पित्ताशय की पथरी
पित्ताशय (गॉलब्लेडर) पित्त की थैली होती है जहाँ पित्त रस (बायल जूस) जमा होता है जो पाचन में सहायता करता है। पित्त की थैली बॉडी का एक छोटा पार्ट है जो पेट में लिवर (यकृत) के ठीक ऊपर और दाईं ओर होता है। पित्ताशय में पथरी का सबसे आम कारण पित्त में कोलेस्ट्रॉल का जमा होना।
पित्ताशय में पथरी हो जाने से पेट के ऊपरी दाहिने हिस्से में या निचले पेट में भी दर्द महसूस हो सकता है। इसके कारन दर्द कई बार दाहिना हाथ या कंधे में भी हो सकता है। साधारणतः पित्त पथरी के कारन दर्द कुछ ही घंटों तक महसूस होता है। इसमें दर्द कभी भी हो सकता है, लेकिन ज्यादा ऑयली या तला हुआ भोजन खाने से यह दर्द और अधिक बढ़ जाते हैं।
पित्ताशय में पथरी के लक्षण
- भूख कम लगना
- ठंड लगना
- शरीर का तापमान अधिक रहना
- दिल की धड़कन का ज्यादा तेज़ होना
- त्वचा और आंखों का पीला हो जाना
- रोम छिद्रों (पोर्स) में सूजन
- दस्त होना आदि का होना
- पेट के ऊपरी दाहिने हिस्से में या निचले पेट में भी दर्द महसूस होना
वैसे अगर पित्ताशय में किसी तरह का संक्रमण हो जाये या फिर किसी तरह का कोई सूजन हो जाये लिवर, पित्ताशय या पैंक्रियास में तो भी बॉडी में इसी तरह का लक्षण दीखते हैं। इसके साथ ही अगर एपेंडिसाइटिस हो जाये तो इसमें भी ऐसे ही लक्षण दिखाई देते हैं।
डॉक्टर द्वारा पथरी की पहचान इस तरह से की जाती है
खून जांच से पता लगाया जाता है की आखिर इन लक्षणों के पीछे का कारण क्या है। इससे पता लग जाता है की यह सूजन या संक्रमण के वजह से हो रहा है या फिर लिवर में कोई और बीमारी की वजह से हो रहा है । इससे डॉक्टर यह भी पता लगा लेते हैं कि इन लक्षणों से कौन से अंग क्षतिग्रस्त हो रहे हैं। इसके अलावा अल्ट्रासाउंड से पित्त रस के बहाव में कोई बाधा हो रही है या नहीं, इसका पता लगाया जाता है । साधारणतः पित्त की थैली में पथरी से कोई लक्षण नहीं दीखते हैं । पर जब पित्त की थैली से पित्त के प्रवाह में कोई दिक्कत आती है तब इससे समस्या शुरू हो जाती है।
पित्ताशय में पथरी के कारण
अगर लीवर अधिक मात्रा में कोलेस्ट्रॉल का उत्पादन करने लगता है तो पित्ताशय की थैली में पथरी बनने का खतरा होने लगता है। और यह तब भी होता है जब पित्त में बिलीरुबिन का स्तर ज़रूरत से ज़्यादा होने लगता है। जब बॉडी में किसी वजह से लाल रक्त कोशिकाओं की टूट-फूट होती है, तो बिलीरुबिन बनता है। कई बीमारियाँ में जैसे कि लीवर सिरोसिस और बिलियरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन आदि में लिवर बहुत अधिक मात्रा में बिलीरुबिन पैदा करने लगता है। रक्त में जरुरत से ज्यादा बिलीरुबिन बनने से भी पित्त पथरी बनती है। इसका और भी कई कारण हो सकते हैं यदि पित्ताशय ठीक से खाली नहीं हो पाता, तो एक तरह के गाढ़े पित्त का जमाव होने लगता है, जिसके कारण भी पित्त पथरी बन जाती है।
इन फैक्टर के वजह से भी पित्ताशय में पथरी बनने की संभावना बढ़ सकती है
- डायबिटीज
- मोटापा
- गर्भधारण
- कुछ दवाओं का सेवन भी इसके होने कि सम्भावना को बढ़ा देती है
- लंबे समय से किसी बीमारी के होने कि वजह से भी यह हो सकता है।
पित्त पथरी का उपचार
