूरी तबाही को अपने कैमरे में कैद करने में हमें लगभग एक घंटा लग गया, लेकिन इस दौरान एक भी इंसान नजर नहीं आया. मलबे में कुछ हद तक सुरक्षित खड़े एक घर में झांककर हमने देखा कि एक बीमार बूढ़ा आदमी खाट पर लेटा हुआ था और एक अधेड़ उम्र का आदमी पास में बैठा था. जब हमारे रिपोर्टर ने आश्वासन दिया कि उसे कोई नुकसान नहीं पहुंचाया जाएगा, तब उस व्यक्ति ने बाहर आने का साहस जुटाया.

Once a worker, now an intruder: How tribals lost the ‘plot’ in BurhanpurBannu Vaskale, Dhansingh Richhu and another resident with their applications for land pattas under the Forest Rights Act (Photos – Mohammad Asif Siddiqui, 101Reporters)

विक्रम गुटराम अपनी शादी के पांच साल बाद बाकडी गांव में बस गए थे, जहां उनकी पत्नी राह बाई थीं. वो कहते है, ”मैं भूतिया खेड़ी का रहने वाला हूं. काम के सिलसिले मैंने करीब 25 साल पहले यहां बसने का फैसला किया था. जिस भूखंड पर मैं पिछले 20 वर्षों से खेती कर रहा हूं, उसके पट्टे के लिए मैंने कई बार आवेदन किया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.”

”जमीन तो है नहीं, अब सिर के ऊपर की छत भी चली गयी”

तीन साल पहले गुटराम को ऑनलाइन आवेदन करने को कहा गया था, और उसने किया भी था. अपना दुख जाहिर करते हुए वो कहते हैं- ”जमीन तो है नहीं, अब हमारे सिर के ऊपर की छत भी चली गयी. उन्होंने कुछ दस्तावेज भी छीन लिए. कोई प्रश्न नहीं पूछा गया. जो भी बीच में आया, उसे पकड़कर पुलिस वैन में डाल दिया गया. अन्य सभी लोगों की तरह, मैं भी जंगल में भाग गया.” जैसे ही हम आगे बढ़े, गुटराम ने दृढ़ संकल्प के साथ कहा, ”मैं कहीं नहीं जाऊंगा. मैं इस घर का पुनर्निर्माण करूंगा.

गांव में एक आटा चक्की और एक जनरल स्टोर है. पुलिस ने दुकानों को भी नहीं बख्शा. इन्हें चलाने वाली बरेला आदिवासी सुषमा अनिल मोरे ने बताया कि वह एक दशक पहले अपनी शादी के बाद यहां आई थीं. वो कहती हैं, ”हम दोनों के पास जंगल काटने, या उस पर अतिक्रमण करने का समय नहीं है. हम दिन भर दुकान में रहते हैं. हमारी आटा चक्की, और जनरल स्टोर बहुत अच्छा चल रहा है. पुलिस अभियान के दौरान हम भी भाग गए. जब हम लौटे तो हमारा घर और दुकानें आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त स्थिति में थीं.”

”पट्टे के दस्तावेज़ के लिए आवेदन किए, कार्रवाई नहीं हुई”

यह पूछे जाने पर कि क्या उन्होंने पट्टे के दस्तावेज़ के लिए आवेदन किया था, मोरे ने कहा, “हां, हमने किया था, लेकिन इस पर आज तक कार्रवाई नहीं की गई है.” झांझर के कोटवार (एक ग्राम अधिकारी) की पत्नी सुरलीबाई स्पष्ट रूप से परेशान हैं. दरअसल बाकड़ी गांव में प्रवेश करने से पहले पुलिस कार्रवाई में पटेल ढाना में उनका घर और ट्रैक्टर क्षतिग्रस्त हो गया. इतना ही नहीं, अचानक हुई कार्रवाई में उसकी गाय का बछड़ा भी खो दिया. सुरलीबाई और उनकी बेटी संतू ने मदद के लिए बहुत पुकारा, लेकिन कोई नहीं आया. जेसीबी ने उसके ट्रैक्टर को भी नहीं बख्शा, जो पास के एक स्कूल के पास रखा हुआ था.

