राजगढ़ क्षेत्र नगदी फसलों के उत्पादन के लिए जाना जाता है। यहां के किसान टमाटर, शिमला मिर्च, फ्रासबीन मटर, अदरक, लहसून ,फूल गौभी ,ब़द गौभी व फूलो की खेती के साथ-साथ फल उत्पादन जिसमें विशेषकर आडू, प्लम नाशपाती, सेब, का भी उत्पादन कर अपनी आर्थिकी को सुदृढ़ कर रहें है। वही अब यहां के बागवानो ने किवी फल का उत्पादन करना भी शुरू कर दिया है । और यहाँ इन दिनो किवी का सीजन चल रहा है । यहां किवी कारोबारी सनम चौपड़ा के अनुसार इन दिन यहां किवी की पैकिंग व मार्केटिंग का कार्य चल रहा है
उन्होंने बताया कि कीवी की पैदावार तीन हजार से साढ़े हजार फीट की ऊंचाई वाले क्षेत्रों पर होती है । ओर यहाँ हमारे क्षेत्र किवी की एलिसन, ब्रूनो, मोंटी, एबोट व हेवर्ड मुख्य प्रजातियां है। उनका कहना है कि यहां क्षेत्र में आड़ू की फसल में फाईटोप्लाजमा नामक बिमारी के कारण समस्या आई है । तो ऐसे मे किवी आडू के स्थान पर काफी अच्छा विकल्प हो सकती है और एक बीघा भूमि पर लगभग 25 पौधे लगाए जा सकते है । सेब के मुकाबले मे इसकी उत्पादन लागत काफी कम है । और स्टोन फ्रुट के मुकाबले मे भी इसमे काफी अच्छा लाभ है उनका कहा था कि हमारे देश में अभी किवी की जितनी लागत है उसका केवल एक प्रतिशत उत्पादन ही हो पा रहा है ऐसे में आने वाले समय मे किवी उत्पादन बागवानो के लिए काफी लाभदायक साबित हो सकता है । और हमारे हिमाचल व राजगढ़ क्षेत्र की जलवायु किवी उत्पादन के लिए काफी अनुकुल है । किवी का एक पौधा लगभग 80 से 100 किलो फल दे देता है । इन दिनो किवी का मूल्य बाजार मे लगभग 150 से 220 रुपये प्रतिकिलो तक बागवानो को मिल रहा है । और तेजी में किवी का मुल्य बागवानो को 350 रुपये प्रतिकिलो तक भी मिल सकता है । कुल मिलाकर किवी उत्पादन से राजगढ़ क्षेत्र के बागवान अच्छा आर्थिक लाभ कमा सकते है ।