जिनमे पथरी के कोई भी लक्षण महसूस नहीं होते हैं उन्हें सामान्यतः ट्रीटमेंट कि जरुरत नहीं होती। जब लक्षण दुखने लगते हैं तो जाँचों के आधार पर डॉक्टर निर्णय करते है कि इस पथरी का इलाज करना जरुरी है या नहीं। इन तरीकों से इसका उपचार किया जाता है :-
1) कोलेसिस्टेक्टोमी द्वारा
कोलेसिस्टेक्टोमी पित्ताशय में पथरी को ऑपरेशन द्वारा हटाने की प्रक्रिया होती है।
कोलेसिस्टेक्टोमी दो तरह के होते हैं
A) लैप्रोस्कोपिक कोलेसिस्टेक्टोमी : इसमें छोटे चीरे लगाकर ऑपरेशन करके पित्त कि थैली को निकाल दिया जाता है और यह इसमें कम समय में मरीज घर लौट सकता है और इसमें मरीज तेजी से रिकवरी भी करता है।
B) ओपन कोलेसिस्टेक्टोमी : इस तरह कि सर्जरी में बड़ा चीरा लगाकर ऑपरेशन किया जाता है और यह तब किया जाता है जब मामला ज्यादा गंभीर या जटिल होते हैं और जिसके कारण मरीज में लैप्रोस्कोपिक कोलेसिस्टेक्टोमी संभव नहीं हो पाता है। सर्जरी (कोलेसिस्टेक्टोमी) द्वारा पित्ता की थैली को हटाना – पित्ताशय (गॉलब्लैडर) की थैली को हटाने के लिए सर्जरी किया जाता है । गॉलब्लैडर जब हट जाता है तब, पित्त पित्ताशय की थैली में जमा न होकर लिवर (यकृत) से सीधा छोटी आंत में प्रवाहित होता है। जीवित रहने के लिए वैसे गॉलब्लैडर की कोई जरूरत नहीं होती है , और इसके हटने के बाद भी हमारे भोजन के पचने की जो क्षमता होती है उसपर कोई भी प्रभाव नहीं पड़ता है, पर किसी किसी को आम तौर दस्त हो जाती है पर थोड़ी देर में यह ठीक हो जाता है।
2) दवाइयाँ द्वारा
यह अक्सर मुँह से ली जाती हैं। पर इस तरीके से पित्त पथरी से छुटकारा पाने के लिए शायद महीनों या वर्षों तक दवाइयाँ लेते रहने की जरुरत हो सकती है, और यदि यह लाज बीच में बंद कर देंगे तो पथरी फिर से बन सकती है। हालाँकि यह उतना सफल नहीं हो पाता है इसीलिए इस तरह का ट्रीटमेंट केवल उन व्यक्तियों में किया जा सकता है जिनमें सर्जरी (कोलेसिस्टेक्टोमी) संभव नहीं हो पाती है।
सर्जरी में खर्च
लैप्रोस्कोपिक कोलेसिस्टेक्टोमी : में आम तौर पर लगभग 50, 000 रूपए खर्च होती है।
ओपन कोलेसिस्टेक्टोमी : इसमें खर्च थोड़ी अधिक होती है, क्योंकि ऑपरेशन में जटिलताएं ज्यादा होती हैं, और इसमें लंबे समय तक भर्ती रहना पड़ता है और साथ ही इसके रिकवरी में भी समय ज्यादा लगता है।
ऑपरेशन के बाद रिकवरी होने समय
लैप्रोस्कोपिक सर्जरी में अधिकतर मरीज एक सप्ताह के भीतर ही सामान्य रूप से सारी गतिविधि करने लग जाते हैं और 2-3 सप्ताह के बाद पूरी तरह से ठीक हो जाते हैं।
ओपन सर्जरी में लगभग 4 सप्ताह से 6 सप्ताह रिकवरी होने में समय लग जाते है क्यों कि चीरा इसमें बड़ा लगता है।
पित्ताशय की सर्जरी के बाद रखी जाने वाली सावधानियां
सर्जरी के बाद कुछ हफ्ते भारी वजन उठाना नहीं चाहिए और न ही कोई भारी शारीरिक गतिविधि करना चाहिए और तला या फैट वाली चीजों को खाने से बचना चाहिए । धीरे-धीरे आप कुछ हफ्तों के बाद सामान्य गतिविधियाँ फिर से शुरू कर सकते हैं।
डॉक्टर के द्वारा दिए दवाओं का समय पर प्रयोग करें और दर्द बढ़ने पर डॉक्टर से संपर्क करें।
संतुलित आहार लेना चाहिए। कम वसा और फाइबर वाले खाद्य पदार्थों को खाना चाहिए
सक्रिय रहें: चलने जैसी हल्की गतिविधियां करते रहें जैसे की चलना फिरना आदि। इससे खून का संचार भी ठीक होगा और रिकवरी में तेजी आएगी ।
नियमित जांच करवाते रहें ताकि आपको पता लगता रहे की आपकी रिकवरी ठीक से हो रही है या नहीं।