दुख जताते हुए वो आगे कहती हैं, ”तीन जेसीबी ने पांच मिनट में मेरे घर को मलबे में तब्दील कर दिया. जब घर गिराया जा रहा था, तब हमारी गाय अंदर बंधी हुई थी. इसी दौरान बछड़ा मलबे में दब गया और उसकी मौत हो गई. सजना पीठा नानला 15 साल से बाकड़ी में रहकर ढाई एकड़ जमीन पर बटाईदारी कर रहे हैं. वो कहते हैं- ”मेरी मां मेरे साथ रहती है. वह आज एक मृत रिश्तेदार के दसवें अनुष्ठान में शामिल होने के लिए बाहर गई है. इसी दौरान मेरा घर तोड़ दिया गया है. पूरे गांव में तबाही मची हुई है. हमें कहां जाना चाहिए? हमें खेतों में भी रहने की इजाजत नहीं है.”

Once a worker, now an intruder: How tribals lost the ‘plot’ in BurhanpurPhoto – Mohammad Asif Siddiqui, 101Reporters

नानू बाई, डोंगर सिंह, गुमान सिंह और खजान सिंह ने दोहराया कि उनके पास जमीन नहीं है, लेकिन उनके पास जो मकान हैं वे भी अब रहने लायक नहीं हैं. 101 रिपोर्टर्स ने जिन लोगों से बात की, उन्होंने दावा किया कि वे 25 साल से अधिक समय से बाकड़ी में रह रहे हैं. यह पूछे जाने पर कि अगर वे निर्दोष थे तो उन्होंने इस कदम का विरोध क्यों नहीं किया, नलना की बेटी सजना बाई ने कहा, “जब हम आसपास इतने सारे पुलिसकर्मियों को देखते हैं तो किसी में भी विरोध करने की हिम्मत नहीं होती है.

प्रभावित लोगों का अतिक्रमणकारियों से कोई लेना-देना नहीं!

वाणिज्य में स्नातकोत्तर छात्र, विष्णु सोलंकी बारेला समुदाय से हैं. बाकड़ी के तालाब ढाना स्थित उनके घर को तोड़ दिया गया है. उन्होंने दावा किया कि प्रभावित लोगों का अतिक्रमणकारियों से कोई लेना-देना नहीं है. उन्होंने यह बताकर अपनी बात साबित करने की कोशिश की कि उनमें से अधिकांश के पास मतदाता पहचान पत्र और आधार कार्ड हैं, और वे बाहरी हस्तक्षेप के बिना अपने मताधिकार का प्रयोग करते हैं. वास्तव में, अधिकांश पुराने निवासियों और कुछ नए अतिक्रमणकारियों को पंचायत की सिफारिश के आधार पर ये महत्वपूर्ण दस्तावेज़ मिले हैं.

”कलेक्टर के कार्यालय गए, लेकिन कोई मौका नहीं दिया गया”

सोलंकी ने कहा, ”यहां भील, भिलाला और बरेला आदिवासी रहते हैं. मेरे घर में सरकारी नल-जल कनेक्शन है. यहां एक मध्य विद्यालय, स्वास्थ्य उपकेंद्र और एक राशन दुकान है. बिजली की आपूर्ति भी उपलब्ध है.जब उन्होंने सीएम हेल्पलाइन पर फोन किया तो उनकी शिकायत दर्ज नहीं की गई थी. इसके बाद, हम अपनी बात कहने के लिए जिला कलेक्टर के कार्यालय गए, लेकिन हमें वह मौका भी नहीं दिया गया.”

बरेला के एक अन्य युवा, राधेश्याम अहिरे, जिन्होंने अपना बचपन बाकड़ी में बिताया और अब खंडवा में जनसंचार में स्नातकोत्तर कर रहे हैं. उन्होंने जोर देकर कहा कि आदिवासी वन या लकड़ी माफिया का हिस्सा नहीं हैं. वे जंगल काटते हैं, वहां की लकड़ियां जलाते हैं, और कुछ का उपयोग झोपड़ियां बनाने में करते हैं. वे लकड़ी नहीं बेचते, क्योंकि उन्हें पता है कि वन विभाग कार्रवाई कर सकता है.”