पित्ताशय में पथरी होने पर इस तरह कि डाइट लेनी चाहिए
वैसे सही लाइफस्टाइल और डाइट को अपनाकर पित्ताशय में पथरी बनने से रोका जा सकता है । नियमित रूप से व्यायाम करने से कोलेस्ट्रॉल को घटता है। इसीलिए रोज काम से काम ३० मिनट योग और व्यायाम जरूर करना चाहिए। चलिये जानते हैं कि पित्ताशय में पथरी होने पर अपने भोजन में इसे शामिल करें
- गाजर और ककड़ी का रस से पित्त की पथरी में फायदा होता है। इसीलिए इसे रोज खाएं।
- सुबह खाली पेट पानी में नींबू का रस मिलाकर पीने भी लाभ होता है।
- नाशपाती बहुत ही गुणकारी होता है पित्त की पथरी में। इसे जरूर खायें।
- ज्यादा से ज्यादा हरी साग सब्जियां और फल खाएं ।
- विटामिन सी वाले खट्टे फलों का सेवन करें।
इसमें इन चीजों को खाने से परहेज करनी चाहिए
प्रोसेस्ड फ़ूड जैसे कि ब्रेड, रस्क और अन्य बेकरी उत्पाद आदि का सेवन पित्ताशय के स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है। इनमें सैचुरेटेड और ट्रांस फैट की मात्रा बहुत ज्यादा होती है जो गॉल ब्लैडर में बिमारी उत्पन्न कर सकता है ,इन चीजों का सेवन बिल्कुल नहीं करना चाहिए। आप होल ग्रेन यानि मोटे अनाज से बानी चीजों का सेवन करें।
ज्यादा एनिमल प्रोटीन से भी बचना चाहिए। इन प्रोटीन से कैल्शियम स्टोन और यूरिक एसिड स्टोन के होने कि सम्भावना ज्यादा होती है। इसलिए अगर आपको पित्ताशय या किडनी में पथरी है, तो इनका सेवन बिल्कुल बंद कर देना चाहिए।
रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट से बचना चाहिए क्यों कि इससे कोलेस्ट्रॉल गाढ़ा होता है, और इससे गॉल ब्लैडर में पथरी बनने का खतरा भी बढ़ जाता है। इसलिए जो भी मैदे या आर्टिफीसियल तरीके से मीठी चीजें बनायीं जाती हैं उन मीठी चीजों का सेवन बिलकुल नहीं करना चाहिए क्यों कि इसमें रिफाइंड कार्बोहाइड्रेट होता है। अगर मीठा खाना पसंद है तो नेचुरल मीठे चीजों को खाएं जैसे कि मीठे फल आदि।
आहार में डेयरी उत्पादों का भी सेवन बहुत कम करना चाहिए या बंद कर देना चाहिए । दूध, पनीर, दही, आइसक्रीम, और क्रीम में बहुत फैट होते हैं, जिससे पित्त की पथरी और बढ़ सकती है। इसीलिए डेयरी की मात्रा कम करें या फिर कम वसा वाले दूध को थोड़े मात्रा में ले सकते हैं ।
जो महिलाएं ज्यादा मात्रा में गर्भनिरोधक दवाओं का प्रयोग करती हैं उनमें भी गॉल ब्लैडर की समस्या होने कि सम्भावना ज्यादा होती हैं । इसलिए हो सके तो इन दवाओं के बजाय दूसरे तरीके के गर्भनिरोधक उपायों को अपनाना चाहिए।
सोडा में फॉस्फोरिक एसिड और शुगर कि मात्रा भी ज्यादा होता है, जो स्टोन के खतरे को बढ़ा देता है।
तली या फ्राई कि हुई चीजों से भी बचना चाहिए क्यों कि इनमें हाइड्रोजनीकृत वसा, ट्रांस वसा और सेचुरेटेड वसा होती जो स्वास्थ्य पर बुरा असर डालती है और इससे पित्त की पथरी की समस्या और भी ज्यादा बढ़ सकती है और यह दर्द को भी बढ़ा सकता है।
शराब, सिगरेट, चाय, कॉफी तथा शक्कर युक्त जो भी पेय पदार्थ होते हैं वो बहुत हानिकारक होते हैं । इससे बिलकुल बचना चाहिए ।
डिस्क्लेमर: यह लेख केवल सामान्य जानकारी के लिए है। यह किसी भी तरह से किसी दवा या इलाज का विकल्प नहीं हो सकता। ज्यादा जानकारी के लिए हमेशा अपने डॉक्टर से संपर्क करें।
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