Bishan Vaskale and Gendalal SisodiaBishan Vaskale and Gendalal Sisodia (Photos – Mohammad Asif Siddiqui, 101Reporters)

इस बीच, जागृत आदिवासी दलित संगठन की नेता माधुरी बेन ने 101 रिपोर्टर्स को बताया कि आदिवासियों को केवल जमीन का लालच है. अगर वे लकड़ी बेचते तो आज झोपड़ियों में नहीं, महलों में रहते. वन विभाग का दावा है कि पिछले कुछ महीनों में 3 करोड़ रुपये की सागौन की लकड़ी जब्त की गई है.

”वे आदिवासियों को पेड़ काटने से रोकने में विफल रहे हैं”

वास्तविकता यह है कि वे आदिवासियों को पेड़ काटने से रोकने में विफल रहे हैं. इसलिए उन्होंने एक समझौता किया जिससे आदिवासियों को जंगल में रहने और पेड़ों पर कुल्हाड़ी मारने की अनुमति मिल गई. हालांकि, आदिवासियों को कटी हुई लकड़ी विभाग को सौंपनी होगी. अब वही विभाग अपनी नाकामी छुपाने के लिए उन्हें सागौन माफिया कहता है. अपराधियों को पकड़ने के लिए आम नागरिकों को परेशान नहीं करना चाहिए.

बेन ने सवाल करते हुए पूछा कि जरा आप ही बताइए, ”पूरे गांव में बिजली और पानी की आपूर्ति बंद करना, और कुछ आरोपियों को पकड़ने के लिए राशन रोकना क्रूरता है, या नहीं’.’

2011 की जनगणना के अनुसार, बाकड़ी में 5,882 निवासी और 998 घर हैं. इनमें से 3,700 मतदाता हैं. सात अप्रैल तक सभी सरकारी योजनाओं का लाभ ग्रामीणों को मिला. ग्राम पंचायत के संयोजक सुनील निगलवाल ने कहा कि गांव में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम योजना के तहत 100 से अधिक लोग काम कर रहे थे, लेकिन इस घटना ने सब कुछ रोक दिया. ”

वो कहते हैं, ”आवास योजना और अमृत सरोवर मिशन से संबंधित कार्य चल रहे थे. जिस दिन पुलिस और वन विभाग हरकत में आया, उसी दिन से यह सब अचानक बंद हो गया. अधिकांश ग्रामीण भाग गये हैं. एक बार स्थिति सामान्य हो जाए तो हम काम फिर से शुरू कर देंगे.”

अनुपम शर्मा ने दो महीने पहले ही बुरहानपुर संभागीय वन अधिकारी के रूप में पदभार ग्रहण किया था, जब नेपानगर में पुलिस स्टेशन पर हमले के बाद उनका तबादला भोपाल कर दिया गया था. जब उनसे संपर्क किया गया तो वह अपने स्थानांतरण के कारण इस मामले पर टिप्पणी करने को तैयार नहीं थे.

”जंगल काटे गए हैं, जोकि पूरे देश के लिए बड़ा नुकसान है”

पदासीन विजय सिंह ने वनों की भारी मात्रा में कटाई का हवाला देते हुए 101 रिपोर्टर्स से कहा- ”जिस तरह से इस क्षेत्र में जंगल काटे गए हैं, यह पूरे देश के लिए नुकसान है. बिजली, पानी और राशन आपूर्ति रोकने पर उन्होंने कहा, ”जब तक अतिक्रमणकारी पकड़े नहीं जाते तब तक इन्हें बहाल करना मुश्किल है. स्थानीय आदिवासी अतिक्रमणकारियों का समर्थन करते हैं, यही कारण है कि हम उन तक नहीं पहुंच पाते हैं. स्थिति सामान्य होने तक हम कड़ी निगरानी रखेंगे.” बाकड़ी के सरपंच शंकर सिकदर मेहता और पंचायत सचिव एकनाथ पाटिल से संपर्क करने के बार-बार प्रयास व्यर्थ साबित हुए क्योंकि उनके मोबाइल फोन बंद मिले.